दिल्ली के श्रद्धा हत्याकांड ने पूरे देश को दहला दिया है. जहां क़ानूनी हलकों में इस बात को लेकर चर्चा है कि अपराध सिद्ध होने पर कड़ी से कड़ी सज़ा का प्रावधान होना चाहिए या इसमें ‘दुर्लभ से दुर्लभ’ मामले के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, वहीं ट्विटर पर #DelhiMurder, #AaftabPoonawala और #ShraddhaWalkar ट्रेंड कर रहे
दिल्ली के श्रद्धा हत्याकांड ने पूरे देश को दहला दिया है. जहां क़ानूनी हलकों में इस बात को लेकर चर्चा है कि अपराध सिद्ध होने पर कड़ी से कड़ी सज़ा का प्रावधान होना चाहिए या इसमें ‘दुर्लभ से दुर्लभ’ मामले के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, वहीं ट्विटर पर #DelhiMurder, #AaftabPoonawala और #ShraddhaWalkar ट्रेंड कर रहे हैं. एक और बात जिसने सबको सकते में डाल दिया है वो ये कि कोई इतना घिनौना अपराध कैसे कर सकता है? ऐसे व्यक्ति के दिमाग़ में ऐसा क्या चल रहा था कि उसने हत्या करने के बाद अपने अपराध को छिपाने के लिए इतना क्रूर क़दम उठाया? इस मामले को लेकर सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश भी की जा रही है.
पुलिस के अनुसार, इस साल मई महीने में 27 साल की लड़की श्रद्धा वालकर की आफ़ताब पूनावाला ने पहले हत्या की और फिर उसके 35 टुकड़े कर जंगल के अलग-अलग इलाकों में फेंक दिया. ये दोनों लिव-इन रिलेशन यानी बिना शादी के एक साथ रहते थे. पुलिस ने आफ़ताब को गिरफ़्तार कर लिया है और उससे पूछताछ की जा रही है. पूछताछ के दौरान पुलिस आफ़ताब को घटनास्थल पर भी लेकर गई जहां उसने श्रद्धा के शरीर के टुकड़ों को फेंका था. श्रद्धा महाराष्ट्र के पालघर की रहने वाली थी और लड़की का परिवार इस रिश्ते से नाख़ुश था. इसके कारण दोनों ने दिल्ली आने का फ़ैसला किया और साथ रहने लगे थे. आफ़ताब ने 18 मई से पहले भी अपनी प्रेमिका को मारने की कोशिश की थी. दोनों के बीच उनकी शादी को लेकर बहस हुई थी. साथ ही आफ़ताब और उनकी प्रेमिका की हत्या वाले दिन भी लड़ाई हुई थी.
मनोवैज्ञानिक डॉक्टर समीर मल्होत्रा (दिल्ली मैक्स के मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज़ निदेशक) कहते हैं कि श्रद्धा वालकर जैसे अपराधों के पीछे कई कारण होते हैं. यहां ये देखना ज़रूरी है कि अपराध करने वाला व्यक्ति किस परिवेश में पला-बढ़ा है, उसकी बचपन से लेकर बड़े होने तक कैसी सोच रही है और उसके आचरण पर उसका कैसे प्रभाव पड़ा है. ऐसे अपराध करने वालों में बचपन से बड़े होने पर ऐसे संकेत मिलते हैं, जहां वे अपने गुस्से पर कंट्रोल नहीं कर पाते और ऐसा अपराध कर बैठते हैं. आफ़ताब जैसा अपराध करने की मानसिकता एक दिन में विकसित नहीं होती है बल्कि इसके पैटर्न या स्वरूप स्वभाव में दिखने लगते हैं. ऐसे लोगों के लिए अपनी ज़रूरत को पूरा करना, चीज़ों को नियंत्रण में लेना ही सर्वोपरि हो जाता है और सही-ग़लत का ज्ञान होने के बावजूद वो तार्किक समझ खो देते हैं.
मनोवैज्ञानिक डॉक्टर पूजाशिवम और डॉक्टर समीर मल्होत्रा बताते हैं कि ऐसे व्यवहार से ये पता चल सकता है कि एक व्यक्ति अपराध कर सकता है- गुस्से पर नियंत्रण न होना (छोटी-छोटी बात पर बहुत ज़्यादा गुस्सा होना, अपने या दूसरे को शारीरिक नुक़सान पहुंचाना), दूसरों को पीड़ा देकर सुकून मिलना, रिश्ते में एक-दूसरे के लिए सम्मान का न होना, एक रिश्ता केवल एक ही व्यक्ति की ज़रूरतों के हिसाब से चले जा रहा है और उसमें दूसरे का मत, इच्छाएं मायने ही ना रखती हों, जहां रिश्ते में एक व्यक्ति का दूसरे पर नियंत्रण होना, व्यवहार में अनियमितता हो या मूड स्विंग हो, यानी बहुत ज्यादा प्यार हो, बहुत गुस्सा, और ये केवल पार्टनर के साथ ही नहीं बल्कि लोगों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार होना, चीज़ें छिपाने की आदत, झूठ बोलना और दूसरों की संवेदना को न समझना. अगर इस तरह के व्यवहार स्वभाव में दिखाई देते हैं तो ये ख़तरे की घंटी हो सकती है, लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं है कि ऐसे व्यवहार वाला व्यक्ति ऐसा जघन्य अपराध करेगा ही.
