कुछ दिन बाद मिस्त्र के शर्म एल शेख में संयुक्त राष्ट्र का 27वां जलवायु सम्मेलन, या सीओपी 27 का आयोजन होने जा रहा है. ठीक उससे पहले, आज संयुक्त राष्ट्र ने इस साल की अपनी एमिशन्स गैप रिपोर्ट को जारी कर दिया. रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लासगो में हुई पिछली सीओपी के बाद से तमाम सरकारें
कुछ दिन बाद मिस्त्र के शर्म एल शेख में संयुक्त राष्ट्र का 27वां जलवायु सम्मेलन, या सीओपी 27 का आयोजन होने जा रहा है. ठीक उससे पहले, आज संयुक्त राष्ट्र ने इस साल की अपनी एमिशन्स गैप रिपोर्ट को जारी कर दिया. रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लासगो में हुई पिछली सीओपी के बाद से तमाम सरकारें अब तक जलवायु कार्यवाही के नाम पर फेल साबित हु हैं. एमिशन्स गैप रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2021 में ब्रिटेन के ग्लासगो में हुए सीओपी26 में सभी देशों द्वारा अपने नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशंस (एनडीसी) को और मजबूत करने का संकल्प व्यक्त किये जाने और राष्ट्रों द्वारा कुछ अपडेटेड जानकारी दिये जाने के बावजूद इस दिशा में प्रगति के मोर्चे पर बुरी तरह नाकामी ही नजर आ रही है.
तमाम देशों द्वारा इस साल पेश किये गये एनडीसी में सिर्फ 0.5 गीगाटन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैसों का ही जिक्र किया गया है. मगर यह वर्ष 2030 में अनुमानित वैश्विक उत्सर्जन के एक प्रतिशत से भी कम है. इस निहायत धीमी प्रगति ने दुनिया को पेरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्य यानी ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य से कहीं ज्यादा गर्मी बढ़ने के मुहाने की तरफ और भी अधिक धकेल दिया है. एक अनुमान के मुताबिक बिना शर्त वाले एनडीसी से इस सदी तक ग्लोबल वार्मिंग को 2.6 डिग्री सेल्सियस तक रोकने के 66 प्रतिशत अवसर मिलते हैं. जहां तक बाहरी सहयोग पर निर्भर रहने वाले सशर्त एनडीसी की बात है तो उनसे यह आंकड़ा घटकर 2.4 डिग्री सेल्सियस हो जाएगा.
अगर मौजूदा नीतियों की ही बात करें तो इससे वैश्विक तापमान में 2.8 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हो जाएगी. इससे वादों और उन पर अमल के बीच के अंतर के कारण पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभावों का पता चलता है. सबसे अच्छी स्थिति में अगर बिना शर्त वाले एनडीसी और अतिरिक्त नेट जीरो उत्सर्जन सम्बन्धी संकल्पों को पूरी तरह लागू किया जाए तो वैश्विक तापमान में सिर्फ 1.8 डिग्री सेल्सियस की ही बढ़ोत्तरी होगी, लिहाजा उम्मीद अब भी बाकी है. हालांकि, वर्तमान उत्सर्जन, लघु अवधि के एनडीसी लक्ष्य और लंबी अवधि के नेट जीरो लक्ष्यों के बीच विसंगति के आधार पर यह परिदृश्य वर्तमान में विश्वसनीय नहीं है.
पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने के लिये दुनिया को अगले आठ सालों के दौरान ग्रीनहाउस गैसों में अभूतपूर्व कटौती करनी होगी. वर्तमान में लागू नीतियों पर आधारित उत्सर्जन से तुलना करें तो बिना शर्त और सशर्त एनडीसी से वर्ष 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में क्रमश: 5 और 10 प्रतिशत की अनुमानित गिरावट आयेगी. ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के लिये कम से कम लागत वाले रास्ते पर जाने के लिए वर्ष 2030 तक मौजूदा नीतियों के तहत परिकल्पित उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कमी लानी होगी. ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य के लिये उत्सर्जन में 30 प्रतिशत कटौती जरूरी है. इतने बड़े पैमाने पर कटौती का मतलब है कि हमें बहुत तीव्र और सुव्यवस्थित एनर्जी ट्रांजिशन करने की जरूरत है. यह रिपोर्ट प्रमुख क्षेत्रों और प्रणालियों में इस रूपांतरण के एक हिस्से को लागू करने के रास्ते तलाशती है.
रिपोर्ट में पाया गया है कि बिजली आपूर्ति, उद्योग, परिवहन और भवनों में नेट जीरो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की दिशा में ट्रांजिशन हो रहा है, लेकिन इसे बहुत तेजी से आगे बढ़ने की जरूरत है. बिजली की आपूर्ति सबसे उन्नत है, क्योंकि रिन्यूबल ऊर्जा की लागत में नाटकीय रूप से कमी आई है. हालांकि, परिवर्तन की रफ्तार एक न्यायसंगत एनर्जी ट्रांजिशन सुनिश्चित करने के उपायों के साथ-साथ बढ़नी चाहिए. इमारतों के लिए सर्वोत्तम उपलब्ध तकनीकों को तेजी से लागू करने की जरूरत है. उद्योग और परिवहन के लिए, शून्य उत्सर्जन प्रौद्योगिकी को और विकसित तथा लागू करने की भी जरूरत है. परिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिए सभी क्षेत्रों को नए जीवाश्म ईंधन-गहन बुनियादी ढांचे के जंजाल से बचने, शून्य-कार्बन प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने और इसे लागू करने और व्यवहारिक परिवर्तनों को आगे बढ़ाने की जरूरत है.
