मीडिया में एक नई ख़बर तैराई जा रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले डेढ़ साल में यानी दिसंबर 2023 तक 10 लाख युवाओं को नौकरी देंगे. इस मेगा रिक्रूटमेंट ड्राइव की लॉन्चिंग वे दिवाली से पहले धनतेरस के दिन यानी 22 अक्टूबर से करेंगे. इस दिन 75000 लोगों को अपॉइंटमेंट लेटर दिया जाएगा. पीएमओ
मीडिया में एक नई ख़बर तैराई जा रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले डेढ़ साल में यानी दिसंबर 2023 तक 10 लाख युवाओं को नौकरी देंगे. इस मेगा रिक्रूटमेंट ड्राइव की लॉन्चिंग वे दिवाली से पहले धनतेरस के दिन यानी 22 अक्टूबर से करेंगे. इस दिन 75000 लोगों को अपॉइंटमेंट लेटर दिया जाएगा. पीएमओ के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने इस साल जून में 38 मंत्रालयों/विभागों में मैन पावर की समीक्षा की थी, जिसके बाद उन्होंने ऐलान किया था कि उनकी सरकार अगले डेढ़ साल में यानी 2023 दिसंबर तक 10 लाख नौकरियां मुहैया कराएगी. ये सभी भर्तियां यूपीएससी, एसएससी, रेलवे भर्ती बोर्ड एवं अन्य केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से हो रही हैं.
मोदी सरकार ने नाम बदलने की सियासत में ऐसा लगता है जैसे महारत हासिल कर ली हो. सड़कों, स्कीमों के नाम बदलने के बाद अब उसने बेरोजगारी और महंगाई का नाम बदलकर विकास कर दिया है. यही वो दो चीज़ हैं, जिसने देश के कोने-कोने में मौजूद हर घर में दस्तक दी है. इसलिए प्रधानमंत्री ने गुरुवार को गुजरात में अपनी एक जनसभा में कहा कि विकास हर घर तक पहुंचा है. शायद यही वो गुजरात मॉडल है, जिसके रथ पर सवार होकर मोदीजी ने राज्य से केंद्र तक का सफर तय किया था.
अब आइए हकीकत की जमीन पर पैर रखते हैं. तीन माह पहले अगस्त में देश में बेरोजगारी दर एक साल के उच्चस्तर 8.3 प्रतिशत पर पहुंच गई थी. उस दौरान रोजगार जुलाई की तुलना में 20 लाख घटकर 39.46 करोड़ रह गया था. जुलाई में बेरोजगारी दर 6.8 प्रतिशत थी और रोजगार 39.7 करोड़ था. सीएमआईई के प्रबंध निदेशक महेश व्यास बताते हैं, शहरी बेरोजगारी दर आमतौर पर ग्रामीण बेरोजगारी दर से ऊंची यानी आठ प्रतिशत रहती है, जबकि ग्रामीण बेरोजगारी दर लगभग सात प्रतिशत होती है. अगस्त में शहरी बेरोजगारी दर बढ़कर 9.6 प्रतिशत और ग्रामीण बेरोजगारी दर बढ़कर 7.7 प्रतिशत हो गई. अनियमित वर्षा ने बुवाई गतिविधियों को प्रभावित किया और यह ग्रामीण भारत में बेरोजगारी बढ़ने का एक कारण है.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के हाल के आंकड़ों के अनुसार, हरियाणा में 37.3 प्रतिशत के साथ भारत के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से सबसे अधिक बेरोजगारी दर है, इसके बाद जम्मू और कश्मीर में 32.8 प्रतिशत, राजस्थान में 31.4 प्रतिशत और झारखंड में 17.3 प्रतिशत बेरोजगार हैं। इस लिस्ट में 0.4 प्रतिशत के साथ छत्तीसगढ़ में सबसे कम बेरोजगारी दर है, जबकि मेघालय और महाराष्ट्र में क्रमशः 2 प्रतिशत और 2.2 प्रतिशत है.
