‘हिंदू राष्ट्र अभियान’ से ख़तरे में संविधान : पी. साईनाथ

‘हिंदू राष्ट्र अभियान’ से ख़तरे में संविधान : पी. साईनाथ

रेमन मैग्सेसे से सम्मानित देश के जाने माने पत्रकार पी. साईनाथ ने ‘हिंदू राष्ट्र’ के लिए चल रहे अभियान के बीच भारतीय संविधान को गंभीर खतरे में बताते हुए कहा है कि लोगों को संविधान की रक्षा के लिए एकजुट होना चाहिए. हर दिन भारतीय संविधान, जो स्वतंत्रता संग्राम का सार है, पर हमला हो

रेमन मैग्सेसे से सम्मानित देश के जाने माने पत्रकार पी. साईनाथ ने ‘हिंदू राष्ट्र’ के लिए चल रहे अभियान के बीच भारतीय संविधान को गंभीर खतरे में बताते हुए कहा है कि लोगों को संविधान की रक्षा के लिए एकजुट होना चाहिए. हर दिन भारतीय संविधान, जो स्वतंत्रता संग्राम का सार है, पर हमला हो रहा है. हम किसी भी पार्टी के घोषणापत्र के मुकाबले भारतीय संविधान के बल पर ज्यादा लोगों को एकजुट कर सकते हैं. पिछले 97 वर्षों से आरएसएस अपने हिंदू राष्ट्र (अभियान) से कभी नहीं डगमगाया है और अपने उद्देश्य का 70% हासिल भी कर चुका है. इसलिए भारतीय संविधान की रक्षा के लिए सभी राजनीतिक मोर्चों पर लड़ने का समय आ गया है.
पी. साईनाथ कहते हैं कि दूसरी चीज जो सांप्रदायिक ताकत को रोक सकती है, वो हैं ऐसे राजनीतिक दल, जिनकी क्षेत्रीय जड़ें मजबूत हैं और उनकी वहां की भाषा-संस्कृति पर पकड़ है. इसका एक अच्छा उदाहरण लालू प्रसाद यादव हैं. हम उनका मजाक उड़ाते हैं, लेकिन वह जनता की भाषा बोलते हैं और उनसे जुड़ते हैं. वे लोग (बीजेपी) उनसे ही सबसे ज्यादा डरते हैं. प्रोफेसर अपूर्वानंद कहते हैं कि कार्यकर्ता, किसान, छात्र, शिक्षाविद, खिलाड़ी, कलाकार, जब वे किसी मुद्दे के समर्थन में खड़े होते हैं या किसी आंदोलन में भाग लेते हैं, तो सवाल उठाया जाता है कि आप इसका हिस्सा क्यों बन रहे हैं. आपका भाईचारा, बंधुत्व एक साजिश दिखता है. इसीलिए रिहाना जैसे गायकों या मार्टिना नवरातिलोवा जैसे खिलाड़ियों ने जब भारतीय किसानों के आंदोलन का समर्थन किया तो उनकी आलोचना की गई और उन्हें ‘टूलकिट’ साजिश का हिस्सा बताया गया.
पी. साईनाथ कहते हैं कि 2014 में भाजपा को निर्वाचित जीत मिली. बहुमत और जीत अलग-अलग होती है. संसदीय इतिहास में एक पार्टी को इतने कम वोट से बहुमत नहीं मिला. सिर्फ 31 फीसदी. मोदी और शाह ने चुनाव तो जीते लेकिन भाजपा को खत्म कर दिया। इन्होंने पार्टी को मोदी-शाह प्राइवेट लिमिटेड बना दिया है. भाजपा का 2014 में वादा था कि किसानों के लिए स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करेंगे. लागत मूल्य और इसका 50 फीसदी जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य देंगे. सरकार ने 2015 में कोर्ट में एफिडेविट देकर और आरटीआई के जवाब में कहा कि यह नहीं हो सकता है. सरकार में आने के बाद अब तक छह अलग-अलग बात कह चुकी है पार्टी. साथ ही कहा था कि विदेश से हर भारतीय के लिए 15 लाख रुपए वापस लाएंगे. मुझे कन्फ्यूजन है कि वो क्या बोले- 15 लाख लाएंगे या हर भारतीय का 15 लाख एक्सपोर्ट करेंगे. लोग सरकार से बहुत डरते हैं. मैंने मीडिया को कभी इतना डरा हुआ नहीं देखा. हम रफाल बना सकते हैं लेकिन निर्मला सीतारमन कहती हैं कि एचएएल के पास क्षमता नहीं है तो किसकी क्षमता है, नई नवेली अनिल अंबानी की कंपनी की. हर वादे पर मोदी सरकार रक्षात्मक मुद्रा में है. संघ के पास एंटीनेशनल और कम्युनल के अलावा क्या मुद्दा है? बताया जाएगा कि देश और हिंदू खतरे में है. मंदिर, मोदी की हत्या का षड्यंत्र और सांप्रदायिकता जैसे मुद्दे आगे बढ़ाएंगे.
