ट्विटर, मेटा और अमेज़न जैसी बड़ी टेक कंपनियों में काम करने वाले हज़ारों लोग ‘नई नौकरियों की तलाश’ में हैं. नौकरियों पर नज़र रखने वाली Layoffs.fyi के मुताबिक, दुनियाभर के 120,000 लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं. अमेरिका में एच1बी और दूसरे वीज़ा पर काम करने वाले बड़ी संख्या में भारतीयों की नौकरियां गई हैं.
ट्विटर, मेटा और अमेज़न जैसी बड़ी टेक कंपनियों में काम करने वाले हज़ारों लोग ‘नई नौकरियों की तलाश’ में हैं. नौकरियों पर नज़र रखने वाली Layoffs.fyi के मुताबिक, दुनियाभर के 120,000 लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं. अमेरिका में एच1बी और दूसरे वीज़ा पर काम करने वाले बड़ी संख्या में भारतीयों की नौकरियां गई हैं. अमेरिका के कैलिफ़ोर्नियां में रहने वालीं पत्रकार सविता पटेल ने भारतीय मूल के कई लोगों से बात की, जिन्हें या तो नई नौकरी खोजनी पड़ेगी या वापस लौटना पड़ेगा. सौम्या अय्यर अमेरिका की एक बड़ी टेक कंपनी में काम करती थीं. अपनी नौकरी जाने की कहानी बताते हुए कहती हैं, ‘मैं इसे टेक पैंडेमिक कहती हूं, दस हज़ार लोग अमेज़न से, ट्विटर में काम करने वाले आधे लोगों की नौकरी चली गई.’ अय्यर को लिफ़्ट नाम की एक कैब कंपनी में चार साल काम करने के बाद निकाल दिया गया, ‘मेरे दोस्त और उनकी पत्नी दोनों की नौकरी चली गई. ये टेक क्षेत्र की महामारी है.’
अय्यर कंपनी की लीड प्रोजेक्ट डिज़ाइनर थीं, वो उन हज़ारों शिक्षित और स्किल्ड लोगों में शामिल हैं जिन्हें अमेरिका की टेक कंपनियों ने नवंबर महीने में निकाल दिया. अय्यर ने अभी तक इसकी जानकारी अपने माता-पिता को नहीं दी है. उन्हें भरोसा है कि वो नई नौकरी खोज लेंगी लेकिन साथ ही उन्हें चिंता है कि उन्होंने अपना स्टूडेंट लोन अभी तक वापस नहीं किया है. उनके पास भारत और अमेरिका के प्रतिष्ठित कॉलेजों की डिग्रियां हैं. वो अमेरिका में ओ-1 वीज़ा पर काम कर रही थीं, जिसे ‘असाधारण क्षमता और उपलब्धि’ वाले लोगों को दिया जाता है. लेकिन इस वीज़ा के नियमों के तहत नौकरी चले जाने के बाद सिर्फ़ 60 दिनों तक अमेरिका में रहा जा सकता है.
वो कहती हैं, ‘ये सुनिश्चित करने के लिए कि मुझे नई नौकरी मिल जाए, उन्होंने मुझे एक महीना और दिया है. यानी अब मेरे पास तीन महीने हैं.’ अमेरिका के वर्कर एडजस्टमेंट एंड रिट्रेनिंग नोटिफ़िकेशन के तहत किसी भी कंपनी को मास ले ऑफ़ के समय कर्मचारियों को 60 दिनों का नोटिस पीरियड देना होता है. इन लोगों के सारे प्लान बिगड़ गए हैं, समय कम हैं और अमेरिका में रहने वाले ये लोग अब परेशान हैं. कुछ लोगों के पास परिवार का सपोर्ट है, लेकिन कई ऐसे भी हैं जिन्हें हज़ारों डॉलर का लोन चुकाना है. नमन कपूर के पास F-1 (OPT) वीज़ा है, निकाले जाने से पहले वो मेटा में प्रोडक्शन इंजीनियर थे. न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के मास्टर्स करने के लिए उन्होंने पैसे उधार लिए थे.
निराशा भरी आवाज़ में वो कहते हैं, ‘अमेरिका की पढ़ाई के साथ वर्क एक्सपीरियंस भी मिलता है. यहां पढ़ने की वजह यही थी. मैंने अपने ख़र्चों के लिए काम किया.’ कई राउंड इंटरव्यू देने बाद उन्हें मेटा में नौकरी मिली लेकिन सिर्फ़ सात हफ़्तों में उन्हें निकाल दिया गया. वो कहते हैं, ‘नौ नवंबर को सुबह आठ बजे, मुझे बर्खास्तगी का ईमेल मिला. मेटा ने मुझे चार महीने की सैलरी दी लेकिन मेरे पास नई नौकरी खोजने या वापस जाने के लिए तीन महीने हैं.’ मेटा ने दुनियाभर से 11 हज़ार लोगों को निकाला है. हालांकि किस देश से कितने लोगों को निकाला गया है, कंपनी ने इसकी जानकारी नहीं दी है. मेटा के सीईओ मार्क ज़करबर्ग ने कहा है कि जिन लोगों को निकाला गया है, उन्हें 16 हफ़्ते की बेसिक सैलेरी और हर एक साल के लिए दो हफ़्तों की सैलेरी दी जाएगी.
