सरकार ने एक नई पहल के तहत पुरातन विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए नवंबर 2022 से मार्च 2023 तक कॉन्फ्रेंस की सिरीज़ चलाने का फ़ैसला किया है. इसने एक नई बहस को जन्म दिया है, आलोचकों का कहना है कि ये पुरातन विज्ञान को मॉर्डन साइंस से बेहतर दिखाने की कोशिश हो सकती है.
सरकार ने एक नई पहल के तहत पुरातन विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए नवंबर 2022 से मार्च 2023 तक कॉन्फ्रेंस की सिरीज़ चलाने का फ़ैसला किया है. इसने एक नई बहस को जन्म दिया है, आलोचकों का कहना है कि ये पुरातन विज्ञान को मॉर्डन साइंस से बेहतर दिखाने की कोशिश हो सकती है. इसरो समेत सरकार के विज्ञान से जुड़े कई विभागों ने 4 नवंबर से 6 नवंबर तक देहरादून में ‘आकाश तत्व’ कॉन्फ्रेंस के आयोजन की जानकारी दी है. इंडियन मार्च फ़ॉर साइंस (आईएमएफ़एस) ने इस पहल की आलोचना करते हुए कहा है कि इससे ‘नुक़सान’ होगा. इसरो के प्रवक्ता सुधीर कुमार एन का कहना है कि ‘ये सरकार का फ़ैसला है, जिन्हें विभाग लागू कर रहे हैं, ‘आकाश तत्व’ के लिए इसरो एजेंसी है. ये जागरूकता पैदा करने वाले प्रोग्राम हैं, जिसे सरकार ने लागू करने के लिए कहा है.’ अग्नि, वायु, जल और पृथ्वी के विभिन्न विषयों पर चार शहरों में अलग-अलग विभाग कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं.
हिंदू माइथॉलोजी में ‘आकाश तत्व’ एक मूल तत्व माना गया है. अत: वास्तु विषय में इसे ब्रहम तत्व (मध्य स्थान) कहा जाता है. इस तत्व की पूर्ति करने के लिये पुराने जमाने में मकान के मध्य में खुला आंगन रखा जाता था, ताकि अन्य सभी दिशाओं में इस तत्व की आपूर्ति हो सके. आकाश तत्व से अभिप्राय यह है कि गृह निर्माण में खुलापन रहना चाहिए. कहा गया है कि संसार में पंच महाभूतों में आकाश तत्व प्रधान होता है. यह सबसे अधिक उपयोगी एवं प्रथम तत्व है. जिस प्रकार परमात्मा असीम एंव निराकार है, उसी प्रकार आकाश तत्व असीम एवं निराकार है. आकाश तत्व का उसी प्रकार नाश नहीं हो सकता, जिस प्रकार ईश्वर को कभी नहीं मिटाया जा सकता. भारतीय मान्यताओं के अनुसार आकाश में परमात्मा का देवी, देवताओं का वास माना जाता है, इसलिये आकाश तत्व के द्वारा उसे धारण करके उसके द्वारा चिकित्सा द्वारा मनुष्य भी उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घ जीवन प्राप्त कर पाता है.
इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, कोलकाता के फ़िज़िक्स फ़ैकल्टी डॉक्टर सौमित्र बनर्जी कहते हैं, ‘हमारी आपत्ति है क्योंकि इसके तहत सालों पुराने पंचमहाभूत के कॉन्सेप्ट को इस तरह से दिखाया जा रहा है कि इससे मॉर्डन साइंस को सीखना चाहिए लेकिन मॉर्डन साइंस पुरातन विज्ञान से काफ़ी आगे की चीज़ें समझता है.’ पहले कॉन्फ्रेंस के एक ब्रोशर में आकाश, अग्नि, वायु, जल और पृथ्वी को पंचमहाभूत के मूल तत्व बताया गया है. आईएमएफ़एस का कहना है कि ये धारणा ग्रीक सभ्यता में भी मौजूद थी. बनर्जी के मुताबिक़, ‘मॉर्डन साइंस में 92 तत्वों की पहचान की गई है और ये सब भी मूल तत्व नहीं हैं.’ ‘आकाश तत्व’ लोगों तक पहुंचने के लिए एक प्रोग्राम है, जिसे सुमंगलम कैंपेन के तहत चलाया जा रहा है. इस कैंपेन ‘का मक़सद लोगों को आज़ादी के सुपरपावर और सस्टेनेबल लाइफ़स्टाइल से अवगत कराना है.’
दुनियाभर में हर तरह के जीवों पर सस्टेनेब्लिटी और अस्तित्व की अभूतपूर्व चुनौती है. ये चुनौती प्रकृति का दोहन करने और उस पर क़ब्ज़ा करने के मॉर्डन और पश्चिमी धारणा के कारण सामने आई है, जो इंसानों को प्रकृति की क़ीमत पर अपने आराम और लालच को पूरा करने के लिए प्रेरित करता है. ब्रोशर में लिखा गया है, ‘हमारी पुरानी भारतीय सभ्यता प्रकृति के पांच तत्वों के बीच ज़रूरी बैलेंस बनाने पर केंद्रित थी. इसे कई तरीकों से हासिल किया जाता था, जो कि विज्ञान पर आधारित थे और अपने समय से बहुत आगे थे.’ आईएमएफ़एस के कर्नाटक चैप्टर के कन्वीनर आर एल मौर्यन कहते हैं, ‘पंचमहाभूत एक बहुत पुराना क़ॉन्सेप्ट है और कई साल पुरानी किताबों में भी इसका ज़िक्र नहीं है. इस बात के वैज्ञानिक साक्ष्य हैं कि वायु एक मिश्रण है, जल एक कंपाउंड, पृथ्वी में हज़ारों ख़निज पदार्थ हैं और आकाश में कई गैस मौजूद हैं. हमारी आपत्ति इस बात से है कि इसे भूत क्यों कह रहे हैं, ये पहली और दूसरी सदी की बात है. ग्रीक सभ्यता में भी इसे भूत कहते थे.’
