यूरोप से लेकर अमेरिका तक ज्यादातर आप्रवासी भारतीयों में धर्म और राष्ट्रवाद की दरार

यूरोप से लेकर अमेरिका तक ज्यादातर आप्रवासी भारतीयों में धर्म और राष्ट्रवाद की दरार

हिंदू राष्ट्रवाद के कारण भारत में जारी तनाव ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, हर उस जगह पहुंच चुका है, जहां भारतीय आप्रवासी रहते हैं. यूरोप से लेकर अमेरिका तक में भारतीयों में दरार साफ दिखने लगी है. अमेरिका के न्यू जर्सी में जब अगस्त में भारत का स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था तो एडिसन में हुई

हिंदू राष्ट्रवाद के कारण भारत में जारी तनाव ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, हर उस जगह पहुंच चुका है, जहां भारतीय आप्रवासी रहते हैं. यूरोप से लेकर अमेरिका तक में भारतीयों में दरार साफ दिखने लगी है. अमेरिका के न्यू जर्सी में जब अगस्त में भारत का स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था तो एडिसन में हुई परेड में एक बुलडोजर भी शामिल हुआ. यह बुलडोजर भारत में जारी उस अभियान का प्रतीक था, जिसके तहत कई राज्यों की सरकारों ने सरकार विरोधी प्रदर्शनों में शामिल लोगों के घर गिरा दिए थे.
कैलिफॉर्निया के ऐनहाइम में एक आयोजन के दौरान कुछ लोग भारत में मुसलमानों के दमन का विरोध जताने के लिए आए तो दो पक्षों के बीच नारेबाजी शुरू हो गई. ब्रिटेन में हिंदू और मुसलमान भारतीयों के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि बात मारपीट तक पहुंच गई और पुलिस को सख्त कदम उठाने पड़े. बीते साल किसान आंदोलन के दौरान ऑस्ट्रेलिया में कुछ लोगों ने उनके समर्थन में प्रदर्शन किया तो कुछ युवक तिरंगा झंडा लेकर उस प्रदर्शन का विरोध करने पहुंच गए और नारेबाजी करने लगे.
ये वे चंद उदाहरण हैं, जो दिखाते हैं कि किस तरह भारत का राजनीतिक विभाजन आप्रवासी भारतीयों को भी बांट रहा है. विदेशों में रह रहे लगभग तीन करोड़ भारतीय दुनिया का सबसे बड़ा आप्रवासी समुदाय हैं. इनमें हर धर्म और जाति के लोग शामिल हैं. अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में तो इनकी संख्या बहुत बड़ी है और वे दशकों से शांतिपूर्ण तरीके से रहते आए हैं लेकिन हाल की घटनाओं ने ऐसी चिंताओं को बढ़ा दिया है कि भारतीय समाज का धार्मिक और राजनीतिक विभाजन आप्रवासी समुदाय में भी घर बना रहा है. कई जानकार कहते हैं कि इसकी शुरुआत 2014 में ही हो गई थी, जब भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनाव जीतकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाई थी. सत्ता में आने के बाद से ही भाजपा पर मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्य समुदायों के दमन का आरोप लगता रहा है.
सदर्न कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी में धार्मिक अध्ययन विभाग के डीन वरुण सोनी कहते हैं कि आप्रवासी समुदाय को हिंदू राष्ट्रवाद ने उसी तरह विभाजित कर दिया है, जैसे अमेरिका में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने पर हुआ था. इस यूनिवर्सिटी में करीब 2,000 भारतीय छात्र पढ़ते हैं. हालांकि कैंपस में अभी किसी तरह का विवाद नजर नहीं आया है लेकिन यूनिवर्सिटी को तब खासा विरोध झेलना पड़ा, जब उसने एक आयोजन में हिस्सा लिया, जिसे ‘डिसमैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व’ कहा गया था.
2021 में हुआ यह आयोजन हिंदुत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना था. बहुत से लोग हिंदुत्व को हिंदू धर्म से अलग करके देखते हैं और इसे एक राजनीतिक अवधारणा मानते हैं, जिसका मकसद भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाना है. आलोचक कहते हैं कि हिंदुत्व की अवधारणा में मुस्लिम और ईसाइयों जैसे अन्य धर्मों के लोगों के लिए भारत में कोई जगह नहीं है. सोनी कहते हैं कि यह आवश्यक है कि विश्वविद्यालय ऐसी जगह बने रहें, जहां हम सभ्य तरीके से तथ्यों के आधार पर विभन्न मुद्दों पर बात कर सकें. सोनी को चिंता है कि हिंदू राष्ट्रवाद के कारण हो रहा विभाजन छात्रों की मानसिक स्थिति को भी प्रभावित कर रहा है.
