उत्तराखंड में डेढ़ दशक में 5.83 लाख बच्चों का सरकारी विद्यालयों से पलायन हो चुका है। जिस सरकारी शिक्षा पर बच्चों का भविष्य संवारने का जिम्मा है, उसे अपने पांव पर टिके रहने के लिए खाद-पानी की आवश्यकता है। हालत ये है कि सरकारी विद्यालयों में छात्रसंख्या तेजी से घट रही है। दूरदराज और ग्रामीण
उत्तराखंड में डेढ़ दशक में 5.83 लाख बच्चों का सरकारी विद्यालयों से पलायन हो चुका है। जिस सरकारी शिक्षा पर बच्चों का भविष्य संवारने का जिम्मा है, उसे अपने पांव पर टिके रहने के लिए खाद-पानी की आवश्यकता है। हालत ये है कि सरकारी विद्यालयों में छात्रसंख्या तेजी से घट रही है। दूरदराज और ग्रामीण इलाकों के बच्चे भी नजदीकी निजी और अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों का रुख कर रहे हैं। सरकारी विद्यालयों, शिक्षा विभाग इस समस्या से निपटने में किस तरह नाकाम रहा है, उसकी बानगी विभाग के ही आंकड़े पेश कर रहे हैं। लगभग 15 वर्ष के भीतर सिर्फ प्रारंभिक कक्षाओं यानी कक्षा एक से आठवीं तक 5.83 लाख बच्चों का सरकारी विद्यालयों से पलायन हो चुका है। माध्यमिक स्तर पर भी तस्वीर ऐसी ही चिंताजनक है।
शिक्षा मंत्री डा धन सिंह रावत का कहना है कि प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। सरकारी विद्यालयों में भवन, कक्षाकक्ष, बैठने के लिए फर्नीचर जैसी आवश्यक सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं। शिक्षकों और छात्रसंख्या का अनुपात राज्य में अच्छा है। नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद सरकारी विद्यालयों में गुणात्मक सुधार दिखाई देगा। छात्रसंख्या में अपेक्षित वृद्धि होगी।
राज्य में प्राथमिक, उच्च प्राथमिक से लेकर माध्यमिक स्तर तक सरकारी विद्यालयों की पहुंच दूरदराज गांवों तक हुई है। विद्यालयों की संख्या बढऩे के बाद भी छात्रसंख्या घट गई। परिणामस्वरूप दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत स्थापित किए गए विद्यालयों पर बंदी की तलवार लटकी है। सैकड़ों विद्यालयों को न्यूनतम छात्रसंख्या न होने के कारण बंद भी किया जा चुका है। विश्वास के संकट से जूझ रही सरकारी शिक्षा में बुनियादी कमियों को दूर करने के लिए आवश्यक कदम समय रहते नहीं उठाए जा सके। ऐसा होता तो यह नौबत ही नहीं आती। दरअसल राज्य बनने के आठ वर्षों के बाद छात्रसंख्या में तेजी से गिरावट दर्ज होने का सिलसिला चला तो फिर थम नहीं सका।
राज्य के शिक्षा विभाग के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2002-03 से 2007-08 तक कक्षा एक से आठवीं तक सरकारी विद्यालयों में 8714 विद्यार्थी बढ़ गए। छात्रसंख्या 926169 से बढ़कर 10,24883 तक पहुंच गई। इसके अगले ही वर्ष 2008-09 में 7000 से अधिक छात्र घट गए। इसके बाद से यह क्रम चल रहा है। अभिभावकों और विद्यार्थियों की रुचि निजी और अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों में बढ़ रही है। दूरस्थ क्षेत्रों में भी यह प्रवृत्ति सामने आने से शिक्षा विभाग की चुनौती और मुश्किलें बढ़ गई हैं। निजी विद्यालयों की संख्या बेहद कम होने के बावजूद आश्चर्यजनक तरीके से उन्होंने छात्रसंख्या के मामले सरकारी विद्यालयों को बुरी तरह पछाड़ दिया है।
पिछले साल के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में कक्षा एक से आठवीं तक सरकारी विद्यालयों की संख्या 14183 है। इनमें छात्रसंख्या 4,41,457 है। वहीं निजी विद्यालयों की संख्या मात्र 4313 है, जबकि इनमें छात्रसंख्या 538499 रही। तीन गुना से अधिक सरकारी विद्यालयों में 97,042 छात्र घट गए। अब सरकारी और सरकारी सहायताप्राप्त माध्यमिक विद्यालयों का हाल देखिए। प्रदेश में इनकी संख्या 2718 है। इनमें अध्ययनरत छात्रों की संख्या 5,51,977 है। इसकी तुलना में 1083 निजी विद्यालयों में छात्रसंख्या 6,53,996 है। कम संख्या में होने के बावजूद निजी विद्यालयों में एक लाख से अधिक विद्यार्थी सरकारी विद्यालयों की हकीकत को सामने रख रहे हैं।
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