जिन लोगों को निकाला गया है, उनमें से कुछ लोग कुछ साल पहले ही अमेरिका गए थे, हालांकि कई लोगों के लिए अब अमेरिका ही उनका घर है. वो कई सालों से वहां काम कर रहे हैं. मिस भारत कैलिफ़ोर्निया कॉन्टेस्ट की विजेता सुरभि गुप्ता, जो नेटफ्लिक्स की सीरिज़ इंडियन मैचमेकिंग में भी आई थीं, 2009 से अमेरिका में रह रही हैं. मेटा में वो बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर काम कर रही थीं, नवंबर में उन्हें भी निकाला गया. वो कहती हैं, ‘मेरी ज़िदगी वीज़ा पर ही है. मैंने 15 साल से बहुत मेहनत की है, और किसी पर निर्भर नहीं हूं, अब मुझे नई नौकरी खोजनी होगी. दिसंबर आने वाला है, छुट्टियों के कारण हायरिंग कम होगी. मैं अब इम्तिहान देकर थक गई हूं, मैं कितनी मज़बूत हो सकती हूं?’
जिन लोगों की नौकरियां चली गई हैं, वो सिर्फ़ नई नौकरी नहीं बल्कि ऐसी कंपनियां भी खोज रहे हैं, जो उनके वीज़ा का काम करवा सके, ताकि उनके वीज़ा ट्रांसफ़र की जटिल प्रक्रिया को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय मिले. सैन जोस में रहने वालीं इमिग्रेशन अटॉर्नी स्वाति खंडेलवाल कहती हैं कि आखिरी समय में नौकरी खोजना काफ़ी जटिल हो सकता है. वो कहती हैं, ‘अगर नौकरी देने वाला 60 दिनों के अंदर आपका वीज़ा ट्रांसफ़र नहीं करा पाता, तो लोगों को अमेरिका छोड़कर जाना होगा और फिर कागज़ी कार्रवाई ख़त्म होने के बाद वो फिर वापस आ सकते हैं. लेकिन हकीकत ये है कि ऐसे लोग भारत में फंस जाएंगे क्योंकि वाणिज्य दूतावासों में एपॉइंटमेंट की कमी है.’
खंडेलवाल के मुताबिक, ‘ये ख़ासतौर पर भारतीयों को सबसे अधिक प्रभावित करता है. हमने देखा है कि परामर्श के लिए आने वाले कॉल्स की संख्या बढ़ गई है. हर कोई परेशान है, वो भी जिनकी नौकरियां बची हुई हैं. उन्हें डर है कि बाद में उनका नंबर आ सकता है.’ वो एक ऐसे समुदाय का हिस्सा हैं जो सपोर्ट के लिए सामने आए हैं. कई दोस्त और साथ काम करने वाले लोग भी मदद के लिए आगे आ रहे हैं. अभिषेक गुटगुटिया जैसे लोग तुरंत मदद के लिए आगे आए. वो कहते हैं, ‘मैंने ज़ीनो बनाया ताकि जिन लोगों पर पर असर पड़ा है उन्हें जल्द नौकरी मिले. इस पर अभी तक 15000 विज़िट हुए हैं. मेरे लिंक्डइन पोस्ट छह लाख से ज्यादा व्यू हैं. क़रीब 100 कैंडिडेट, 25 कंपनियां और 30 मेंटरों ने साइन अप किया है. कई इमिग्रेशन अटॉर्नी ने भी मदद की पेशकश की है.’
मेटा में काम करने वालीं विद्या श्रीनिवासन कहती हैं कि ‘मेटा अलुमनाई गाइड’ में ‘साथ काम करने वालों की मदद ने दिल जीत लिया’ उनकी ऑनलाइन पोस्ट को ’13 लाख लोगों’ ने देखा. अपने साथ जो हुआ उसे बताते हुए सुरभि गुप्ता कहती हैं, ‘मैं अच्छा काम कर रही थी. मुझे हैरानी हुई. जब कंपनी लोगों को निकाल रही थी, उस रात हम में से कोई सो नहीं पाया था. सुबह छह बजे मेरे पास मेल आया. मैं अपना कंप्यूटर इस्तेमाल नहीं कर पा रही थी. ऑफ़िस जिम का भी नहीं. मुझे ये एक ब्रेक अप की तरह लगा. हमने कंपनी की हालत अच्छी रखने के लिए कदम उठाए थे. हममे उम्मीद नहीं की थी कि इसका असर हम पर पड़ेगा. जब तक आप पर असर नहीं पड़ता, आप सही हालात को नहीं समझ पाते.’ (बीबीसी से साभार)
Leave a Comment
Your email address will not be published. Required fields are marked with *