ऑनलाइन वर्चुअल शिक्षा कक्ष की अवधारणा ही दुनिया के करोड़ों वंचित मासूमों का सपना

ऑनलाइन वर्चुअल शिक्षा कक्ष की अवधारणा ही दुनिया के करोड़ों वंचित मासूमों का सपना

ध्यान होगा कि बीते दुखद अतीत के दौरान महामारी से निपटने के उपायों के तहत, दुनिया भर में अनेक स्थानों पर स्कूल भी बन्द करने पड़े थे, जिससे विश्व भर में बच्चों की शिक्षा में व्यवधान पैदा हुआ. स्कूल खुल और बन्द हो रहे हैं, अलबत्ता कुछ बच्चों को अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए

ध्यान होगा कि बीते दुखद अतीत के दौरान महामारी से निपटने के उपायों के तहत, दुनिया भर में अनेक स्थानों पर स्कूल भी बन्द करने पड़े थे, जिससे विश्व भर में बच्चों की शिक्षा में व्यवधान पैदा हुआ. स्कूल खुल और बन्द हो रहे हैं, अलबत्ता कुछ बच्चों को अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए ऑनलाइन माध्यम भी उपलब्ध हैं, जबकि बहुत से बच्चे इससे वंचित हैं. मगर, निस्सन्देह, कमज़ोर हालात वाले बच्चे, तालाबन्दी उपायों से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए.
स्वास्थ्य और अन्य तरह के संकटों के कारण, स्कूलों को बन्द किया जाना, कोई नई बात नहीं है, कम से कम विकासशील देशों में तो नहीं, और उनके सम्भावित विनाशकारी परिणाम भी सर्वविदित हैं. बच्चों की शिक्षा बादित होती है और बहुत से बच्चे हमेशा के लिये स्कूल से हट जाते हैं, बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा में बढ़ोत्तरी, किशोर उम्र में ही लड़कियों का गर्भवती हो जाना और छोटी उम्र में ही विवाह. महामारी की तरह के संकटों से इस तरह से अलग है कि इसने पूरी दुनिया में, एक साथ बच्चों को प्रभावित किया है. जब स्कूल बन्द होते हैं तो निर्धनतम और बहुत कमज़ोर हालात वाले बच्चों को सबसे ज़्यादा नुक़सान उठाना पड़ता है. इसलिये, जैसे-जैसे, देशों ने तालाबन्दी उपाय लागू करने शुरू किये, संयुक्त राष्ट्र ने बच्चों की शिक्षा और सीखना जारी रखने, और यथासम्भव स्कूलों को सुरक्षित माहौल में फिर से खोले जाने की हिमायत में तेज़ी से आवाज़ उठाई.
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और साँस्कृतिक संगठन – यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले कहती हैं कि वह सब दुर्भाग्य की बात है, दुनिया भर में शिक्षा जारी रखने में उत्पन्न हुई बाधा का स्तर और गति, अतुल्य है, अगर यही स्थिति जारी रही तो, इससे शिक्षा का अधिकार ही ख़तरे में पड़ सकता है. छात्रों और अध्यापकों को इस तरह के टैक्नॉलॉजी तरीक़ों और डिजिटल उपकरणों से जूझना पड़ा जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखे थे. वह एक ऐसा अनुभव था, जो बहुत से लोगों को बहुत मुश्किल लगा जिसे वो समझ नहीं पाए, मगर, यही एक मात्र उपाय था जिसके माध्यम से किसी भी तरह की शिक्षा जारी रखी जा सकती थी. याद रहे कि उनमें बहुत से लोग अपने घरों और कमरों में सीमित थे.
