सरमा सरकार : मिया-असमिया टकराव कोई नई बात नहीं !

सरमा सरकार : मिया-असमिया टकराव कोई नई बात नहीं !

प्रभाकर मणि तिवारी : असम में मिया म्यूजियम के खुलने के दो दिनों के भीतर ही सील करने और इस मामले से जुड़े पांच लोगों की गिरफ्तारी का मामला भले अभी सुर्खियों में है, लेकिन स्थानीय असमिया लोग और मिया समुदाय के बीच टकराव का इतिहास काफी लंबा है. बीजेपी के सत्ता में आने के

प्रभाकर मणि तिवारी : असम में मिया म्यूजियम के खुलने के दो दिनों के भीतर ही सील करने और इस मामले से जुड़े पांच लोगों की गिरफ्तारी का मामला भले अभी सुर्खियों में है, लेकिन स्थानीय असमिया लोग और मिया समुदाय के बीच टकराव का इतिहास काफी लंबा है. बीजेपी के सत्ता में आने के बाद यह टकराव और तेज हुआ है. अब पुलिस ने दावा किया है कि म्यूजियम का संबंध अल-कायदा से है. मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा कहते हैं कि म्यूजियम में रखी वस्तुओं में सिर्फ लुंगी ही उनकी थी, बाकी चीजें असमिया थीं. असम सरकार पर पहले भी अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेने के आरोप लगते रहे हैं.
मिया समुदाय पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) से असम में आये मुस्लिम प्रवासियों की पीढ़ियां हैं. इन्हे आम तौर पर मिया (मियां) कहा जाता है. इस समुदाय के लोगों ने कई चरणों में असम में प्रवेश किया. इसकी शुरुआत उस समय हुई जब तत्कालीन ब्रिटिश शासकों ने इस तबके के लोगों को 1890 के दशक के उत्तरार्ध में असम में ब्रह्मपुत्र नदी के दोनों किनारों पर खेती और दूसरे कामों के लिए बसाया था. इस तबके के लोगों की आबादी बढ़ने के कारण राज्य की जनसांख्यिकीय संरचना में काफी बदलाव हुए हैं.
इसी मुद्दे पर वर्ष 1979 से 1985 तक लगातार छह वर्षों तक असम आंदोलन भी चला था. असम के मूल निवासियों ने इन लोगों पर उनके रोजगार छीनने, भाषा और संस्कृति को खराब करने का आरोप लगाया था. उसके बाद हाल के वर्षों में मिया समुदाय और राज्य के मूल निवासियों के बीच टकराव लगातार बढ़ा है. राज्य में इस तबके के लोगों को सम्मान की निगाह से नहीं देखा जाता. मिया म्यूजियम स्थापित करने का प्रस्ताव सबसे पहले कांग्रेस विधायक शरमन अली अहमद ने वर्ष 2020 में किया था जिसे सरकार ने खारिज कर दिया था. 28 अक्टूबर 2020 को हिमंता बिस्वा सरमा, जो तब सर्बानंद सोनोवाल सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे, ने कहा था, “असम में जब तक बीजेपी सत्ता में है, वो मिया म्यूजियम ना खुलने देगी और ना रहने देगी.”
अब असम के ग्वालपाड़ा जिले में मुस्लिम समुदाय से जुड़े मिया म्यूजियम के उद्घाटन और फिर सील करने वाले मामले ने राज्य की सियासत में उबाल ला दिया है. इसका उद्घाटन रविवार को किया गया था. लेकिन मंगलवार को ही इसे सील कर दिया गया. असम मिया परिषद के अध्यक्ष मोहर अली ने प्रधानमंत्री आवास योजना यानी पीएमएवाई के तहत आवंटित घर के परिसर में म्यूजियम की स्थापना की थी.
