उमेश कुमार उपाध्याय : स्पॉटबॉय राकेश दुबे ने 30 साल पहले फिल्मी दुनिया में अपना स्ट्रगल शुरू किया था, जो आज भी जारी है. 30 रु. रोज से काम शुरू करने वाले राकेश अभी भी अधिकतम 2000 रु. रोज ही कमा पाते हैं. अपने 30 साल के करियर में कई लड़कों को हीरो और कई
उमेश कुमार उपाध्याय : स्पॉटबॉय राकेश दुबे ने 30 साल पहले फिल्मी दुनिया में अपना स्ट्रगल शुरू किया था, जो आज भी जारी है. 30 रु. रोज से काम शुरू करने वाले राकेश अभी भी अधिकतम 2000 रु. रोज ही कमा पाते हैं. अपने 30 साल के करियर में कई लड़कों को हीरो और कई स्टार्स को सुपरस्टार बनते देखा. बचपन में परिवार के झगड़ों से परेशान होकर मुंबई आए, दो-दो दिन तक भूखे रहकर काम तलाशा. 30 रु. रोज और एक वक्त के खाने के साथ काम शुरू किया.
1989 में आई फिल्म मैंने प्यार किया में पहली बार काम किया बतौर जूनियर आर्टिस्ट, लेकिन जल्दी ही समझ आ गया कि एक्टिंग अपने बस की नहीं है, तो फिल्मों में ही स्पॉटबॉय का काम शुरू कर दिया. 33 साल बाद आज भी राकेश फिल्मों के सेट पर स्पॉट दादा के रूप में जाने जाते हैं. कई सितारों को अपने सामने स्टार बनते देखने वाले राकेश आज अपनी कहानी खुद सुना रहे हैं. कैसे 1200 रु. नहीं लौटाने पर सुनील शेट्टी ने इन्हें थप्पड़ मारे थे तो कभी जैकी श्राफ से 1700 रु. मांगने पर 1900 मिले.
आगे बात राकेश दुबे की जुबानी…. ”मैं दो साल का था, तब काफी बीमार पड़ गया. इलाज कराने के लिए मां ने पिता से पैसे मांगे, तो उन्हें पैसे नहीं मिले. इस बात से नाराज होकर मां मुझे लेकर अपने मायके आ गईं. ननिहाल में ही मेरा इलाज हुआ. पिता कमाई के लिए गांव से मुंबई गए और कई सालों बाद लौट आए. जब पिता आए तो मां भी मुझे लेकर उनके पास आईं, लेकिन घर में मां का सम्मान न होने से लड़ाई-झगड़ा और कलह का माहौल रहता था. मुझे यह बात बहुत खराब लगती थी, तब यही सोचता रहता था कि घर छोड़कर कहीं भाग जाऊं. एक दिन मेरा अपने कजिन से झगड़ा हो गया, तब पिताजी ने मुझे बहुत मारा-पीटा. मेरी न सिर्फ जबर्दस्त पिटाई की, बल्कि मेरे हाथ-पैर बांधकर कुएं के अंदर लटका दिया. इसके दूसरे-तीसरे दिन मुझे और मेरे छोटे भाई को बाल कटवाने के लिए पिताजी ने पैसे देकर भेज दिया. मैंने छोटे भाई को बाल कटवाने बैठाया और वहां से भागकर मुंबई आ गया.
”मुंबई में दहिसर स्थित भाटलादेवी मंदिर के पास मेरे नानाजी का तबेला है, इतना ही सुना था. सो, गांव से भागकर जैसे-तैसे मुंबई आ गया. उधर मेरी मां का रो-रोकर बुरा हाल हो रहा था. चाचाजी ने मेरे लापता होने की खबर रेडियो में अनाउंस करवा दी थी. इस बात का मुझे अंदाजा ही नहीं था कि घरवालों को बताकर नहीं जाऊंगा, तो वो परेशान हो जाएंगे. खैर, मुंबई पहुंचने के बाद घरवालों को लेटर लिखा कि मैं नानाजी के पास आ गया हूं, परेशान मत होना. मेरी खोज-खबर में पिताजी अपने भतीजे को लेकर मुंबई आ गए. इन दोनों की मुंबई आने की खबर मुझे लगी, तब बहुत डर गया. मुझे लगा कि अगर इनसे मिला तब मुझे बहुत मारेंगे. बचते-बचाते रहने लगा. एक दिन दोनों को आते हुए देखा, तब दीवार फांदकर भाग गया.