पी. साईनाथ कहते हैं, कांग्रेस के पास मुद्दे बहुत हैं, लेकिन सवाल यह है कि विश्वसनीयता कितनी है? अतीत में उसने भी कई गलतियां की हैं. रफाल महत्वपूर्ण मुद्दा है. नोटबंदी, जीएसटी, किसानों की आत्महत्या बड़े मुद्दे हैं. भाजपा ने कैटल इकॉनामी को खत्म कर दिया. गाय की कीमत 80 से 90% कम हो गई हैं. किसान गाय को बेचने ले जाने से बचते हैं. कोल्हापुरी चप्पल को खत्म ही कर दिया है. गठबंधन होता है तो आधी सीटें मिलना भी मुश्किल रहता है गोरखपुर में सपा-बसपा मिल गए तो सीट सपा जीत गई. राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो विपक्ष चेहरा तय कर सकता है. 2004 जैसा कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तैयार करना चाहिए. सरकार को बाहर से वाम दलों ने समर्थन दिया था. इससे मनरेगा, आरटीआई, शिक्षा का अधिकार मिला. दलितों का मोदी सरकार से अलगाव हो गया है. 2014 में यूपी में कुछ दलित समुदायों ने भाजपा को वोट दिया. बसपा को नुकसान हुआ. भीमा-कोरगांव भी दलित को डरा रहे हैं. ओबीसी का अलगाव बीच में हुआ है.
इस सवाल पर कि, क्या वास्तव में देश में आंकड़ों की बाजीगरी चल रही है, पी. साईनाथ कहते हैं, आंकड़ों को तोड़-मरोड़कर पेश करने का सिलसिला पिछले कई सालों से चल रहा है. 2010 में जब नेशनल सेंपल सर्वे का आंकड़ा बहुत बुरा निकला तो मोंटेक सिंह ने दोबारा सर्वे करवाया. इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ था. यूपीए में किसानों की आत्महत्या के आंकड़े में भी गड़बड़ी हुई. 2014 में 12 राज्यों और छह केंद्र शासित प्रदेशों ने किसानों की आत्महत्या शून्य बताई. मोदी सरकार आने के बाद आंकड़ों की ये बाजीगरी नए स्तर पर चली गई है. सालों से नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का डेटा सामने नहीं आ रहा है. नेशनल न्यूट्रीशियन मॉनिटरिंग ब्यूरो हैदराबाद को बंद कर दिया गया. यह बड़ा ब्यूरो था, जो 40 साल से डेटा दे रहा था. अब नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशियन ही है. जीडीपी की परिभाषा ही बदल दी. बजट में एनेक्सचर स्टेटमेंट ऑफ रिवेन्यू खत्म कर दिया.
पी. साईनाथ कहते हैं, अभी तक सरकार में भ्रष्टाचार का कोई भी बड़ा मामला इसलिए सामने नहीं आया है कि मीडिया मालिक डरते हैं अमित शाह से. जिस्टस लोया केस, सोहराबुद्दीन केस में गवाह पलट गए. माल्या का नोटिस सीबीआई ने डायल्यूट किया. भ्रष्टाचार सामने नहीं आ रहा है. मेहुल चौकसी-नीरव मोदी के पासपोर्ट में नो -ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट किसने दिया? भ्रष्टाचार तो बहुत बढ़ा है, लेकिन मामले सामने कम आए हैं. नोटबंदी का नुकसान अभी भी दिख रहा है. बहुत सारी संपत्ति गरीब से अमीर के बीच ट्रांसफर हुई. जीएसटी कांग्रेस ने शुरू किया. साठ साल के संघर्ष से राज्यों की ताकत, संघीय ढांचे को बढ़ाया गया था. जीएसटी लाकर इसे खत्म कर दिया. राज्यों के राजस्व का मुख्य स्रोत था- सेल्स टैक्स. छोटे कारोबारियों को कंप्यूटर और सीए की आवश्यकता पड़ रही है, लागत बढ़ी है. हर फ्रंट पर सरकार फेल है, तो कामयाबी क्या बताऊं? रुपए की स्थिति देख लीजिए, पेट्रोल की कीमत देख लीजिए. रोजगार नहीं मिल रहा. सबसे बड़ी सात आईटी कंपनियों ने 2017 में 56 हजार लोगों को हटाया और भी क्षेत्रों में स्थिति खराब होने वाली है।
पी. साईनाथ कहते हैं, जो टीवी पर बैठकर फैसला कर रहा है, वह जर्नलिस्ट है ही नहीं. जर्नलिस्ट के पोलिटिकल प्रिफरेंस की बात नहीं है, मालिकों के प्रिफरेंस चलते हैं. 2009 से 10 हजार से ज्यादा पत्रकारों की नौकरी चली गई. बेहतर और स्वतंत्र सोच के पत्रकार ही निकाले गए. मीडिया और जर्नलिज्म अलग-अलग हैं. मीडिया कॉर्पोरेट स्ट्रक्चर है और जर्नलिज्म में पत्रकार हैं. 90 फीसदी बड़े मीडिया मोदी या अमित शाह की जेब में हैं. जो गया नहीं वो चुप है. एक-आध फीसदी ही खबर कर रहे हैं. बड़ा एंटी मोदी वर्ग नहीं है. बहुत डरते हैं. आयकर, ईडी, सीबीआई और अन्य आरोपों में खत्म कर देंगे. बड़े मालिकों की डील में घपला है, इसलिए वे डरते हैं. मीडिया का बड़ा वर्ग प्रो मोदी है.

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