ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत के 107वें पायदान पर आने की रिपोर्ट पर केंद्र सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया देकर उसे भारत की छवि ख़राब करने वाला बताते हुए कहा है कि यह इंडेक्स ‘भूख को मापने का ग़लत तरीक़ा है.’ दुनिया भर में भूख और कुपोषण की स्थिति को दर्शाने वाली ग्लोबल हंगर इंडेक्स की
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत के 107वें पायदान पर आने की रिपोर्ट पर केंद्र सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया देकर उसे भारत की छवि ख़राब करने वाला बताते हुए कहा है कि यह इंडेक्स ‘भूख को मापने का ग़लत तरीक़ा है.’ दुनिया भर में भूख और कुपोषण की स्थिति को दर्शाने वाली ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट जारी हुई है, जिसमें भारत को 121 देशों में 107वें पायदान पर रखा गया है. इस इंडेक्स में भारत की स्थिति पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश से भी बदतर है. इस इंडेक्स में दक्षिण एशिया में सबसे बेहतर स्थिति श्रीलंका की है. आर्थिक दिक़्क़तों से जूझ रहे श्रीलंका को इस इंडेक्स में 64वां स्थान दिया गया है.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भूख को व्यापक रूप से मापने और उन पर नज़र रखने का एक ज़रिया है. जीएचआई का स्कोर ख़ासकर के चार संकेतकों के मूल्यों पर मापा जाता है जिनमें कुपोषण, शिशुओं में भयंकर कुपोषण, बच्चों के विकास में रुकावट और बाल मृत्यु दर है. जीएचआई का कुल स्कोर 100 पॉइंट होता है, जिसके आधार पर किसी देश की भूख की गंभीरता की स्थिति दिखती है. यानी के अगर किसी देश का स्कोर ज़ीरो है तो उसकी अच्छी स्थिति है और अगर किसी का स्कोर 100 है तो उसकी बेहद ख़राब स्थिति है.
भारत का स्कोर 29.1 है जो कि बेहद गंभीर श्रेणी में आता है. इसके अलावा कुल ऐसे 17 शीर्ष देश हैं, जिनका स्कोर 5 से भी कम हैं. इन देशों में चीन, तुर्की, कुवैत, बेलारूस, उरुग्वे और चिली जैसे देश शामिल हैं. जीएचआई जिन चार पैमानों पर मापा जाता है उसमें से एक बच्चों में गंभीर कुपोषण की स्थिति को देखें तो भारत में इस बार उसे 19.3 फ़ीसदी पाया गया है जबकि 2014 में यह 15.1 फ़ीसदी था. इसका अर्थ है कि भारत इस पैमाने में और पिछड़ा है. वहीं अगर कुल कुपोषण के पैमाने की बात की जाए तो वो भी काफ़ी बढ़ा है. ये पैमाना देश की कुल आबादी कितना खाना खाने की कमी का सामना कर रही है उसको दिखाता है.
इंडेक्स के मुताबिक़, भारत में 2018 से 2020 के बीच जहाँ ये 14.6 फ़ीसदी था वहीं 2019 से 2021 के बीच ये बढ़कर 16.3 फ़ीसदी हो गया है. इसके मुताबिक़ दुनिया में कुल 82.8 करोड़ लोग जो कुपोषण का सामना कर रहे हैं उसमें से 22.4 करोड़ लोग सिर्फ़ भारत में ही हैं. हालांकि, इस इंडेक्स में भारत के लिए अच्छी भी ख़बर है. इस इंडेक्स के दो पैमानों में भारत बेहतर ज़रूर हुआ है. बच्चों के विकास में रुकावट से संबंधित पैमाने में भारत 2022 में 35.5 फ़ीसदी है जबकि 2014 में यह 38.7 फ़ीसदी था. वहीं बाल मृत्यु दर 4.6 फ़ीसदी से कम होकर 3.3 फ़ीसदी हो गई है. हालांकि जीएचआई के कुल स्कोर में भारत की स्थिति और ख़राब हुई है. 2014 में जहाँ ये स्कोर 28.2 था वहीं 2022 में यह 29.1 हो गया है.