”मुंबई में रहकर जो कुछ छोटा-मोटा काम मिलता, वह कर लेता था. 1983 में रिश्तेदारों ने मुझे गैरेज में लगवा दिया. एक दिन जोगेश्वरी से दहिसर आते हुए मेरा एक्सीडेंट हो गया. दरअसल, सफर के दौरान कांदिवली और बोरीवली के बीच खंभे से टकराकर नीचे गिर गया. मेरे सिर में इतनी गहरी चोट आई कि कोमा में चला गया. मुझे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. 16-17 दिन कोमा में रहा. उसके बाद मुझे थोड़ा-थोड़ा होश आया. डॉक्टर मुझसे एड्रेस पूछते थे, तब डर-वश बताता नहीं था. थोड़ा ठीक हुआ, तब नानाजी के तबेले दहिसर का एड्रेस दे दिया. फिर तो नाना-मामा और पिताजी, सब मिलने के लिए आ गए. धीरे-धीरे ठीक हो गया, तब जोगेश्वरी आ गया. जोगेश्वरी में जिन रिश्तेदार के पास रहता था, उनके लड़कों ने मेरे पिताजी के बारे में कुछ गलत बातें बोल दीं जिससे नाराज होकर मैं वहां से भी निकल गया.
”मैं थोड़ा सही हुआ तो सोचा कि चलो कुछ काम करते हैं. दहिसर में काम ढूंढा तो एक घड़ी का पट्टा बनाने वाली कंपनी मिली, जिसमें रोजाना 8 घंटे काम करने के लिए मुझे 7 रुपए मिलते थे. मैंने कहा कि सेठ 7 रुपए तो बहुत कम हैं, तो जवाब मिला, फिर कहीं और काम ढूंढ लो, इस पर मैंने सोचा कि जो काम मिल रहा है, उसे ही कर लूं. इसी दौरान मुझे पता चला कि मुंबई स्थित नटराज स्टूडियो में शूटिंग चलती है, लेकिन अंदर जाने नहीं देते थे. वहां मेंबरशिप कार्ड बनाने के लिए पैसा लगता है. कम से कम 60 से 70 रुपए लग जाता है. खैर, घड़ी पट्टा बनाने वाली कंपनी में 15 दिन काम किया, तब सेठ से बोला कि सेठ मुझे पैसे की जरूरत है. हिसाब कर दो, मैं बाद में काम पर आता हूं. बहरहाल, इस मामले में सेठ सही थे. उन्होंने पैसा दे दिया तो पैसे लेकर सीधा अंधेरी आ गया.
”नटराज स्टूडियो आ गया, तब एक-दो दिन खाना ही नहीं खाया, क्योंकि उन पैसों से कार्ड बनवाना था. मैं नटराज स्टूडियो के गेट पर दो दिन तक पड़ा रहा. वहां कुछ सिक्योरिटी गार्ड कहने लगे कि ऐसे क्यों भूखे-प्यासे पड़े हो. मैंने बताया काम की तलाश कर रहा हूं. उन्होंने कहा, स्टूडियो के अंदर कार्ड के बगैर जाने नहीं देते हैं. इसका कार्ड रंजीत स्टूडियो में बनता है. बिना कार्ड के कोई काम पर नहीं रखेगा. मैंने कहा कि आप थोड़ी मदद कीजिए न! उन्होंने पूछा- खाना बनाना आता है? मैंने बोला कि हां, खाना बना लेता हूं, जबकि उस समय मुझे रोटी बनाना आता ही नहीं था. खैर, उनके साथ लग गया, तब बोले कि जाओ दाल-चावल बना दो. मैं रोटी आकर बनाता हूं. मैं खुश होकर दाल-चावल बना देता था, ताकि स्टूडियो के अंदर रहने को मिल जाए. इस तरह नटराज स्टूडियो के अंदर रहकर घूमना-फिरना शुरू कर दिया.
