सभी भारतीय भाषाओं में तैयार हों मेडिकल और इंजीनियरिंग की किताबें

सभी भारतीय भाषाओं में तैयार हों मेडिकल और इंजीनियरिंग की किताबें

अभय कुमार दुबे : गृह मंत्री द्वारा मेडिकल साइंस की पुस्तकों को हिंदी में जारी करने से शुरू हुई बहस ने राममनोहर लोहिया की याद दिला दी है. लोहिया ने प्रस्ताव रखा था कि गर्मियों की छुट्टी में अध्यापकों को अनुवाद के काम में लगा देना चाहिए ताकि अंग्रेजी की किताबों को हिंदी में फटाफट

अभय कुमार दुबे : गृह मंत्री द्वारा मेडिकल साइंस की पुस्तकों को हिंदी में जारी करने से शुरू हुई बहस ने राममनोहर लोहिया की याद दिला दी है. लोहिया ने प्रस्ताव रखा था कि गर्मियों की छुट्टी में अध्यापकों को अनुवाद के काम में लगा देना चाहिए ताकि अंग्रेजी की किताबों को हिंदी में फटाफट तैयार किया जा सके. शिक्षा जैसे ही अंग्रेजी के शिकंजे से निकलेगी, ज्ञान के लोकतंत्रीकरण का रास्ता खुल जाएगा. भारतवासियों की प्रतिभा प्रस्फुटित हो उठेगी. लोहिया द्वारा इस आशय की बात साठ के दशक में कही गई थी. उन दिनों भी अंग्रेजी का प्रकोप था, पर आज के मुकाबले तीव्रता कम थी. अंग्रेजी में पढ़ाने वाले अध्यापकों की हिंदी भी अच्छी होती थी. आज स्थिति बदल गई है. अंग्रेजी की किताबों से पढ़ाने वाले अध्यापक हिंदी का इस्तेमाल केवल कामचलाऊ ढंग से कर पाते हैं.
अपनी ही भाषा का ज्ञानात्मक इस्तेमाल करने की क्षमता का क्षय हो चुका है लेकिन परिस्थिति का नया पहलू यह है कि अनुवादकों का एक समुदाय बाजार में आ चुका है. यह अलग बात है कि अनुवाद से रोजी कमाने वाले ये लोग पढ़ाई-लिखाई की दुनिया के सर्वाधिक शोषित और कमतर समझे जाने वाले हिस्से हैं. इनके बारे में माना जाता है कि इनका हाथ अंग्रेजी में तंग है, इसलिए ये अंग्रेजी में मूल लेखन नहीं कर सकते. अनुवादक बनना इनके लिए मजबूरी है। नतीजतन, अंग्रेजी के मूल लेखकों और हिंदी के अनुवादकों की दो श्रेणियां बन गई हैं. चूंकि मेडिकल और इंजीनियरिंग की पुस्तकों का हिंदी में मूल लेखन होता ही नहीं है, इसलिए अनुवादक दूसरी पायदान पर रहने के लिए अभिशप्त हैं. जो हिंदी के लिए सच है, वह तमिल और बंगाली के लिए भी उतना ही सच है. भारत सरकार पिछले कई सालों से ट्रांसलेशन मिशन नाम की संस्था चला रही है.
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय भी कई वर्षों से अनुवाद सम्पदा नामक कार्यक्रम का संचालन कर रहा है. मुझे लगता है, इन दोनों का जोर विज्ञान और तकनीक की पुस्तकों पर नहीं है. अगर भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, जीवविज्ञान, वनस्पतिशास्त्र, गणित और यांत्रिकी जैसे विषयों के ज्ञान को हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में लाना है तो सरकार को ऐसी संस्थाएं बनानी होंगी, जो विज्ञान के अनुवाद के लिए समर्पित हों. जो दिन-रात इसी बारे में सोचें, भाषाई जद्दोजहद करें और आसान से आसान भाषा में रोचक ढंग से अनुवाद का सिलसिला आगे बढ़ाएं. इन संस्थाओं में अच्छे अनुवादकों को नौकरी मिल सकती है. सरकार यह संस्थागत प्रयास दो तरह से कर सकती है. अनुवाद की संस्थाएं अलग से गठित की जाएं या उन्हें मौजूदा शोध-संस्थानों और विश्वविद्यालयों का अंग बनाया जाए. मेरे ख्याल से दूसरा रास्ता पहले के मुकाबले बेहतर है.
ऐसी बात नहीं कि विश्वविद्यालयों में ट्रांसलेशन के विभाग नहीं हैं, पर उनमें अनुवाद के ऊपर अकादमिक पढ़ाई होती है. यहां जरूरत व्यावहारिक अनुवाद की है, न कि अनुवाद और उसकी प्रक्रिया के अकादमीय अर्थग्रहण की. ये संस्थाएं अनुवाद की फैक्ट्रियों की तरह काम करेंगी. इससे बड़े पैमाने पर अनुवाद हो सकेगा. यूपी के एक अर्धग्रामीण क्षेत्र में मैं पांचवीं कक्षा तक गणित की पढ़ाई हिंदी में करता था.
मसलन मैं कहता था- दो धन दो बराबर चार. जब मैं छठी कक्षा में आया तो कहने लगा- टू प्लस टू इज़ ईक्वल टु फोर. मेरी कक्षा में गिने-चुने छात्र ही ऐसे थे, जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि में अंग्रेजी का कुछ स्थान था. केवल वे ही इज़ ईक्वल टु को साफ तौर पर सही बोल पाते थे. बाकी छात्र इसे ‘इजिकल्टू’ बोलते थे. जब ये छात्र स्नातक कक्षाओं में पहुंचे तो अंग्रेजी में कमजोर होने के कारण उनके लिए गणित की कक्षा में छह महीने टिकना भी मुश्किल हो गया.
गृह मंत्री के इस काम के आलोचकों ने सीधे या घुमा-फिराकर उन पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया है. यह भी कहा गया है कि अगर हिंदी वाले हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई करेंगे तो तमिल वाले भी ऐसी मांग कर सकते हैं लेकिन अगर वैसा होता है तो इसमें गलत क्या है? मेडिकल और इंजीनियरिंग की किताबें हिंदी में ही नहीं, सभी भारतीय भाषाओं में तैयार की जानी चाहिए. हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अगर अंग्रेजी की कोई किताब एक बार हिंदी या किसी दूसरी भारतीय भाषा में प्रामाणिक रूप से अनूदित हो जाती है तो फिर उसका अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद बहुत आसान हो जाता है. विज्ञान और गणित पढ़ने वाले छात्रों की शुरुआती बौद्धिक ऊर्जा का आधे से ज्यादा हिस्सा तो अंग्रेजी के साथ सहज होने में ही खप जाता है. विषय का ज्ञान प्राप्त करना दूसरे नम्बर पर चला जाता है.

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