अलबत्ता, लाखों बच्चों के लिये, ऑनलाइन वर्चुअल शिक्षा कक्ष की अवधारणा ही एक ऐसा सपना है, जो कभी वास्तविक रूप नहीं ले सकता. अप्रैल में, यूनेस्को ने डिजिटल उपकरणों के माध्यम से दूरस्थ शिक्षा की उपलब्धता में चौंका देने वाली असमानता और विभाजन उजागर किया. आँकड़ों के अनुसार, लगभग 83 करोड़ बच्चों को कोई कम्प्यूटर उपलब्ध नहीं था. विशेष रूप में, कम आय वाले देशों में तस्वीर और भी निराशाजनक थी: सब सहारा अफ्रीका में, लगभग 90 प्रतिशत बच्चों के घरों में कम्प्यूटर उपलब्ध नहीं थे, जबकि 82 प्रतिशत बच्चों को ऑनलाइन पहुँच यानि इंटरनेट सुविधा हासिल नहीं थी. जून में, यूनीसेफ़ के एक अधिकारी रॉबर्ट जेनकिन्स ने कहा था, “महामारी फैलने से पहले भी, शिक्षा का संकट मौजूद था. अब हमारे सामने, अब और भी अधिक विभाजनकारी और गहराता शैक्षिक संकट है.”
अलबत्ता, ऐसे बहुत से विकासशील देशों में, जहाँ बहुत से छात्रों के लिये, ऑनलाइन माध्यम और कम्प्यूटर कोई विकल्प नहीं हैं, वहाँ रेडियो अब भी लाखों लोगों तक पहुँच बनाने में एक सशक्त माध्यम साबित हुआ है, और किसी ना किसी रूप में, शिक्षा जारी रखने में रेडियो का प्रयोग किया जा रहा है. दक्षिण सूडान में, संयुक्त राष्ट्र मिशन द्वारा चलाए गए रेडियो मिराया ने, समाचारों के एक विश्वस्त सूत्र के रूप में अपना नाम बनाया है. इस रेडियो स्टेशन ने ऐसे बच्चों के लिये शैक्षिक कार्यक्रम प्रसारित किये, जो महामारी से निपटने के उपायों के कारण लगी पाबन्दियों में, अपनी स्कूली शिक्षा जारी नहीं रख पाए. इस तरह के उपायों के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र ने अगस्त में आगाह करते हुए कहा था कि शिक्षा बाधित रहने का दीर्घकालीन असर ये पड़ेगा कि अफ्रीका में, बच्चों की एक ऐसी पीढ़ी तैयार होगी जो शिक्षा से वंचित रह जाएगी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वे के अनुसार, 39 सब सहारा देशों में पाया गया कि केवल 6 देशों में ही स्कूल खुले थे और 19 देशों में, केवल आँशिक रूप में ही स्कूल खुले थे.
वर्ष के अन्त तक, दुनिया भर में, लगभग 32 करोड़ बच्चे, स्कूलों से बाहर थे. यूनीसेफ़ ने तमाम देशों से, स्कूल खोले जाने और कक्षाओं को यथासम्भव सुरक्षित बनाने के मुद्दे को प्राथमिक देने की पुकार लगाई थी. यूनीसेफ़ के शिक्षा मामलों के वैश्विक प्रमुख रॉबर्ट जैनकिन्स का कहना है कि महामारी के दौरान, हमने स्कूलों के बारे में जो कुछ सीखा है, वो स्पष्ट है: स्कूलों को खुले रखने के फ़ायदे, उन्हें बन्द रखने पर आने वाली लागत की तुलना में कहीं ज़्यादा हैं, और स्कूलों को राष्ट्रीय स्तर पर बन्द रखने से हर हाल में बचा जाना चाहिये. जैसे-जैसे, दुनिया भर में, कोविड-19 के मामलों में फिर से उछाल देखा गया है, और वैक्सीन, अब भी बहुत से लोगों की पहुँच से दूर है, तो अन्धाधुन्ध तालाबन्दियाँ लागू करने के बजाय, देशों में ज़्यादा सम्वेदनशील और तार्किक नीतियों की ज़रूरत है.
सबूतों से स्पष्ट होता है कि स्कूल, महामारी फैलने के मुख्य स्रोत या वाहन नहीं हैं. फिर भी हम ये चिन्ताजनक चलन देख रहे हैं कि देशों की सरकारें एक बार, स्कूलों को ही पहले उपाये के रूप में बन्द करने पर तुले हुए हैं, जबकि स्कूलों को बन्द करना, अन्तिम उपाय होना चाहिये. कुछ मामलों में, ऐसा, समुदायों के स्तर पर करने के बजाय, राष्ट्रीय स्तर पर किया जा रहा है, और बच्चों को अपनी शिक्षा, मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य और सुरक्षा, पर विनाशकारी प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है.
