प्रदूषण की वजह से दिल्ली छोड़ उत्तराखंड की पहाड़ियों में बना लिया अपना होमस्टे

प्रदूषण की वजह से दिल्ली छोड़ उत्तराखंड की पहाड़ियों में बना लिया अपना होमस्टे

भीमताल (उत्तराखंड) की पहाड़ियों में खुद का होमस्टे खड़ा कर लेने तक वाराणसी की पूजा की पीछे की जिंदगी कठिन संघर्षों से भरी रही है. बायोटेक की पढ़ाई, फिर दिल्ली से एमबीए और बड़ी कंपनियों में नौकरी के बीच शादी, दो बच्चे; और अब इन दिनो उत्तराखंड की पहाड़ियों में कड़ी मेहनत के बाद अपना

भीमताल (उत्तराखंड) की पहाड़ियों में खुद का होमस्टे खड़ा कर लेने तक वाराणसी की पूजा की पीछे की जिंदगी कठिन संघर्षों से भरी रही है. बायोटेक की पढ़ाई, फिर दिल्ली से एमबीए और बड़ी कंपनियों में नौकरी के बीच शादी, दो बच्चे; और अब इन दिनो उत्तराखंड की पहाड़ियों में कड़ी मेहनत के बाद अपना ‘होमस्टे मेराकी अ पीस ऑफ हेवेन’ के साथ चल पड़ी है संघर्षशील पूजा की जिंदगी. क्योंकि मम्मी से सीख मिली थी कि तुम्हे कुछ करना है तो पहुंच गईं नैनीताल. पति मध्य प्रदेश में. छह महीने के बच्चे को गोद में लेकर पहाड़ियों में होमस्टे बनाने का ख्याल आना ही बड़ी बात है. पूजा बताती हैं कि जब बेटी पैदा हुई तो दिल्ली की प्रदूषण की वजह से वह बीमार पड़ने लगी. मुझे लेकर उसे वापस बनारस जाना पड़ा. नौकरी भी छूट गई. मुझे और मेरे पति रवि को घूमने का शौक था. हम अक्सर बाहर होटल लेते थे लेकिन वहां बच्चों को दिक्कत होती थी. इसके बाद जब हमने होमस्टे में रहना शुरू किया तो हमें लगा कि परिवार, जिसमें बच्चे हैं, उनके लिए होमस्टे सबसे सही विकल्प है.
पूजा बताती हैं कि हमारा होमस्टे एक दम प्रकृति की गोद में है. भीमताल से लगभग 5 किलोमीटर दूर पांडेय गांव में. डॉक्टर ने कहा है कि बेटी को साफ-सुथरे वातावरण की जरूरत है. लेकिन नौकरी छूटने के बाद मुझे फिर से अपने पैरों पर खड़े होना था तो कुछ ऐसा भी करना था जिससे मैं फिर से दो पैसे कमा सकूं. इसलिए होमस्टे का काम शुरू करने का विचार मन में आया. पूजा की मम्मी यह तो जरूर चाहती थीं कि उनकी बेटियां पैसे कमाएं और खुद पर निर्भर रहें, लेकिन नौकरी से. लेकिन ऐसा क्यों? ‘इसकी गई वजह है. पहली वजह तो यह है कि मेरे पिता व्यवसायी हैं. मम्मी ने उन्हें देखा कि वे अपने काम में इतने मशगूल रहते थे कि उनके पास हमारे पास लिए समय ही नहीं बचता था. इसलिए मम्मी नहीं चाहती थीं कि हम बिजनेस करें. दूसरी बात यह भी है कि हमारे यहां महिलाएं ज्यादातर नौकरी ही करती हैं. व्यवसाय ज्यादातर वही महिलाएं कर पाती हैं कि जिनके घर का यह पुश्तैनी काम हो. ऐसे में मम्मी को डर भी था लेकिन मुझे कुछ अलग करके अपनी बेटी, अपनी पीढ़ी के लिए एक मॉडल सेट करना था कि एक महिला परिवार के साथ-साथ बिजनेस भी संभाल सकती है.
वह बताती हैं कि हमारे यहां अक्सर कहा जाता है कि पुरुषों की सफलता के पीछे किसी महिला का हाथ होता है लेकिन पूजा कहती हैं कि उनके मामले में ये तस्वीर दूसरी है. वे बताती हैं कि जब उन्होंने होमस्टे शुरू करने के बारे में सोचा तो उनके ससुर रामजी प्रसाद शर्मा, उनकी सास और उनके पति रवि ने पूरा सहयोग किया. रवि ने बैंक में नौकरी के साथ-साथ मेरा सहयोग किया. अब काम शुरू कर दिया है. घर परिवार के सब मेरे साथ हैं, मेरी असली सफलता यही है. पहाड़ का जीवन दूर के लोगों को जितना अच्छा दिखता है, असल में वैसा होता नहीं. पहाड़ सुंदर होता है लेकिन यहां का जीवन कठिन है. मेरे लिए और कठिन था क्योंकि मुझे दो बच्चों को साथ में लेकर काम करना था. वह भी किसी अनजान सी जगह पर. रवि की नौकरी मध्य प्रदेश के रीवा में थी. जब यहां आई तब लॉकडाउन का समय था और बेटे की उम्र मात्र छह महीने थी. बेटी थोड़ी बड़ी थी. जब होमस्टे की नींव पड़ी तो बेटा मेरी गोद में था. आसान नहीं था लेकिन मेरी मां ने कहा था कि हमेशा अपने पैरों पर रहो क्योंकि वह यह नहीं चाहती थीं कि उनटी बेटियां उनके जैसे बस पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाती रहें. मेरी छोटी बहन इंडियन आर्मी में है. बच्चे होने के बाद जब नौकरी छोड़ी तो लोग कहने लगे कि अब तुम कुछ नहीं कर पाओगी लेकिन मुझे ये मंजूर नहीं था. दूसरे बच्चे के बाद मुझे लगा कि कहीं बहुत देर न हो जाए. मैंने अपने ससुर और पति से बात की. दोनों लोगों ने मेरा साथ दिया और कहा अगर तुम कर सकती हो तो करो, हम साथ हैं. ससुर ने पैसे दिये. आगे की जिम्मेदारी मेरी थी. मैं दो साल भीमताल में अकेले रही. पहाड़ चढ़ी. मजदूरों की व्यवस्था से लेकर दरवाजे, खिड़की बनवाने तक, पूरा काम किया.
बिजनेस तो कोई भी शुरू किया जा सकता था, फिर होमस्टे ही क्यों? इस पर पूजा कहती हैं कि इसके पीछे की एक वजह यह भी है कि हम नेचर में रहकर नेचर को फील करना चाहते हैं. ऐसा नहीं कि विकेंड पर आएं तो फिर वहीं लौट जाएं. कंक्रीट के जंगलों में. ऐसे में होमस्टे के पीछे का मकसद यह था कि एक तो हमारा घर होगा और इससे हम पैसे भी कमा सकते हैं. और सबसे बड़ी बात ये कि पहाड़ों में बाहर आने वाले लोगों को हम पहाड़ का सही अनुभव देना चाहते थे. वे हमारे साथ रहेंगे, खाएंगे और इस महौल को समझेंगे. होटल में आप कहीं भी रहें, आप को एक ही जैसा अनुभव मिलेगा. होमस्टे के काम में मैंने अपनी मैनेजमेंट की पढ़ाई का प्रयोग किया. इस काम में नुकसान नहीं है, भले ही मुनाफा कम हो.

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