डॉक्टर बनर्जी कहते हैं, ‘भारत ने पहले जो तरक्की की थी, वो तारीफ़ के काबिल है, लेकिन इसे मॉर्डन साइंस से मिला कर भ्रमित नहीं होना चाहिए क्योंकि हम ज्ञान लगातार इकट्ठा करते रहते हैं. मॉर्डन विज्ञान को बढ़ावा देना चाहिए और पुराने ज्ञान को विज्ञान के इतिहास की तरह पढ़ना चाहिए. लेकिन जो ब्रोशर में लिखा गया है, वो अवैज्ञानिक विचार हैं, जो प्राचीन हिंदू विज्ञान को बेहतर साबित करने की कोशिश कर रहे हैं.’ लेकिन संस्कृत के स्कॉलर और पारंपरिक विज्ञान के स्वतंत्र शोधकर्ता एम ए अल्वार का मानना है कि ऐसी कॉन्फ्रेंस ज़रूरी हैं. वह कहते हैं, ‘जहां तक पंचभूत का सवाल है, दुनिया के विश्लेषण का नज़रिया पश्चिमी और भारतीय विज्ञान की दृष्टि से अलग-अलग है. पश्चिमी विज्ञान इसे मॉलिक्यूल के स्तर तक ले जाता है, भारतीय इसे मॉलिक्यूल के साथ-साथ ग्रॉस (बड़े) स्तर पर भी देखते हैं. एटॉमिक स्तर पर जो होता है, वो बड़े स्तर पर जो होता है, उससे अलग है. हमें प्रकृति को समझना होगा. सुनामी और ग्लोबल वॉर्मिंग से जुड़े बदलावों को वैज्ञानिकों के दो गुट अलग तरीके से देखते हैं.
‘एक जो भारतीय सभ्यता को लेकर खुले विचार रखते हैं, भारतीय पढ़ाई और साइंस के सिस्टम को समझते हैं, और दूसरे जो इनका विरोध करते हैं. मुख्य बात ये है कि कई लोग जो मानते हैं कि संस्कृत हिंदुत्व है. मैं क्या दावा कर सकता हूं कि मैं अंग्रेज़ी में बात करता हूं, इसलिए मैं ईसाई हूं. कई लोग मुझे कहते हैं कि यूनानी दवाइयों से ज़ुख़ाम ठीक हो जाता है. ये पूरी तरह से हर्बल है. क्या मैं इसे मुलसलमानों का मान लूं? बात ये है कि हमारे विचार नपे-तुले होने चाहिए.’
अल्वार क़ुतुब मीनार के लौह स्तंभ का उदाहरण देते हैं कि उसमें कभी ज़ंग नहीं लगी. उनका दावा है कि वैज्ञानिकों को आज भी नहीं पता कि ऐसा कैसे हुआ. हालांकि डॉक्टर बनर्जी कहते हैं कि वैज्ञानिकों को इसकी जानकारी है कि स्तंभ में ज़ंग क्यों नहीं लगी. वह इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखते कि मेटलर्जी प्राचीन काल में भारत में पनपा, उनका कहना है कि मेटलर्जी का विकास मध्यकाल में हुआ था.
अल्वार सुश्रुत का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि उन्होंने कैसे नए उपकरणों का आविष्कार किया, जिनसे नाज़ुक सर्जरी और ग्राफ़्टिंग की जा सकती थी. वह कहते हैं, ‘सुश्रुत पर लिखे इतिहास में बताया गया है कि कैसे धातु के उपकरणों का इस्तेमाल ग्राफ़्टिंग के किए किया जाता था. इन्हें भारत में ईजाद किया गया था और अमेरिकियों ने इसे वैज्ञातिक तौर पर मान्यता दी. और ये न बीजेपी और न आरएसएस से प्रभावित थे.’ हालांकि मौर्यन कहते हैं, ‘विजन भारती आरएसएस का हिस्सा है. आरएसएस के लोग वैज्ञानिकों को विज्ञान पर लेक्चर दे रहे हैं.’
अल्वार कहते हैं, ‘आप पंचमहाभूत को नकार नहीं सकते. क्या बिना हवा के सांस लेना मुमकिन है. आप कुछ ही सेकेंड में मर जाएंगे. इसके अलावा क्या सबूत चाहिए. वेदांत के मुताबिक़, हमारा शरीर पांच तत्वों से बना है. क्या आप पानी के बिना जिंदा रह सकते हैं? भोजन पृथ्वी का एक प्रोडक्ट है. इससे ज़्यादा आपको क्या सबूत चाहिए? अगर आप ये मानते हैं कि पुरातन साइंस मॉडर्न साइंस से बेहतर है तो इसका मतलब है कि हम साइंस में कुछ नया नहीं सीख रहे हैं.’ (बीबीसी से साभार इमरान क़ुरैशी की रिपोर्ट)
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