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हैनरिएटा फ़ोर कहती हैं, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ का कहना है कि महामारी का विकराल रूप शुरू हुए, जैसे-जैसे समय बीतता गया, हमें, स्वतः यह ध्यान आने लगा कि दुनिया भर में तालाबन्दियों और पाबन्दियों ने कितना बड़ा और गम्भीर शिक्षा संकट उत्पन्न कर दिया. हर दिन बीतने के साथ, बच्चों से, स्कूलों में निजी अनुभवों के साथ शिक्षा हासिल करने के अवसर और भी ज़्यादा दूर होते और पीछे छूटते गए. सबसे ज़्यादा वंचित हालात में रहने वाले व हाशिये पर धकेल दिये गए बच्चों को, सबसे भारी नुक़सान उठाना पड़ा है. यूनीसेफ़ के अनुसार, मार्च 2020 से फ़रवरी 2021 तक जिन 14 देशों में स्कूल बन्द रहे, उनमें से 9 देश, लैटिन अमेरिका और कैरीबियाई क्षेत्र के हैं जहाँ लगभग 10 करोड़ स्कूली बच्चे प्रभावित हुए.
इन देशों में से, पनामा में स्कूल, लगभग पूरे समय ही बन्द रहे, उसके बाद अल सल्वाडोर, बांग्लादेश और बोलीविया का स्थान रहा. संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार, इसके अतिरिक्त, लगभग 21 करोड़ 40 लाख बच्चों ने, निजी अनुभव के साथ शिक्षा हासिल करने के तीन-चौथाई से भी ज़्यादा अवसर गँवा दिये. ये संख्या, हर सात स्कूली बच्चों में से एक बच्चे के बराबर है. जबकि लगभग 88 करोड़ 80 लाख बच्चों को, उनके स्कूल पूरी तरह या आंशिक रूप से बन्द होने के कारण, अपनी स्कूली शिक्षा में व्यवधानों का सामना करना पड़ रहा है. स्कूल बन्द होने से बच्चों की शिक्षा और उनके मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य व बेहतरी पर गम्भीर असर पड़ा है. वंचित हालात में रहने वाले बच्चे और जिन्हें दूरस्थ साधनों व उपकरणों के माध्यम से शिक्षा हासिल करने के संसाधन उपलब्ध नहीं हैं, उनका सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ है, क्योंकि यही बच्चे, फिर कभी स्कूली शिक्षा को वापिस नहीं लौट पाने के हालात का, सबसे अधिक सामना कर रहे हैं.
इतना ही नहीं, इन बच्चों को, बाल विवाह या बाल श्रम में धकेल दिये जाने का भी बहुत जोखिम है. दुनिया भर में, स्कूली बच्चे, अपने साथियो के साथ बातचीत करने, सहायता पाने की ख़ातिर और स्वास्थ्य व टीकाकरण सेवाओं के साथ-साथ पोषक भोजन ख़ुराक के लिये भी, स्कूलों पर निर्भर होते हैं. जितनी ज़्यादा लम्बी अवधि के लिये स्कूल बन्द रहे, उतने ही लम्बे समय तक, ये बच्चे अपने बचपन के लिये, इन अति महत्वपूर्ण कारकों से वंचित रहे. यूनीसेफ़ ने तमाम देशों की सरकारों से हर एक बच्चे की विशिष्ट आवश्यकताओं पर भी ध्यान दिये जाने का आग्रह किया, जिसमें बच्चों की पीछे छूट चुकी शिक्षा को पूरा करने, स्वास्थ्य, पोषण, और मानसिक स्वास्थ्य जैसी वृहद सेवाएँ शामिल हों. साथ ही स्कूलों में बच्चों व किशोरों के सम्पूर्ण विकास को बढ़ावा देने और उनके सम्पूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के संरक्षा उपाय भी किये जाएँ.

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