लिटरेचर विद नेचर : शिमला में काव्य-कला-संस्कृति के साथ लोग आते गए और कारवाँ बनता गया

लिटरेचर विद नेचर : शिमला में काव्य-कला-संस्कृति के साथ लोग आते गए और कारवाँ बनता गया

हिमाचल प्रदेश की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘लिटरेचर विद नेचर’, उत्तराखंड की मासिक साहित्यिकी ‘कविकुंभ’ एवं बीइंग वुमन, शिमला की प्रसिद्ध स्थाओं ‘कीकली चेरिटेबल ट्रस्ट’, ‘शिमला वॉक्स’ एवं ‘पोएटिक आत्मा’ के साझा संयोजन में बीते कुछ महीनों से अनवरत हो रहीं विविधतापूर्ण प्रस्तुतियों ने राज्य के रचनाधर्मियों, बौद्धिक तबकों का ध्यान अपनी ओर जितनी शिद्दत के साथ

हिमाचल प्रदेश की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘लिटरेचर विद नेचर’, उत्तराखंड की मासिक साहित्यिकी ‘कविकुंभ’ एवं बीइंग वुमन, शिमला की प्रसिद्ध स्थाओं ‘कीकली चेरिटेबल ट्रस्ट’, ‘शिमला वॉक्स’ एवं ‘पोएटिक आत्मा’ के साझा संयोजन में बीते कुछ महीनों से अनवरत हो रहीं विविधतापूर्ण प्रस्तुतियों ने राज्य के रचनाधर्मियों, बौद्धिक तबकों का ध्यान अपनी ओर जितनी शिद्दत के साथ खींचा है, उसी प्रवाह में सुमित राज एवं सीताराम शर्मा ‘सिद्धार्थ’ जैसे सजग-सक्रिय रचनाकारों के सघन प्रयासों से राजधानी के नागरजनों का एक बड़ा हुज़ूम साथ-साथ चल पड़ा है. मजरूह साब के शब्दों में कहें तो ‘मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया.’
इसी क्रम में पिछले दिनो ‘लिटरेचर विद नेचर’ के उत्साही मित्रों के साथ गुजरा एक और यादगार दिन. चारों सृजनधर्मी संस्थाओं के संयोजन में एक और स्मरणीय सृजन यात्रा और कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। प्रकृति के सान्निध्य में करीब 25 लेखकों और संस्कृति कर्मियों का दल समरहिल से पॉर्टर्स हिल, चेडविक फॉल होते हुए, देवदार, चीड़, बान के घने जंगलों के बीच से करीब पांच किलोमीटर पैदल सफर तय कर हियूंण गांव स्थित चटर्जी आर्ट गैलरी पहुंचा. रास्ते भर सृजन और कलाओं पर व्यापक संवाद करते हुए. संवाद में शामिल रहीं वन्य जीवों की कुछ मधुर गूंजें-अनुगूंजें, मीठे कलरव, चहचहाहटें. इन जीवों और वनस्पतियों को लेकर भी व्यापक बातचीत होती रही रचनाधर्मियों में. चेड़विक फॉल की खूबसूरती ने सबको आकर्षित और अचंभित किया तो पानी में ऊपर की बस्तियों से घुलकर आते प्रदूषण की बदबू ने सबको आहत और क्षुब्ध भी.
चारों सृजनधर्मी संस्थाओं के साझा संवाद और सक्रियता का यह भी एक उल्लेखनीय संगमन कहा जा सकता है कि यहां कुछ भी कल पर छोड़ने का चलन नहीं है. जिस प्रदूषण ने विक्षुब्ध किया, तुरंत सहयात्री एवं राजधानी के जागरूक रचनाकार सीताराम शर्मा ‘सिद्धार्थ’ ने प्रस्तावित कर दिया कि इस संदर्भ में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को लिखित में भेजा जाएगा. और आगे इस तरह रचनाकारों की टोली पहुंची धरोहर के रूप में घोषित हियूंण गांव. प्राचीन काल की एक लोक कथा सुनते हुए भी कि एक राक्षस के आतंक और प्रताड़ना से यहां के इष्ट देवों, नाग और गण देवता ने मुक्त किया था गांव वासियों को, राक्षस को चेडविक फॉल की विशाल शिला में तब्दील करते हुए.


हियूंण गांव, जहां स्थित है चटर्जी कला दीर्घा. इसी कलादीर्घा के प्रांगण में तय था कवि गोष्ठी का आयोजन. बंगाल स्कूल परम्परा के ख्यात चित्रकार प्रो. हिम कुमार चटर्जी के सुखद सान्निध्य और आतिथ्य में. प्रो.चटर्जी ने अपनी और स्वनामधन्य पिता सनत कुमार चटर्जी की कला साधना और कला यात्रा के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला. इन दिनों उनकी रेसीडेंसी में सृजनरत 90 वर्षीय ख्यात चित्रकार और कवि वाणी प्रसन्ना भी सपत्नीक इस संवाद में शामिल हुए, कविता पाठ भी किया. सात वर्षीय बालिका कवि वैराही ठाकुर निराला ने भी अपनी कविता पढ़कर हर किसी को मंत्रमुग्ध किया.


मनोहर प्रकृति की गोद में संयोजित सरस कवि गोष्ठी में गुप्तेश्वर नाथ उपाध्याय, ओम प्रकाश शर्मा, भारती कुठियाला, मोनिका छट्टू, नरेश देयोग, रमेश ढढ़वाल, सुमित राज, स्नेह नेगी, गुलपाल वर्मा, सीताराम शर्मा सिद्धार्थ, मधु कात्यायनी, लेखराज चौहान, राधा सिंह, राकेश भारद्वाज, यादव शर्मा, नाशि चौहान आदि करीब 25 कवियों ने अपनी-अपनी ताज़ा रचनाओं का पाठ-वाचन किया. इस दौरान कविताओं पर स्फुट, गंभीर-सहज अंतरसंवाद भी प्रीतिकर रहा. शायर और अंग्रेजी कथाकार सुमित राज के संयोजन एवं वंदना भागड़ा के सहयोग से यह प्रस्तुति प्रकृति के सानिध्य में कला और कविता की जुगलबंदी का अत्यंत मनोहारी, यादगार समागम रही.

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