पुलिस बता रही है, श्रद्धा की लाश को ठिकाने लगाने की तरक़ीब आफ़ताब ने ‘डेक्सटर’ सिरीज़ से जानी. डेक्सटर एक अमेरिकी टीवी सिरीज़ है, जो साल 2006 से 2013 तक प्रसारित की गई थी. इस टीवी सिरीज़ की कहानी डेक्सटर मॉर्गन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक फॉरेंसिक टेक्नीशियन है और सीरियल किलर के तौर पर दोहरी जिंदगी जी रहा है. इस सिरीज़ में दिखाया गया है कि वो उन लोगों की हत्या करता है, जिन्हें क़ानून रिहा कर देता है. आफ़ताब ने मर्डर की वजह बताते हुए कहा है कि श्रद्धा उस पर शादी का दबाव डाल रही थी.
डॉ पूजाशिवम जेटली कहती हैं कि ”ज़्यादातर लोग ऐसी सामग्री देखना चाहते हैं, जो उन्हें रोमांचित करे. आप इसे ऐसे समझिए कि आम लोग भी अगर ऐसी किसी सामग्री या किसी काम को को लंबे समय तक देखते या करते हैं तो इसका उनकी मन:स्थिति पर असर पड़ता है. कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो ऐसी सामग्रियां देखकर इतने भ्रमित हो जाते हैं या उनके मन, मस्तिष्क पर इतना ग़हरा असर होता है कि वे तर्क की क्षमता ही खो देते हैं. ऐसे व्यक्ति जो आत्मलीन हों या असामाजिक हों, वे जब ऐसी उत्तेजक चीज़ें देखते हैं तो ऐसी सामग्रियां उनकी सोचने-समझने की शक्ति को ख़त्म कर देती हैं. अगर बड़े मामलों की बात करें तो आरुषि हत्याकांड आपको याद होगा जहां 14 साल की स्कूल जाने वाली बच्ची संदिग्ध अवस्था में मृत पाई गई थी और निठारी का मामला अभी भी लोगों के ज़हन में है. नीरज ग्रोवर मामला सबसे वीभत्स मामलों में से एक है जिसमें नीरज के शरीर को टुकड़ों में काटकर, तीन सूटकेसों में भरा गया और जंगल में जाकर आग लगा दी गई थी.
हाल के मामलों की बात की जाए तो मध्यप्रदेश से एक व्यक्ति के अपनी गर्लफ्रेंड की हत्या करने का मामला सामने आया था. सोशल मीडिया पर उसने इस बारे में पोस्ट भी किया था, जिसमें वे कह रहे थे- ‘बेवफ़ाई नहीं करने का’. गाजियाबाद में एक पत्नी द्वारा अपने पति की हत्या का मामला सामने आया, जिसमें महिला सहित प्रेमी को गिरफ़्तार किया गया है. इन अभियुक्तों ने हत्या कर शव को घर में दफ़ना दिया था. आए दिन अख़बारों में अपराध की ख़बरें सुर्खियां बनती हैं और ऐसे घिनौने अपराध की ख़बरें ये सवाल भी उठाती हैं कि रिश्तों में होने वाले ऐसे अपराध समाज को किस ओर ले जा रहे हैं?
डॉक्टर समीर मल्होत्रा का कहना है कि ‘इसके कई समाजिक पहलू हैं. ये देखा जा रहा है कि पहले संबंधों में पारिवारिक मूल्य होते थे, जुड़ाव होता था और भौतिक चीज़ों से ज़्यादा परिवार को तरजीह दी जाती थी, लेकिन अब इसमें कमी आ रही है. लोग अब इंसानियत और संवेदनाओं को समझने की बजाए भौतिकवाद के पीछे भागते हैं और पारिवारिक मूल्य ख़त्म होते जा रहे हैं. लोगों को तुरंत चीज़ें चाहिए और भावनात्मक जुड़ाव नहीं हो रहा. बस केवल अपनी इच्छाओं को पूरा करने में भी ऐसे अपराध होते हैं. साथ ही, शिक्षा की कमी, नशा और बचपन में बीता तनावपूर्ण पारिवारिक जीवन भी इसके कारण बनते हैं.’ (बीबीसी से साभार सुशीला सिंह की रिपोर्ट)
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