गुजरात चुनाव में दांव पर दांव चले जा रहे हैं. आम आदमी पार्टी ने अब भाजपा की कमजोर नब्ज पर हाथ रख दिया है. भाजपा चुनाव के दौरान आमतौर पर मुख्यमंत्री का चेहरा उजागर नहीं करती. अक्सर चुनाव बाद ही अपने पत्ते खोलती है. इसके उलट आप पार्टी ने जनता से पूछा कि बताइए –
गुजरात चुनाव में दांव पर दांव चले जा रहे हैं. आम आदमी पार्टी ने अब भाजपा की कमजोर नब्ज पर हाथ रख दिया है. भाजपा चुनाव के दौरान आमतौर पर मुख्यमंत्री का चेहरा उजागर नहीं करती. अक्सर चुनाव बाद ही अपने पत्ते खोलती है. इसके उलट आप पार्टी ने जनता से पूछा कि बताइए – हमारी सरकार बनती है तो मुख्यमंत्री के रूप में आप किसे पसंद करेंगे. पार्टी ने दावा किया कि उसके पास साढ़े सोलह लाख लोगों के जवाब आए और इनमें से 73 प्रतिशत ने मुख्यमंत्री पद के लिए जो नाम बताया, वह है- इशुदान गढ़वी. हालाँकि दौड़ में दो और नाम थे। पहला- गोपाल इटालिया, ये पाटीदार समाज से आते हैं और पहले जो पाटीदार आंदोलन हुआ था, उसमें इनकी भी प्रमुख भूमिका थी.
हार्दिक पटेल के साथ बड़ा आंदोलन खड़ा करने में इटालिया भी शामिल थे. हार्दिक तो इस आंदोलन से उठकर पहले कांग्रेस में और फिर जिस भाजपा के खिलाफ लड़े, उसी में शामिल हो गए. इटालिया आप पार्टी की शोभा बढ़ा रहे हैं. आप के संभावित मुख्यमंत्री पद के लिए तीसरा नाम था- अल्पेश कथेरिया. ये भी पाटीदार समाज के ही हैं. बहरहाल, निर्णय हो चुका और अरविंद केजरीवाल ने घोषणा भी कर दी है कि जनता की पसंद के अनुसार अब इशुदान गढ़वी ही आप पार्टी के संभावित मुख्यमंत्री होंगे. ख़ैर, इशुदान गढ़वी नए-नए राजनीति में आए हैं. हो सकता है जनता उनकी बात पर ज़्यादा भरोसा करे!
दरअसल 10 जनवरी 1982 को गुजरात के पिपलिया में जन्मे इशुदान एक वरिष्ठ पत्रकार हैं और जून 2021 में ही पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में आए. आप पार्टी के गुजरात संयोजक बने. अपने बयानों के कारण वे विवादों में भी रहे. राज्य सरकार की ओर से उन्हें कई तरह की दिक़्क़तें भी झेलनी पड़ीं. उन्हें गुजरात में आप पार्टी के ज़मीनी नेता के रूप में पहचान मिली हुई है. आप के इस करतब को तब बड़ा झटका लगा, जब शुक्रवार को दिल्ली नगर निगम के चुनाव घोषित कर दिए गए. चुनाव की घोषणा कोई बड़ी बात नहीं है. होनी ही थी. इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं है. आश्चर्यजनक जो है, वह है, वोटिंग की तारीख़. चार दिसंबर. यानी गुजरात चुनाव के अंतिम चरण पाँच दिसंबर से ठीक एक दिन पहले.
अब आम आदमी पार्टी असमंजस में होगी कि वह अपनी ताक़त दिल्ली नगर निगम चुनाव में लगाए या गुजरात चुनाव में. दिल्ली निगम में फ़िलहाल भाजपा का राज है जिसे आप पार्टी हर हाल में छीनना चाहती है, लेकिन अब मामला फँस गया है. देखना यह है कि आप पार्टी दोनों जगह अपनी ताक़त का लोहा कैसे मनवाती है!
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