”एक बार एक आदमी मिला, मैंने उनसे कहा कि मुझे काम की जरूरत है. उन्होंने मुझे फिल्म में बच्चे का रोल दे दिया. मैंने प्यार किया टाइटल सॉन्ग की शूटिंग चल रही थी. झोपड़ी में हमें बैठाया गया था. इस शूटिंग के लिए मुझे एक दिन के 30 रुपए और खाना भी मिला. मेरे लिए ये बड़ी बात थी. ऐसे ही मैंने करीब तीन-चार सौ रुपए कमा लिए. मुझे एक्टिंग नहीं आती थी, इसलिए मुझे इससे आसान स्पॉटबॉय का काम लगा. मैं एसोसिएशन से स्पॉटबॉय का कार्ड बनवाने रंजीत स्टूडियो गया. उस समय ना मेरी मूछें थीं ना दाढ़ी. उन लोगों ने मुझसे कहा तुम अभी बच्चे हो. कुछ साल रुको, फिर आना. मैं परेशान हो गया. मैं स्टूडियो गया, मैंने स्टूडियो वाले से कहा कि मुझे मूछें चाहिए, तो उसने पेंसिल से मूंछ बनाई और मेरी फोटो क्लिक की. मैं फिर रंजीत स्टूडियो गया तो उन्होंने कहा, तू तो बड़ा एक्टर निकला, इतना दिमाग कैसे आया. आखिरकार 60 रुपए में मेरा कार्ड बन गया. अब उसी कार्ड के 60 हजार रुपए लगते हैं.
”युगन्धर फिल्म की शूटिंग चल रही थी, जिसमें मिथुन चक्रवर्ती और संगीता बिजलानी थे. शूटिंग मड आइलैंड के किले में चल रही थी. मुझे उसमें स्पॉटबॉय का काम मिला. हमें बड़े लोगों का ख्याल रखना होता था. खाना-पीना, चाय-पानी की व्यवस्था करनी होती थी. सबकी देखभाल करनी होती थी. वहां से निकला तो दूसरी फिल्मों में काम मिलने लगा. गोविंदा की फिल्म दूल्हे राजा में मुझे एक्टिंग करने का मौका मिला. एक सीन में मैंने गोविंदा की मालिश की है. सीन ऐसा था कि गोविंदा अपने गार्ड के साथ एक चाय की शॉप में रुकते हैं तो मैं उनके पैर दबाता हूं. इस फिल्म के बाद मैंने फिर स्पॉटबॉय का काम शुरू कर दिया.
”एक बार सुनील शेट्टी के साथ काम कर रहा था. उस समय पैसे ज्यादा मिलते नहीं थे. मैं सुनील शेट्टी के पास जाकर खड़ा हो गया. उन्होंने पूछा यहां क्यों खड़े हो. मैंने हिचकिचाते हुए कहा कि साहब मुझे 1200 रुपए चाहिए. मेरे मुंह से निकल गया कि मैं बाद में दे दूंगा. उन्होंने फिल्म सिटी में शूटिंग के दौरान मुझे पैसे दे दिए. फिर जब भी सुनील शेट्टी साहब मुझे काम करते देखते थे तो आकर पूछते थे कि मेरे पैसे कहां हैं. मैं कहता था, साहब अभी नहीं है, मैं कमा कर दे दूंगा.
”ऐसे ही 20-25 दिन बाद उन्होंने दोबारा बुलाकर पूछा कि पैसे किधर हैं. उस समय वो बहुत गुस्सा थे. उन्होंने मुझे फिल्मिस्तान में वैनिटी वैन में बुलाया और फिर पूछा. मैंने कहा अभी मेरा काम बंद चल रहा है, मैं दे दूंगा. उन्होंने कहा कि फिर क्यों कहा था कि मैं वापस कर दूंगा. उन्होंने मुझे दो खींच के मारा. बोले और मारूंगा मैं. मैंने सोचा कोई बात नहीं वो बड़े आदमी हैं और मैंने पैसे भी लिए हैं, तो वैन के अंदर मारा तो चलेगा. उस समय मैंने कान पकड़ लिए कि कभी किसी से पैसे नहीं लूंगा.
