अमिताभ के पेट पर पड़ा वह घूंसा, जिससे पूरा देश सदमे में चला गया

अमिताभ के पेट पर पड़ा वह घूंसा, जिससे पूरा देश सदमे में चला गया

अन्नू कपूर : फिल्म ‘कुली’ शुरू होने के करीब 01.23:06 के बाद एक शॉट आता है, जिसमें खलनायक बॉब, फाइट के दौरान इकबाल कुली को एक जबरदस्त घूंसा मारता है. उस घूंसे ने सारी दुनिया में जबरदस्त सनसनी मचा दी थी. हिन्दी फिल्मों के दीवानों को मालूम हुआ कि उनका चहेता हीरो अमिताभ बच्चन गंभीर

अन्नू कपूर : फिल्म ‘कुली’ शुरू होने के करीब 01.23:06 के बाद एक शॉट आता है, जिसमें खलनायक बॉब, फाइट के दौरान इकबाल कुली को एक जबरदस्त घूंसा मारता है. उस घूंसे ने सारी दुनिया में जबरदस्त सनसनी मचा दी थी. हिन्दी फिल्मों के दीवानों को मालूम हुआ कि उनका चहेता हीरो अमिताभ बच्चन गंभीर रूप से घायल होकर अपने जीवन से जूझ रहा है. इस घटना के बारे में इंटरनेट पर काफी कुछ मौजूद है, लेकिन बहुत कुछ अनकहा है. आज उसे आपके साथ शेयर कर रहा हूं.
तारीख 26 जुलाई 1982, वक्त दोपहर 3 से 4 के बीच. बेंगलुरु यूनिवर्सिटी कैम्पस में कुली फिल्म की शूटिंग हो रही थी. सीन था- इकबाल कुली यानी अमिताभ बच्चन और ​​बॉब यानी पुनीत इस्सर के बीच फाइंटिंग का. ये एक्शन शॉट कम्पोज किया स्टंट कोऑर्डिनेटर पप्पू वर्मा ने. पहले पुनीत इस्सर कैमरे के राइट साइड में हैं, उसके बाद वे अमिताभ बच्चन को घुमाकर कैमरे को राइट साइड में लाकर उनके पेट पर घूंसा मारते हैं. उसके बाद कैमरा एंगल में दोनों प्रोफाइल में हो जाते हैं.
यहां ध्यान दिलाना चाहूंगा कि फिल्म की फाइट या स्टंट्स एक कला है, एक बहुत जोखिम भरी तकनीक है. पुनीत इस्सर मार्शल आर्ट में माहिर थे. ये शॉट उनके लिए इस फिल्म के पहले दिन का पहला शॉट था. जब शूट शुरू हुआ तो प्रोफाइल शॉट के कारण अमिताभ बच्चन ने कहा कि घूंसा मुझे टच होना जरूरी है, वरना चीटिंग पकड़ी जाएगी. तो हो सकता है, अमिताभ बच्चन पीछे रखे बोर्ड के कारण अपना संतुलन पीछे न रखकर एक इंच आगे बढ़ गए हों (ये मेरा अनुमान है). इसके बाद जो हुआ, वह बहुत दर्दनाक था.
पुनीत इस्सर का मुक्का जैसे ही पेट पर पड़ा, अमिताभ बच्चन जमीन पर गिर पड़े. कुछ वक्त बाद वे उठे और बोले कि उन्हें बहुत तेज दर्द हो रहा है. मनमोहन देसाई ने उन्हें तत्काल उनके होटल भिजवा दिया. डॉक्टर्स भी आ पहुंचे. पुरानी बीमारियों के चलते बहुत सारी दवाइयों से उन्हें एलर्जी थी, इसलिए दर्द खत्म करने के लिए बहुत सोच-समझकर दवाइयां दी गईं, लेकिन उसका असर नहीं हुआ. उधर, मनमोहन देसाई ने इस उम्मीद से शूटिंग जारी रखी कि मामला गंभीर नहीं है. अमिताभ जल्दी ही ठीक हो जाएंगे, लेकिन 26 जुलाई की सारी रात अमिताभ भयानक दर्द झेलते रहे. अगले दिन 5-6 किलोमीटर दूर विवेक नगर में सेंट फिलोमिना हॉस्पिटल में अमिताभ को भर्ती करवा दिया गया.