इस इंडेक्स में भारत को 107वें पायदान पर रखे जाने के बाद भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बयान जारी किया है. मंत्रालय ने बयान में कहा है, “भारत की छवि लगातार ख़राब किए जाने की कोशिश एक बार फिर नज़र आई है कि एक राष्ट्र के रूप में वो अपनी जनसंख्या की खाद्य सुरक्षा और पोषण की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकता है. सालाना जारी होने वाली ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट ग़लत सूचनाएं हैं. ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 आयरलैंड और जर्मनी की ग़ैर-सरकारी संस्था कंसर्न वर्ल्ड वाइड एंड वेल्ट हंगर हिल्फ़ ने जारी की है, जिसमें भारत को 121 देशों में 107वें पायदान पर रखा गया है.”
भारत ने कहा, “ये इंडेक्स भूख को मापने का ग़लत तरीक़ा है और मापने के तरीक़ों के गंभीर मुद्दों से ग्रस्त है. इंडेक्स को मापने के चार तरीक़ों में से तीन तरीक़े सिर्फ़ बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित हैं और पूरी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं.” ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रैंकिंग कुल स्कोर पर दी जाती है. यह स्कोर ख़ासकर के चार संकेतकों के मूल्यों पर मापा जाता है, जिनमें कुपोषण, शिशुओं में भयंकर कुपोषण, बच्चों के विकास में रुकावट और बाल मृत्यु दर हैं. भारत ने इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है, “कुल जनसंख्या के कुपोषण का अनुपात (PoU) इस इंडेक्स का चौथा और सबसे महत्वपूर्ण मापने का तरीक़ा है, लेकिन वो भी एक जनमत सर्वेक्षण पर आधारित है, जिसमें 3000 का एक छोटा सैंपल साइज़ लिया गया है.”
मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि ये सर्वे मॉड्यूल खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के खाद्य असुरक्षा अनुभव पैमाने (FIES) पर आधारित है जिसे गैलप वर्ल्ड पोल ने पूरा किया है जो कि एक ‘जनमत सर्वेक्षण’ है, जो ‘आठ सवालों’ पर आधारित है. इसमें ‘3000 उत्तरदाताओं’ का एक छोटा सैंपल साइज़ है. बयान में लिखा है कि FIES के ज़रिए भारत जैसे देश के कुपोषण की स्थिति का पता लगाना न केवल ग़लत है बल्कि यह अनैतिक है और यह केवल स्पष्ट पूर्वाग्रह को दिखाता है. मंत्रालय ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स को जारी करने वाली संस्था कंसर्न वर्ल्ड वाइड एंड वेल्ट हंगर हिल्फ़ को लेकर कहा है कि उसने रिपोर्ट जारी करने से पहले स्पष्ट रूप से उचित मेहनत नहीं की. भारत ने कहा है, “ये रिपोर्ट न केवल ज़मीनी हक़ीकत से दूर है बल्कि जानबूझकर उन कोशिशों को नज़रअंदाज़ करने की है जो सरकार अपनी जनता को खाद्य सुरक्षा सुरक्षा मुहैया करा रही है. ख़ासकर कोविड महामारी के दौरान जो मदद मुहैया कराई गई.”
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने अपने बयान में बताया है कि भारत की प्रति व्यक्ति आहार ऊर्जा आपूर्ति हर साल बढ़ रही है और यह FAO की फ़ूड बैलेंस शीट पर आधारित है. “कई सालों से देश में प्रमुख कृषि वस्तुओं का उत्पादन देश में लगातार बढ़ रहा है और देश के अल्पपोषण के स्तर में वृद्धि होने का कोई कारण नहीं है. इस दौरान सरकार ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई क़दम उठाए हैं, जिनमें दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम शामिल है. कोविड-19 महामारी के दौरान आर्थिक दिक़्क़तें खड़ी होने के कारण सरकार ने मार्च 2020 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के तहत 80 करोड़ लाभार्थियों को मुफ़्त अनाज दिया. प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना के तहत सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 3.91 लाख करोड़ की खाद्य सब्सिडी के बराबर 1121 लाख मिट्रिक टन अनाज मुहैया कराया. इस योजना को दिसंबर 2022 तक के लिए बढ़ा दिया गया है. आंगनवाड़ी सेवाओं के ज़रिए कोविड-19 महामारी के बाद से छह साल तक के 7.71 बच्चों और 1.78 करोड़ गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पूरक पोषण मुहैया कराया गया. 14 लाख आंगनवाड़ी केंद्रों के ज़रिए पूरक पोषण बांटा गया. प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना के तहत 1.5 करोड़ रजिस्टर्ड महिलाओं को उनके पहले बच्चे के जन्म पर 5,000 रुपये की सहायता राशि दी गई.”
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