”उनके पर्सनल बॉय ने मुझसे कहा कि अब साहब के सामने मत आना वर्ना और मारेंगे. उसके बाद मेरी कभी उनसे मुलाकात नहीं हुई. एक दिन पवई में सुनील शेट्टी की शूटिंग में पहुंचा था, लेकिन उनके ड्राइवर ने कहा कि उनके सामने मत जाना वर्ना वो मारेंगे, तो मैं नहीं गया. मैंने सुना था कि जैकी दादा सबको खूब पैसे देते हैं. वो दिल के राजा आदमी हैं. वो कभी नहीं देखते कि कौन छोटा आदमी है या कौन बड़ा. बहुत मिल-जुल कर रहते थे. एक दिन मुझे पैसे की जरूरत थी. कोई रास्ता नहीं बचा था. मैंने सोचा कि कहीं वो बुरा ना मान जाएं, लेकिन हिम्मत करके मैं उनके पास पहुंच गया. मैंने उन्हें बताया कि दादा मेरा घर टूट गया है, बच्चे नहीं आ रहे. जैकी दादा ने मजाक करते हुए कहा, क्या मैंने कहा था शादी करने को या बच्चे पैदा करने के लिए. तू बच्चे पैदा किया. फिर उन्होंने पूछा कि कितने पैसे चाहिए. मैंने कहा ज्यादा नहीं बस 1700 रुपए. उन्होंने अपने लड़के से कहा इनके घर 70 हजार रुपए पहुंचा देना.
”उन्होंने पता मांगा. मैंने कहा कि मुझे 70 हजार नहीं, 1700 रुपए चाहिए. उन्होंने कहा हां ठीक है पहुंच जाएंगे. मैंने सोचा बिजी आदमी हैं, शूटिंग करने, डायलॉग याद रखने के बीच ये कहां याद रखेंगे, लेकिन अगले ही दिन घर पर उनका आदमी पहुंच गया. उसने मुझे 1900 रुपए दिए, साथ ही मेरी जैकी दादा से बात करवाई. साल 2010 में मेरी मुलाकात सुख शरण से हुई. वो उस समय इम्तिहान सीरियल बना रहे थे. उन्होंने मुझसे कहा कि हम तुम्हें एक रोल देना चाहते हैं. साथ ही तुम्हें ऑफिस में भी काम करना पड़ेगा. मैं राजी हो गया. उनके पूरे 105 एपिसोड आए. उसमें मुझे नौकर का रोल मिला था. मुझे एक दिन के 200-250 रुपए मिलते थे.
”उस समय मेरी साढ़े साती शुरू हो गई और काम रुक गया. 2 साल बाद शो रुका तो मैं घर बैठ गया. मैं सोचता था कि लोग कहेंगे कि ये एक्टर बन गया और अब फिर स्पॉटबॉय बनकर काम करने लगा. कहीं 5 दिन काम मिला कहीं 10 दिन. कोई मुझसे बद्तमीजी करता था तो मैं या तो मारता था या काम छोड़ता था. कुछ एक्टर्स से कहासुनी हो जाती थी तो मुझे खुद ही मनाना पड़ता था.
”उस समय एक्ट्रेस श्रीपदा के सामने मेरा झगड़ा हो गया था. वहां खाने में देर होने पर झगड़ा हुआ था. फिर मैंने वो फिल्म छोड़कर 2008 में सलमान खान के प्रोडक्शन में काम किया. मैंने ज्यादा दिनों तक उनके प्रोडक्शन में काम नहीं किया. फिर मैंने 2015-16 के बीच उनके प्रोडक्शन में दोबारा काम किया. जब मैं दोबारा आया तो सलमान सर मुझे पहचान गए थे, क्योंकि हमने मैंने प्यार किया में साथ काम किया था. उन्होंने अपने भाई सोहेल खान को भी बताया कि हमने साथ काम किया था.