खाद्य प्रणालियां लगभग एक तिहाई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं. खाद्य प्रणालियों के लिए मुख्य केन्द्र वाले क्षेत्रों में प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा, मांग-पक्ष आहार परिवर्तन, कृषि स्तर पर खाद्य उत्पादन में सुधार और खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं का डीकार्बनाइजेशन शामिल हैं. इन चार क्षेत्रों में जरूरी कदम उठाने से वर्ष 2050 तक अनुमानित खाद्य प्रणाली उत्सर्जन को मौजूदा स्तरों के लगभग एक तिहाई तक कम किया जा सकता है, जबकि मौजूदा ढर्रे को जारी रखने पर उत्सर्जन लगभग दोगुना हो जाता है. निजी क्षेत्र भोजन के होने वाले नुकसान और अपशिष्ट को कम कर सकता है, अक्षय ऊर्जा का उपयोग कर सकता है और कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने वाले नए खाद्य पदार्थ विकसित कर सकता है. व्यक्तिगत स्तर पर नागरिक पर्यावरणीय स्थिरता और कार्बन में कमी के लिए भोजन का उपभोग करने के वास्ते अपनी जीवन शैली बदल सकते हैं. इससे स्वास्थ्य सम्बन्धी कई लाभ भी होंगे.
कम उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था में वैश्विक परिवर्तन के लिए प्रति वर्ष कम से कम 4-6 ट्रिलियन अमेरिकी डालर के निवेश की जरूरत होने की उम्मीद है. यह प्रबंधित कुल वित्तीय सम्पत्तियों का अपेक्षाकृत छोटा (1.5-2 प्रतिशत) हिस्सा है मगर यह आवंटित किए जाने वाले अतिरिक्त वार्षिक संसाधनों के संदर्भ में महत्वपूर्ण (20-28 प्रतिशत) है. अधिकांश वित्तीय कर्ताओं ने घोषित इरादों के बावजूद अल्पकालिक हितों, परस्पर विरोधी उद्देश्यों और जलवायु जोखिमों को पर्याप्त रूप से नहीं पहचानने के कारण जलवायु शमन को लेकर बहुत सीमित कार्रवाई की है.
रिपोर्ट वित्तीय क्षेत्र में सुधार के लिए इन दृष्टिकोणों की सिफारिश करती है. इन सभी को एक साथ पूरा किया जाना चाहिए- टैक्सोनॉमी और पारदर्शिता के माध्यम से वित्तीय बाजारों को और अधिक कुशल बनाएं. कार्बन मूल्य-निर्धारण लागू करें. जैसे कर या सीमा-और-व्यापार प्रणालियाँ. सार्वजनिक नीतिगत हस्तक्षेपों, करों, खर्च और विनियमों के माध्यम से वित्तीय व्यवहार को कम करें. वित्तीय प्रवाह में बदलाव, नवाचार को प्रोत्साहित करने और मानक निर्धारित करने में मदद के माध्यम से निम्न कार्बन प्रौद्योगिकी के लिए बाजार बनाएं. केंद्रीय बैंकों को तैयार करना: केंद्रीय बैंक जलवायु संकट को दूर करने में अधिक रुचि ले रहे हैं, लेकिन विनियमों पर और ज्यादा ठोस कार्रवाई की जरूरत है. सहयोगी देशों के जलवायु “क्लब” की स्थापना, सीमा पार वित्त पहल और न्यायपूर्ण परिवर्तन भागीदारी जो नीति मानदंडों को बदल सकती हैं और विश्वसनीय वित्तीय प्रतिबद्धता उपकरणों जैसे कि सॉवरेन गारंटी के माध्यम से वित्त के रुख को बदल सकते हैं.
यूएनईपी के अधिशासी निदेशक इंगर एंडरसन कहते हैं, यह रिपोर्ट हमें ठोस वैज्ञानिक तरीके से बताती है कि कुदरत आखिर हमसे क्या कह रही है. घातक बाढ़, चक्रवातों और जंगलों की भीषण आग प्रकृति के वे ही इशारे हैं : हमें अपने वातावरण को ग्रीनहाउस गैसों से भरने के सिलसिले को रोकना ही होगा और यह काम तेजी से करना होगा. हमारे पास इसके लिये वृद्धिशील बदलाव करने का वक्त था, मगर अब वह समय भी खत्म हो चुका है, उम्मीद की खिड़की भी बंद हो रही है. अब सिर्फ अपनी अर्थव्यवस्थाओं और समाजों में आमूल-चूल बदलाव ही हमें लगातार तेज हो रही इस जलवायु आपदा से बचा सकता है.
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार और वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को लगभग आधा करना एक बहुत ही मुश्किल काम है. कुछ लोग तो इसे असम्भव ही कहेंगे मगर हमें इसके लिये कोशिश तो करनी होगी. एक डिग्री का हर हिस्सा सबके लिये मायने रखता है : चाहे वह जोखिम से घिरे समुदाय हों, प्रजातियां और पारिस्थितिकियां हों और चाहे हममें से कोई भी हो. अगर हम वर्ष 2030 तक के लक्ष्यों को हासिल नहीं भी कर पाते हैं, तो भी हमें डेढ़ डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के करीब जाने की हर मुमकिन कोशिश करनी ही चाहिए.
Leave a Comment
Your email address will not be published. Required fields are marked with *