कांग्रेस की सरकार थी. इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री, उनके पुत्र राजीव गांधी, मुख्यमंत्री गुंडुराव और सबके चहेते अमिताभ बच्चन… ये सारे नाम डॉक्टरों का तनाव बढ़ा रहे थे. वैसे भी मेडिकल साइंस में तब भारत काफी पीछे था. अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी शुरुआती फेज में थी. पेट के लिए सीटी स्केन तो मुझे लगता है कि 1993 में भारत आया. काफी समय तक डॉक्टरों को बीमारी पकड़ ही नहीं आई. बार-बार टेस्ट कराने के बाद भी क्लियर डायग्नोसिस नहीं हो पा रहा था. उधर, अमिताभ की हालत बिगड़ती चली जा रही थी. तभी वेल्लोर के डॉ. भट्ट की एंट्री हुई. उन्होंने एक्स-रे रिपोर्ट में इन्टेस्टीनल पफोर्रेशन डिटेक्ट करके बताया कि अमिताभ के पेट में लगी चोट अब मवाद की हालत में पहुंच गई है. जो सर्जरी 7-8 घंटे के भीतर हो जानी चाहिए थी, उसमें काफी देर हो चुकी थी.
अमिताभ की इमरजेंसी सर्जरी की गई. पूरा देश अपने प्रिय हीरो के जीवन के लिए प्रार्थना कर रहा था. अमिताभ को बॉम्बे के ब्रीचकैंडी हॉस्पिटल लाया गया, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ, भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक वे ‘कोमा’ में चले गए. ऐसा लगा सारा देश मातम में है. मंदिर, मस्जिद, दरगाह, चर्च, गुरुद्वारों, सभी जगहों पर प्रार्थना-दुआओं के लिए हाथ जुड़ गए. 2 अगस्त 1982 को डॉक्टरों की मेहनत के बाद सांसें फिर जीवन के द्वार पर हल्की-हल्की दस्तक देने लगीं. धीरे-धीरे अमिताभ की हालत सुधरने लगी. देश-विदेश में खुशी की लहर दिखने लगी. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जब मिलने पहुंचीं तो अमिताभ बोल नहीं पा रहे थे. उन्होंने तख्ती पर लिखकर दिखाया, ‘सॉरी, मैं बोल नहीं पा रहा हूं.’ तब इंदिरा गांधी ने कहा, ‘कोई बात नहीं बेटा, मैं बोल सकती हूं और तुम भी जल्दी ठीक होकर वैसे ही बोलोगे, जैसे पहले अपनी पाटदार गमक भारी आवाज से करोड़ों का दिल लुभाते थे.’
मनमोहन देसाई ने उस हादसे के बाद दो दिन तक तो बेंगलुरु में शूटिंग जारी रखी, लेकिन उसके बाद उसे रोककर पूरे शेड्यूल का पैक-अप कर दिया गया. बाद में पूरी तरह ठीक होने के बाद अमिताभ बच्चन ने शूटिंग की तारीख दी. मुंबई के चांदीवाली स्टूडियो में कला निर्देशक ए. रंगराज ने बेंगलुरु जैसा ही सेट लगा दिया और अमिताभ बच्चन ने 7 जनवरी 1983 से वापस इसकी शूटिंग शुरू की. इस फिल्म के एडिटर थे ऋषिकेश मुखर्जी जिन्होंने फिल्म के दौरान उस विशेष शॉट को फ्रीज किया, जिसमें मेगास्टार अमिताभ बच्चन के साथ ये जानलेवा हादसा हुआ था.

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