”वहां एक स्पॉटबॉय था, जिसने 8 दिन के पैसे काट लिए. मैंने वहां दिन रात डबल शिफ्ट में काम किया था, लेकिन उसने ये कहकर मेरे पैसे काट लिए कि उसे खुद पैसे नहीं मिले. मेरे उस समय 25 हजार रुपए बनते थे. फिर मैंने मेकअप मैन और बाकी लोगों से कहा कि उस स्पॉटबॉय ने मेरे पैसे खाए हैं, मुझे सलमान भाई से शिकायत करनी है. सबने कहा शिकायत लेकर यूनियन के पास जाओ. मैंने कहा सलमान की फिल्म है, यूनियन में शिकायत क्यों करूं. ये सोचकर मैंने 2017-18 में वो प्रोडक्शन ही छोड़ दिया. दो साल पहले मैं इमी प्रोडक्शन में लग गया. उस समय मरजावां फिल्म चल रही थी. उसके बाद मैंने मुगल समेत एक-दो फिल्मों में काम किया. वहां भी रंजीत नाम के एक स्पॉटबॉय ने अपने रिश्तेदारों को रख लिया और मुझे बाहर करने लगा.
”एक दिन शूटिंग करते हुए मैं बहुत थक गया था और आंखें भी लाल हो गई थीं. उस स्पॉटबॉय ने मैनेजर से शिकायत करते हुए कहा कि मैं नशा करके सेट पर आया हूं. वो चाहता था कि मैं बाहर हो जाऊं. मैनेजर ने मुझे बुलाकर कहा, दुबे तुमने नशे किए हैं. मैंने सफाई दी. पीछे खड़े एक आदमी ने कहा कि बोल दे कि कुछ खा लिया है तो माफ कर देंगे. मैंने वैसा ही किया, तो उन्होंने मुझे वहां से भगा दिया. मैंने खूब कहा कि माफ कर दीजिए, तो बोलने लगे तुम्हें माफी नहीं फांसी मिलनी चाहिए. मेरी बात किसी ने नहीं सुनी. मुझे निकाल दिया गया, ये सब मेरे साथ के लोगों की चाल थी. आज भी जब सेट पर जाता हूं तो हर स्पॉट मैनेजर मुझे चाचा कहकर इज्जत देता है.
”मैंने 1993 में अपना झोपड़ा बनाया था, लेकिन वो घर भी तोड़ दिया गया. मैंने बांद्रा के ज्ञानेश्वर नगर में एक घर बनाया था. बच्चों की भी शादी करवा दी थी. साल 2014 में मेरी पत्नी की रीढ़ की हड्डी में दिक्कत हुई. उसी समय घरों का सर्वे चल रहा था. मैं पत्नी के साथ अस्पताल में ही रहता था. सर्वे नहीं हो पाया तो घर तोड़ दिया गया. हमें घर से सामान निकालने का भी मौका नहीं दिया और घर वैसे ही तोड़ दिया. जब बनाने का सोचा तो वहां मेट्रो का काम शुरू हो गया. मैं इस सिलसिले में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से भी मिला. उन्होंने भी मुझे लेटर दिया. उन्होंने आश्वासन दिया कि घर मिल जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जिन दूसरे लोगों के घर टूटे वो अब कोर्ट केस लड़ रहे हैं. कोर्ट में जाने के लिए एक आदमी लोगों से 1-2 लाख रुपए मांग रहा था, इसलिए मैंने केस नहीं किया. अब मैं खार में एक किराए के घर में रहता हूं.
”ऐसे ही मेरी जिंदगी कट रही है. मैं पिछले एक डेढ़ महीने से खाली हूं. मेरे पास काम नहीं है. लॉकडाउन में भी मेरी हालत बहुत खराब हो गई. कई लोगों से बात हुई, कई जगह न्यूज भी चली, लेकिन किसी ने मदद नहीं की. एक बार यूनियन से मदद मिली थी. वहां से 3 हजार रुपए की मदद मिली और डेढ़ हजार का राशन आया. वो भी पता चला कि अमिताभ बच्चन या सलमान खान ने दिए थे. उसके अलावा कहीं से मदद नहीं मिली. लॉकडाउन में घर से निकलना भी मुमकिन नहीं था किसी से मदद कैसे लेते. किसी से चंद पैसे मिल जाते थे तो गुजारा हो जाता था. लॉकडाउन के बाद मैंने कुछ ऐड फिल्मों में काम किया.”
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