ललित मौर्य : वैज्ञानिकों को पहली बार गर्भ में पल रहे भ्रूण के जिगर, फेफड़े और मस्तिष्क में वायु प्रदूषण के कण मिले हैं, जो इस बात का सबूत हैं कि मां द्वारा सांस में लिए गए कालिख के नैनोकण प्लेसेंटा को पार कर गर्भ में पल रहे बच्चे के शरीर में प्रवेश कर सकते
ललित मौर्य : वैज्ञानिकों को पहली बार गर्भ में पल रहे भ्रूण के जिगर, फेफड़े और मस्तिष्क में वायु प्रदूषण के कण मिले हैं, जो इस बात का सबूत हैं कि मां द्वारा सांस में लिए गए कालिख के नैनोकण प्लेसेंटा को पार कर गर्भ में पल रहे बच्चे के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं. इस बात से ही वातावरण में घुलते इस जहर की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है, जो सिर्फ जन्मों को ही नहीं अजन्मों को भी अपना शिकार बना रहा है. शोध कर्ताओं का कहना है कि दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत में यह समस्या ज्यादा गंभीर हो सकती है क्योंकि यहां वायु प्रदूषण का स्तर स्कॉटलैंड और बेल्जियम से कहीं ज्यादा है.
गौरतलब है कि इससे पहले भी किए गए अध्ययनों में इस बात की पुष्टि हो चुकी है, पर्यावरण प्रदूषक अजन्मे बच्चे को अपना निशाना बना सकते हैं। उदाहरण के लिए गर्भावस्था के दौरान सिगरेट आदि के धुंए के संपर्क में आने से बच्चों में जन्म सम्बन्धी विकार के मामलों में 13 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी. इसी तरह स्टिलबर्थ का जोखिम भी 23 फीसदी बढ़ जाता है. इसी तरह गर्भावस्था के दौरान अन्य प्रदूषकों जैसे लीड, कीटनाशकों और वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से बच्चे के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है लेकिन अब स्कॉटलैंड के एबरडीन विश्वविद्यालय और हैसेल्ट विश्वविद्यालय, बेल्जियम के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में अजन्मे बच्चों के फेफड़ों, जिगर और मस्तिष्क में वायु प्रदूषण के कणों के पाए जाने के प्रमाण मिले हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि गर्भावस्था की पहले तिमाही में वायु प्रदूषण के कण प्लेसेंटा को पार कर गर्भ में पल रहे बच्चे के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं. इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित हुए हैं.
इस बारे में शोधकर्ताओं का कहना है कि अजन्मे बच्चे में वायु प्रदूषण का पाया जाना बहुत चिंताजनक है क्योंकि गर्भधारण की यह अवधि मानव विकास का सबसे कमजोर चरण होता है. इस अवधि में ही बच्चे का विकास शुरू होता है. शोधकर्ताओं को अध्ययन के दौरान प्रत्येक क्यूबिक मिलीमीटर ऊतक में हजारों ब्लैक कार्बन के कण मिले हैं, जो गर्भावस्था के दौरान मां की सांस के जरिए रक्तप्रवाह और फिर प्लेसेंटा से भ्रूण में चले गए. शोधकर्ताओं ने 36 भ्रूणों के ऊतकों से लिए नमूनों का भी विश्लेषण किया है, जिनका गर्भपात सात से 20 सप्ताह के बीच किया गया था. ब्लैक कार्बन पार्टिकल्स, जिसे कालिख के कणों के रूप में भी जाना जाता है, उनका गर्भनाल के रक्त में पाया जाना इस बात को दर्शाता है कि यह कण प्लेसेंटा की सुरक्षा को पार कर सकते हैं.
इस बारे में स्कॉटलैंड के एबरडीन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और शोध से जुड़े पॉल फाउलर का कहना है, यह पहली बार सामने आया है कि ब्लैक कार्बन के नैनोपार्टिकल्स न केवल गर्भावस्था की पहली और दूसरी तिमाही में प्लेसेंटा में प्रवेश कर सकते हैं, बल्कि विकसित हो रहे भ्रूण के अंगों में भी अपनी जगह बना रहे हैं. इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि वे कण बच्चे के मस्तिष्क में भी प्रवेश कर सकते हैं. इसका मतलब है कि इन सूक्ष्मकणों के लिए मानव भ्रूण के अंगों और कोशिकाओं के भीतर नियंत्रण प्रणालियों को सीधे प्रभावित करना संभव है. शोधकर्ताओं ने स्कॉटलैंड और बेल्जियम में गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों की जांच की है, जो धूम्रपान नहीं करती थीं और जहां वायु प्रदूषण का स्तर अपेक्षाकृत कम था। इसके नतीजे पूरी दुनिया में बढ़ते प्रदूषण के असर को इंगित करते हैं.
जर्नल लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण के चलते दक्षिण एशिया में हर साल साल 349,681 महिलाएं मातृत्व के सुख से वंचित रह जाती हैं, जोकि इस क्षेत्र में गर्भावस्था को होने वाले नुकसान का करीब 7.1 फीसदी है. यदि सिर्फ भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट (एचईआई) द्वारा प्रकाशित आंकड़ों से पता चला है कि भारत में बढ़ता वायु प्रदूषण हर साल 1.2 लाख नवजातों की जान ले रहा है. वहीं नाइजीरिया में हर साल 67,869, पाकिस्तान में 56,519, इथियोपिया में 22,857, कांगों में 11,100, तंजानिया में 12,662 और बांग्लादेश में 10,496 नवजातों की मौत की वजह वायु प्रदूषण रहा है।
भारत में वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या है, देश की करीब सारी आबादी दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है. हर साल भारत में होने वाली करीब 17 लाख असमय मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है. इसके चलते हर साल तकरीबन 3.5 लाख बच्चे अस्थमा का शिकार हो जाते हैं. वहीं 24 लाख लोगों को हर साल इसके कारण होने वाली सांस की बीमारियों के चलते अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ते हैं. साथ ही इसके कारण देश में हर साल 49 करोड़ काम के दिनों का नुकसान हो जाता है. यदि भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर की बात करें तो इसके चलते हर साल भारतीय अर्थव्यवस्था को करीब 1.05 लाख करोड़ रुपए (15,000 करोड़ डॉलर) का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा जारी नए विश्लेषण से पता चला है कि पीएम2.5 का बढ़ता स्तर न केवल कुछ बड़े और खास शहरों तक ही सीमित है बल्कि अब वह एक राष्ट्रव्यापी समस्या बन चुका है.
उदाहरण के लिए इस साल गर्मियों में बिहार शरीफ में पीएम2.5 का दैनिक औसत 285 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया था. रोहतक में यह 258, कटिहार में 245 और पटना में 200 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक दर्ज किया गया था, जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि देश में बढ़ते वायु प्रदूषण की समस्या केवल दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं है.
देखा जाए तो विकास की अंधी दौड़ बढ़ते वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह है. लोग अपने लिए साधन-सुविधाओं और बेहतर जीवनस्तर की चाह में प्रदूषण के स्तर में दिन दूनी वृद्धि कर रहे हैं. ऐसे में यदि अब भी लोग नहीं संभले तो इसका खामियाजा न केवल लोगों को बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी भुगतना तय है.
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