भारत के भाग्यविधाता वोटरों की मुट्ठी में कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का भविष्य

भारत के भाग्यविधाता वोटरों की मुट्ठी में कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का भविष्य

कांग्रेस के पूर्व नेता और तीन प्रधानमंत्रियों के वंशज, राहुल गांधी भारत की “सबसे पुरानी पार्टी” में जान फूंकने के लिए मार्च कर रहे हैं. पांच महीनों तक भारतीय शहरों, गांवों में 3,570 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा चलेगी. अब तक तीन राज्यों – तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक का दौरा हो जा चुका है. पार्टी को

कांग्रेस के पूर्व नेता और तीन प्रधानमंत्रियों के वंशज, राहुल गांधी भारत की “सबसे पुरानी पार्टी” में जान फूंकने के लिए मार्च कर रहे हैं. पांच महीनों तक भारतीय शहरों, गांवों में 3,570 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा चलेगी. अब तक तीन राज्यों – तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक का दौरा हो जा चुका है. पार्टी को उम्मीद है कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ देश में महंगाई, बेरोजगारी और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दों को ना सिर्फ राजनीतिक बहसों में सबसे आगे लेकर आएगी बल्कि ये पार्टी के राजनीतिक पुनरुत्थान का रास्ता खोलेगी. साथ ही पार्टी यह भी चाहती है कि गांधी को एक जननेता के तौर पर फिर से खड़ा किया जाए.
राहुल गांधी ने कर्नाटक राज्य में एंट्री करने के बाद समर्थकों की भीड़ से कहा, ‘हमें भारत को एकजुट करने से कोई नहीं रोक सकता. हमें भारत की आवाज उठाने से कोई नहीं रोक सकता. भारत जोड़ो यात्रा को कन्याकुमारी से कश्मीर जाने से कोई नहीं रोक सकता.’ यह बीते सालों में कांग्रेस पार्टी का सबसे बड़ा सार्वजनिक अभियान है जो पार्टी के नये अध्यक्ष के लिए चुनाव से पहले शुरू किया गया है. 17 अक्टूबर को नये अध्यक्ष के चुनाव के लिए मुख्य उम्मीदवार दो कांग्रेस सांसद हैं- अनुभवी मल्लिकार्जुन खड़गे और युवा राजनयिक से राजनेता बने शशि थरूर.
आजादी के बाद 60 सालों से ज्यादा समय तक भारत पर शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी में 25 सालों में पहली बार एक गैर-गांधी परिवार के कांग्रेसी को सत्ता में लाने की तैयारी है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा ‘सिर्फ एक मजबूत कांग्रेस ही विपक्षी एकता के लिए ताकत के स्तंभ की तरह काम कर सकती है. अगर मार्च के परिणामों में से एक नतीजा विपक्षी एकता के तौर पर सामने आता है, तो यह स्वागत के लायक है. लेकिन मकसद निश्चित रूप से विपक्षी एकता नहीं है. हमारा ध्यान पार्टी को मजबूत करने पर है.’
रमेश कहते हैं कि मार्च का मकसद पूरे देश में पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरना और उन्हें इस पुनरुद्धार प्रक्रिया का हिस्सा बनाना था.उन्होंने कहा, ‘यह अवसर खोलता है और धारणाओं को बदलता है. हम नैरेटिव तय कर रहे हैं. पार्टी को अब जिस चीज की जरूरत है, वह है ताजा ऊर्जा और लंबे समय तक नेतृत्व संकट के बाद उद्देश्य की भावना. हमारे कई हाई-प्रोफाइल लोगों ने बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ दी है.’ सदी भर के इतिहास में ज्यादातर समय में भारतीय राजनीतिक पटल पर दबदबा रखने वाली कांग्रेस पार्टी 2024 में अगले आम चुनाव से पहले खुद को फिर से मजबूत करने की कोशिश में है. पहले के नेतृत्व से बहुत दूर खड़ी कांग्रेस अब भारत के 31 राज्यों और संघशासित प्रदेशों में से सिर्फ दो राज्यों में सत्ता में है, छत्तीसगढ़ और राजस्थान. इसके अलावा तमिलनाडु, बिहार और झारखंड में, यह क्षेत्रीय भागीदारों के साथ सत्ता में साझीदार है.
