अभी तो ख़ैर जाड़े की दस्तक है, फिलहाल, सोचिए कि पहाड़ों के ग्लेशियर तो पिघल रहे ही, याद करिए कि बीती गर्मियों में इस बार उत्तराखंड में तापमान ने विगत दस वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया था. जून के दूसरे ही दिन देहरादून में हीट वेव ने लोगों को छटपटा कर रख दिया, अधिकतम तापमान
अभी तो ख़ैर जाड़े की दस्तक है, फिलहाल, सोचिए कि पहाड़ों के ग्लेशियर तो पिघल रहे ही, याद करिए कि बीती गर्मियों में इस बार उत्तराखंड में तापमान ने विगत दस वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया था. जून के दूसरे ही दिन देहरादून में हीट वेव ने लोगों को छटपटा कर रख दिया, अधिकतम तापमान 41.1 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा, जिससे पिछले दस साल का रिकॉर्ड टूट गया. दून का अधिकतम तापमान पहली बार 40 डिग्री के पार पहुंच गया. इतना ही नहीं मौसम विभाग ने गढ़वाल मंडल के घाटी वाले क्षेत्रों में हीट वेव को लेकर येलो अलर्ट जारी कर दिया. जब देश के ठंडे पर्वत प्रदेशों का ये हाल हो तो बाकी देश का तापमान क्या रंग दिखा सकता है, खुद ही समझ में आ जाता है. अब आइए, मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट’ में छपे एक ताज़ा शोध पर नज़र डालते हैं, जिसमें बताया गया है कि भारत में साल 2000 से 2004 के बीच जितने लोगों की मौत अत्यधिक गर्मी की वजह से हुई, 2017-2021 के बीच उसमें 55 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है.
उत्तराखंड हर अगली गर्मी में तापमान का नया रिकॉर्ड बनाने लगा है, यह साफ हो चला है कि आने वाले सालों में ग्लोबल वॉर्मिंग इस राज्य की क्या गत बनाने वाली है, जबकि पर्यटन उद्योग ही इस राज्य की कमाई का सबसे बड़ा जरिया हो. इस बीच राज्य का मौसम विभाग, खासकर किसानों को लगातार आगाह कर रहा है कि हीट वेब के चलते फसलों और सब्जियों पर उष्मागत तनाव की संभावना, उच्च तापमान के संपर्क में आने से निर्जलीकरण की दिक्कत आगे और ज्यादा परेशानी का सबब बन सकती है। मौसम विभाग किसानों को फसलों की नियमित सिंचाई, राज्य सरकार वनाग्नि की घटनाओं की कड़ी निगरानी की ताकीद करने लगा है.
मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट’ में छपे ‘हेल्थ ऐट द मर्सी ऑफ फॉसिल फ्यूल’ नाम के इस शोध पत्र में भारत में अतिसूक्ष्म कणों के कारण होने वाली मौतों का भी जिक्र किया गया है. रिपोर्ट कहती है कि 2021 में इन कणों के कारण भारत में अनुमानतः 3,30,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है. ये कण जीवाश्म ईंधन जलाने से पैदा होते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक तेल, प्राकृतिक गैस और बायोमास जैसे जीवाश्म ईंधन जलाने के कारण भारतीय घरों में अतिसूक्ष्म कणों की सघनता विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से 27 गुना ज्यादा बढ़ गई.
यह ताज़ा शोध कहता है कि 2021 में भारत को काम के 167.2 अरब घंटों का नुकसान गर्मी के कारण हुआ. यानी अगर उतनी गर्मी ना पड़ती तो लोग इतने घंटे और काम कर पाते. इसके कारण देश को जीडीपी का 5.4 फीसदी का नुकसान झेलना पड़ा. भारत में बीते कुछ सालों में गर्मी की तपिश लगातार तेज और लंबी होती गई है. हीट वेव भारतीय गर्मी का हिस्सा हमेशा से रहे हैं लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अब हीट वेव ज्यादा तीव्र और लंबे होते जा रहे हैं. द लांसेट में छपी इस रिपोर्ट में 103 देशों की बात की गई है. शोधकर्ताओं ने पाया है कि इस साल मार्च से अप्रैल के बीच भारत और पाकिस्तान में जो ग्रीष्म-लहर चली थी, उसका कारण जलवायु परिवर्तन होने की संभावना 30 गुना ज्यादा है.
शोधकर्ता बताते हैं कि अत्यधिक गर्मी का सेहत पर सीधा असर होता है. इसके कारण हृदय और सांस के रोग बढ़ जाते हैं और हीट स्ट्रोक हो सकता है. इसके अलावा गर्भावस्था पर बुरा असर नींद में खराबी, खराब मानसिक स्वास्थ्य और चोट लगने से मौत के मामले भी बढ़ते हैं. रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है कि कमजोर तबकों के लोगों के लिए खतरा ज्यादा होता है. रिपोर्ट में यह बात भी कही गई है कि हीट वेव के कारण मौतों की संख्या पूरी दुनिया में बढ़ रही है. तेजी से बढ़ते तापमानों के कारण कमजोर आबादी (65 वर्ष से ज्यादा के बुजुर्ग और एक साल से कम आयु के बच्चे) को 1986-2005 के बीच सालाना औसत से 2021 में 3.7 अरब ज्यादा ऐसे दिनों का सामना करना पड़ा, जबकि हीट वेव चल रही थी.
इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया में संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन हमारी जान ले रहा है. जहरीले वायु प्रदूषण, कमजोर पड़ती खाद्य सुरक्षा, संक्रामक रोगों के फैलने के बढ़ते खतरे, रिकॉर्ड गर्मी, सूखा, बाढ़ और अन्य कई तरीकों से यह ना सिर्फ हमारे ग्रह की सेहत को बल्कि हर जगह लोगों की सेहत को भी नुकसान पहुंचा रहा है. विज्ञान की प्रगति और तकनीकी विकास के कारण अब जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का संख्यात्मक आंकलन संभव हो गया. इस वजह से शोधकर्ता बड़े पैमाने पर तुलनात्मक अध्ययन कर पा रहे हैं. 2021 और 2022 में अत्याधिक गर्मी ने पूरे एशिया महाद्वीप में कहर बरपाया है. इस कारण कोविड-19 महामारी से पैदा हुईं आर्थिक व सामाजिक मुश्किलें और गहन हो गई हैं.लेकिन बाकी दुनिया भी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से जूझ रही है.
ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, पश्चिमी यूरोप, मलयेशिया, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिणी सूडान में बाढ़ के कारण हजारों जानें गई हैं और अरबों डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है. साथ ही, कनाडा, अमेरिका, ग्रीस, अल्जीरिया, इटली, स्पेन और तुर्की में जंगलों की आग ने भारी नुकसान किया है. इस दौरान ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत, इटली, ओमान, तुर्की, पाकिस्तान और ब्रिटेन में गर्मी के नए रिकॉर्ड दर्ज किए गए.
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