पीएमएवाई के तहत आवंटित घर में म्यूजियम के खुलने से विवाद पैदा हो गया और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने इसे तत्काल बंद करने की मांग की. बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के सदस्य अब्दुर रहीम जिब्रान ने घर में म्यूजियम बनाए जाने के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. खेती और मछली पकड़ने में काम आने वाले कुछ औजारों और लुंगी आदि को म्यूजियम में प्रदर्शित किया गया था. अली ने दावा किया कि ये वस्तुएं मिया समुदाय की पहचान हैं. म्यूजियम को सील करने के बाद पुलिस ने उनको हिरासत में ले लिया है. पुलिस का दावा है कि इस म्यूजियम के तार अल-कायदा से जुड़े हैं. इस मामले में अब तक पांच लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
इससे पहले मुख्यमंत्री ने कहा था कि मिया समुदाय के कुछ सदस्यों की ऐसी गतिविधियों से असमिया पहचान के लिए खतरा पैदा हो गया है. उनका सवाल था कि वे (मिया समुदाय) कैसे दावा कर सकते हैं कि हल उनकी पहचान है? राज्य के सभी किसान सदियों से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. वे सिर्फ लुंगी पर अपना दावा कर सकते हैं. सरमा ने कहा कि मिया म्यूजियम में जो कुछ भी प्रदर्शित किया गया था, वह दरअसल असमिया संस्कृति से संबंधित हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सत्ता में लौटने और सरकार की कमान हिमंता बिस्वा सरमा के हाथों में जाने के बाद इस तबके के प्रति अपने रवैए को लेकर सरकार अक्सर कठघरे में रही है. बीते विधानसभा चुनाव में हिमंता ने साफ कहा था कि उनको मिया मुसलमानों के वोट नहीं चाहिए. राज्य के बहुत से लोगों का मानना है कि प्रवासी मुस्लिमों की वजह से असम ने अपनी पहचान, संस्कृति और भूमि खो दी है. सरकार ने सत्ता में आने के बाद कई विवादास्पद कानून तो बनाए ही, बड़े पैमाने पर अवैध अतिक्रमण हटाने का अभियान भी चलाया. यह अभियान कई मौकों पर काफी हिंसक साबित हुआ. लेकिन सरकार अपने रुख पर अडिग रही.
बीते साल जुलाई में मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री सरमा ने पशुओं की कटाई और ढुलाई के नियमन के लिए एक विधेयक सदन में पेश किया था. इसी तरह राज्य में सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए दो बच्चों वाला नियम अनिवार्य किया गया है. हालांकि अनुसूचित जाति, जनजाति और चाय बागान के आदिवासी मजदूरों को इससे छूट दी गई है. इस फैसले पर भी काफी विवाद हुआ था. माना गया था कि सरकार के निशाने पर राज्य के अल्पसंख्यक हैं. उससे पहले मुख्यमंत्री ने अल्पसंख्यकों से जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन उपायों को अपनाने की सलाह दी थी. राज्य में चलने वाले मदरसे भी सरकार का कोपभाजन रहे हैं. सरकार जिहादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप में कई मदरसों पर बुलडोजर भी चला चुकी है. सरकार ने हाल ही में प्रदेश में चल रहे करीब 700 सरकारी मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदल दिया था.
बारपेटा के कांग्रेस सांसद अब्दुल खालेक कहते हैं कि लोगों को अपने घर में सांस्कृतिक म्यूजियम या पुस्तकालय खोलने का अधिकार है, लेकिन किसी सामुदायिक म्यूजियम की कोई जरूरत नहीं है. साथ ही किसी व्यक्ति को म्यूजियम स्थापित करने के लिए गिरफ्तार करना और आतंकवाद-निरोधी धाराओं में मामला दर्ज करना भी अन्याय है. दक्षिणी असम में करीमगंज उत्तर के कांग्रेस विधायक कमलाख्या डे पुरकायस्थ सामुदायिक म्यूजियम का समर्थन करते हुए कहते हैं कि असम में मतदान करने वाले बंगालियों की संस्कृति और पहचान को संरक्षित करना जरूरी है.

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