बेरोजगारी पर पीपल कमीशन ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. इस रिपोर्ट को जाने-माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार ने लिखा है. यह रिपोर्ट भारत में रोजगार और बेरोजगारी के हाल पर विस्तार से जानकारी रखती है. यह बताती है कि भारत में रोजगार और बेरोजगारों की संख्या कितनी है? लोग किस तरह के रोजगार में लगे हुए हैं? कितने लोगों को गरिमापूर्ण जिंदगी जीने लायक आमदनी मिल रही है और कितने लोग महज जीने लायक पैसे पर गुजारा कर रहे हैं? जितने लोग बेरोजागर हैं, उन्हें भारत के सलाना प्रति व्यक्ति आमदनी के 30 प्रतिशत आदमनी पर रोजगार मुहैया करवाने पर कितना खर्चा आएगा? यह पैसा कहाँ से आएगा?
देश में बीते कुछ वर्षों में बेरोजगारी बढ़ी है, जिससे ज्यादातर लोग कर्ज के बोझ तले दब गये, लेकिन लंबे इंतजार के बावजूद जब उन्हें बेरोजगारी दूर करने के रास्ते नजर नहीं आये तो उन्होंने खुदकुशी या कहें कि आत्महत्या का रास्ता अपना लिया या कहें कि यह रास्ता चुनने के लिये वे मजबूर हो गये. बीते कोरोना काल में इन आंकड़ों में और भी इजाफा हुआ. इस दौर में न केवल लोगों की नौकरियां गयी हैं बल्कि ज्यादातर लोग कम मेहनताने पर काम करने को भी मजबूर हुये हैं. ऐसे में आत्महत्या करने वालों की संख्या और भी बढ़ी है.
गौरतलब है, संसद में प्रस्तुत आंकड़ों में बताया जा चुका है कि 2020 में यानी कोरोना काल में 3548 लोगों ने बेरोजगारी की वजह से आत्महत्या कर ली और कर्ज में दबे होने की वजह से 5213 लोगों ने आत्महत्या की. बड़ा आंकड़ा है. अगर निराशा से इस देश में इस तरह से खुदकुशी करने को मजबूर हो रहे हैं तो सरकार को अपनी नीतियों में संशोधन करने की जरूरत है लेकिन जब विपक्ष ये सवाल उठाता है कि लोगों को, बेरोजगारों को, युवाओं को नौकरियों को लेकर निराशा हो रही है और सरकार की नीतियां ऐसी नहीं है जिसे लेकर लोगों को नौकरी मिल सके या उन्हें कोई रास्ता दिख सके. दूसरी ओर सरकार इस आंकड़े को झूठा बता रही है और नये नये आंकड़े पेश कर रही है.
बीते साल देशव्यापी लॉकडाउन के कारण 12.2 करोड़ लोगों की नौकरी खत्म हुई थी, जबकि करीब 20 करोड़ लोगों के काम प्रभावित हुए थे। यह समझना चाहिए कि रोजगार की तुलना में काम अधिक प्रभावित होता है। जैसे लॉकडाउन में दफ्तरों और स्कूल-कॉलेजों के बंद होने से सरकारी कर्मियों, शिक्षकों, प्रोफेसरों आदि के रोजगार पर कोई असर नहीं पड़ा था, लेकिन काम के बंद होने से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है, क्योंकि इससे उत्पादन बंद हो जाता है। जाहिर है, इससे बेरोजगारी बढ़ती है।
सितंबर 2022 में राजस्थान में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा 23.8 फीसदी थी, इसके बाद जम्मू-कश्मीर में 23.2 फीसदी, हरियाणा में 22.9 फीसदी, त्रिपुरा में 17 फीसदी, झारखंड में 12.2 फीसदी और बिहार में बेरोजगारी की दर सबसे अधिक थी. 11.4 प्रतिशत पर है. सितंबर माह में छत्तीसगढ़ में सबसे कम 0.1 फीसदी, असम में 0.4 फीसदी, उत्तराखंड में 0.5 फीसदी, मध्य प्रदेश में 0.9 फीसदी, गुजरात में 1.6 फीसदी, मेघालय में 2.3 फीसदी और ओडिशा में 2.9 फीसदी बेरोजगारी का डेटा दिखाया गया है.
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