सोनी ने कहते हैं, यदि किसी व्यक्ति को उनकी पहचान के लिए हमला झेलना पड़ता है, उपहास सहना पड़ता है या हिंदू अथवा मुसलमान होने के कारण उन्हें बलि का बकरा बनाया जाता है तो मुझे ठीक-गलत की नहीं, उनके स्वास्थ्य की चिंता है. अनंतानंद रामबचन त्रिनिदाद और टबैगो में जन्मे भारतीय मूल के हिंदू हैं. सारी उम्र वह हिंदू धर्म का पालन करते आए हैं. धर्मशिक्षा पढ़ाने वाले प्रोफेसर रामबचन अब रिटायर हो चुके हैं. मिनेसोटा एक मंदिर में वह धर्मशिक्षा पढ़ाते थे. वह कहते हैं कि जब वह कुछ ऐसे संगठनों से जुड़े जो हिंदू राष्ट्रवाद का विरोध करते हैं तो उनके खिलाफ शिकायतों की बाढ़ आ गई. रामबचन कहते हैं कि हिंदू राष्ट्रवाद के विरोध को हिंदू धर्म और भारत का विरोध कहा जाने लगा है, जो सरासर गलत है.
बीते साल किसान आंदोन के दौरान ऑस्ट्रेलिया में कुछ लोगों ने उनके समर्थन में एक रैली का आयोजन किया. कुछ युवक भारतीय झंडा लेकर उस रैली में पहुंच गए और ‘भारत माता की जय’ व ‘मोदी जिंदाबाद’ के नारे लगाने लगे, जिसके बाद उन्हें वहां से खदेड़ दिया गया. यह विवाद बढ़ते-बढ़ते इस हद तक पहुंच गया कि एक समूह ने सिख युवकों पर हमला कर दिया. पुलिस ने उन युवकों में से एक को गिरफ्तार कर लिया. सोशल मीडिया पर उस युवक के पक्ष में बड़ा अभियान चलाया गया जिसमें भारतीय जनता पार्टी के समर्थक समूह शामिल हुए. उस युवक की कानूनी लड़ाई के लिए धन भी जमा किया गया. बाद में उस युवक को सजा हुई और उसे ऑस्ट्रेलिया वापस भेज दिया गया.
उस घटना ने ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले प्रवासी भारतीय समाज में बड़ा बंटवारा कर दिया. युवक द्वारा मारपीट करने की आलोचना करने पर लोगों को भारत विरोधी और हिंदू धर्म विरोधी आदि कहा गया. सिडनी में रहने वाले राजवंत सिंह कहते हैं कि उस घटना ने भारतीय जनता पार्टी के प्रति उनका मोहभंग कर दिया. वह बताते हैं, मैं किसान परिवार से आता हूं. मैं नरेंद्र मोदी को समर्थक था. लेकिन किसान आंदोलन में जब मैंने किसानों के हक की बात की, तो मुझे राष्ट्रविरोधी कह दिया गया. यह कैसा राष्ट्र प्रेम है, जो हक की बात नहीं करने देता? इसका दूसरा पहलू यह है कि विदेशों में बसे कुछ हिंदू अपने विचारों के कारण प्रताड़ित महसूस करते हैं.
वॉशिंगटन में हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन के महाप्रबंधक समीर कालरा कहते हैं, हिंदुओं के लिए स्वतंत्र अभिव्यक्ति की गुंजाइश कम हो रही है. अगर आप भारत सरकार की ऐसी नीतियों का समर्थन करो, जिनका धर्म से कोई लेना देना नहीं है, तो भी आपको हिंदू राष्ट्रवादी कहा जाता है. कोएलिशन ऑफ हिंदूज नॉर्थ अमेरिका की प्रवक्ता पुष्पित प्रसाद कहती हैं कि वह उन युवाओं की काउंसलिंग करती हैं, जिन्हें उनके दोस्त इसलिए छोड़ गए क्योंकि वे भारत में जारी जंग में किसी एक पक्ष के साथ हो लेने को तैयार नहीं थे. प्रसाद बताती हैं, अगर वे किसी का पक्ष नहीं लेते या उनकी कोई राय नहीं है, तो उन्हें हिंदू राष्ट्रवादी मान लिया जाता है. उनके मूल देश और धर्म के कारण उनका विरोध होता है.
इन दोनों ही संस्थाओं ने ‘डिसमैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व’ कॉन्फ्रेंस का विरोध किया था. उन्होंने इसे हिंदू विरोधी बताया और विभिन्न पक्षों को जगह ना देने का आरोप लगाया. 25 वर्षीय सरव्या ताडेपल्ली जैसे कई हिंदू-अमेरिकी हैं, जो मानते हैं कि बोलना फर्ज है. मसैचुसेट्स में रहने वालीं ताडेपल्ली हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स की सदस्य हैं. उनका कहना है कि हिंदू राष्ट्रवाद के खिलाफ उनका आंदोलन हिंदू धर्म के बारे में उनकी जागरूकता का ही परिणाम है. ताडेपल्ली कहती हैं, यदि हिंदू धर्म का मूलभूत सिद्धांत है कि ईश्वर सभी में वास करता है, हरकोई उसी का रूप है, तो हिंदू होने के नाते यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी हो जाती है कि हम इंसानों की बराबरी के लिए आवाज उठाएं. यदि किसी इंसान को कमतर करके आंका जाता है, उसके अधिकारों का उल्लंघन होता है तो फिर उस गलत को सही करना हमारा कर्तव्य है.

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