अतीत में, भले ही वह सत्ता से बाहर रही, फिर भी कम से कम विपक्ष का आधार बनी रही. हालांकि, पहली बार पार्टी से यह भूमिका भी छीन ली गई है और वह अपनी ये स्थिति खो रही है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के पतन को बहुसंख्यकवाद के उदय के साथ-साथ पार्टी से जुड़े अंदरुनी कारकों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. राजनीतिक विश्लेषक जोया हसन का मानना ​​​​है कि हिंदू राष्ट्रवाद का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में पार्टी की विफलता और धार्मिक और जातिगत ध्रुवीकरण की वजह से मध्यमार्गी जगह का सिकुड़ना कांग्रेस के संकट की वजह हो सकते हैं. यह संकट व्यक्तिगत या संगठनात्मक विफलताओं के कारण नहीं है. हिंदू राष्ट्रवाद ने कांग्रेस पार्टी और भारत के बहुलवादी विचार के लिए सबसे बड़ी चुनौती पेश की है. रणनीतिक और वास्तविक दोनों ही तौर पर, धर्म और राजनीति का मिश्रण कांग्रेस के लिए चुनावी फायदे की गारंटी नहीं देता. कांग्रेस को विभाजनकारी राजनीति के विकल्प के तौर पर एकीकरण वाला नजरिया पेश करने की जरूरत है. उनकी राय में, कांग्रेस पार्टी को बीजेपी के सामने जनसंपर्क अभियानों और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की लड़ाई को वैचारिक विरोध बनाने की जरूरत है.
पार्टी के रणनीतिकार समझते हैं कि कांग्रेस सत्तारूढ़ बीजेपी के रथ को अपनी पर्याप्त सीटें जीतने की क्षमता हासिल किये बिना नहीं रोक सकती. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 और 2019 के आम चुनावों में पूर्ण बहुमत हासिल किया. दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी, 2014 में लोकसभा में 44 सीटों के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गई और 2019 में यह बढ़कर सिर्फ 52 तक पहुंची. 2014 से अब तक 49 में से 39 राज्यों के चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा है. कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा कि ये स्थिति मार्च के लिए बिल्कुल मुफीद है. यह कांग्रेस के वोट को मजबूती देने वाले ठीक उन्हीं इलाकों से गुजर रहा है. इसका मतलब यह है कि 2014 और 2019 में भाजपा का समर्थन नहीं करने वाले दो-तिहाई मतदाताओं का एक ठोस हिस्सा.
बीजेपी ने इस मार्च को कमतर आंकते हुए इसे ‘दिशाहीन’ करार दिया और कहा कि इसका एकमात्र उद्देश्य दक्षिणपंथी, राष्ट्रवादी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) आंदोलन पर हमला करना था, जिससे बीजेपी की जड़ें जुड़ी हैं. कर्नाटक के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री केशव सुधाकर ने बयान दिया है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का एक शब्द में वर्णन- दिशाहीन होगा. ऐसा लगता है कि बेवजह की रैली सिर्फ आरएसएस और उसकी विचारधाराओं पर हमला करने के उद्देश्य के लिए है. मोदी कई दशकों में सबसे शक्तिशाली सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, 2024 के लिए बढ़ती चुनौती आसान नहीं होगी. अब तक तीन राज्यों और आगे 9 और राज्यों के दौरे के बाद, राहुल गांधी का लंबा मार्च अगले साल कश्मीर पहुंचकर खत्म होगा. क्या यह अभियान पार्टी के चुनावी भाग्य में अहम बदलाव लाएगा, ये तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे.

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