बिहार में अब जंगल राज के अलापने से भाजपा के कमल खिलने वाले नहीं है. न तो स्थितियां 90 के दशक वाली हैं और न ही राजनीति. इन लगभग तीन दशकों में बिहार की राजनीति में यू टर्न आ चुका है. अब भाजपा के विरुद्ध चारा घोटाला के जनक लालू प्रसाद यादव नहीं खड़े हैं.
बिहार में अब जंगल राज के अलापने से भाजपा के कमल खिलने वाले नहीं है. न तो स्थितियां 90 के दशक वाली हैं और न ही राजनीति. इन लगभग तीन दशकों में बिहार की राजनीति में यू टर्न आ चुका है. अब भाजपा के विरुद्ध चारा घोटाला के जनक लालू प्रसाद यादव नहीं खड़े हैं. अब भाजपा के विरोध में एक युवा नेतृत्व लिए तेजस्वी यादव सामने आ गए हैं, जो लालू प्रसाद यादव की राजनीति का अक्स तो लिए हुए जरूर हैं पर यह एम वाई समीकरण की गिरफ्त से निकल कर ए टू जेड फॉर्मूला के साथ नीतियां बनाने लग गया है.
राजद इन दिनों पूरे बदलाव के मूड में है. इस मूड में लालू यादव की राजनीति से छुटकारा पाने की जद्दोजहद भी शामिल हो चुकी है. अब नए जेनरेशन का ध्यान रख कर राजद न केवल अपने संविधान में परिवर्तन करने का आग्रही बन चुका है बल्कि चुनाव भी लालटेन छाप पर लड़ना नहीं चाह रहा है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि तेजस्वी यादव अब लालू यादव के सामाजिक न्याय जैसे ओरनामेंटरी मुद्दा से इतर आर्थिक मुद्दे पर सियासत के बाजीगर बनने की कवायद में जुड़ गए हैं.
एक तरह से कहें तो तेजस्वी यादव अब भाजपा पर हमला करने के लिए बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे उठा रहे हैं. बेरोजगारी दूर करने के आधार के तहत इस बार महागंठबंधन की नीव को मजबूत किया भी गया है. 10 लाख नौकरी की घोषणा को महज घोषणा नहीं रहने देने की कवायद भी महागंठबंधन की सरकार में चल रही है. यही वजह है कि स्वास्थ, ग्रामीण और शिक्षा के क्षेत्र में नई बहालिया की और आगे के प्लानिंग में भी नियुक्ति प्रक्रिया शामिल है. महंगाई के सवाल पर भी विरोध प्रदर्शन का लाभ यह हुआ है कि पेट्रोल और रसोई गैस के दाम में कमी भी आई है.
भाजपा अभी भी महंगाई और बेरोजगारी की समस्या पर मुखर नहीं है. अब भी भाजपा जंगल राज, अपहरण उद्योग और नरसंहार को राजनीतिक हथियार बनाने में जुटी है जबकि राजद राज्य में बने नए वोटरों को ध्यान में रख कर बेरोजगारी और महंगाई पर फोकस कर चुकी है. ऐसा इसलिए की जंगलराज से पीड़ित वोटरों की संख्या अब नए वोटरों की संख्या के आगे कम पड़ चुकी है. और राजद नीत महागठबंधन की सरकार 2024 की लोकसभा और 2025 की विधान सभा चुनाव इसी मुद्दे पर ही लड़ने जा रही है. राजनीतिक विशेषज्ञ अनीश अंकुर मानते हैं कि भाजपा के विरोध की धार कुंद पड़ रही है. कभी वह राजद के कुशासन पर सवाल खड़ी करती है तो कभी तेजस्वी के 9वीं पास की बात उठाती है. पर ऐसे मसले पर राजद का जवाब ज्यादा कारगर हो जाता है, जब वह पी एम नरेंद्र मोदी की डिग्री की बात उठाता है. इसलिए बिहार जिस जगह खड़ा है, वहा बेरोजगारी, महंगाई, पलायन, औद्योगीकरण जैसे मुद्दे पर सवाल उठाना ज्यादा जरूरी हो चुका है.
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