सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने नोटबंदी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दौरान बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि उन्हें लक्ष्मण रेखा पता है। सुप्रीम कोर्ट की ड्यूटी है कि जो सवाल उन्हें रेफर किए गए हैं, उसका वह जवाब दे। सुप्रीम कोर्ट इस फैसले का परीक्षण करेगा ताकि पता चले कि यह
सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने नोटबंदी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दौरान बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि उन्हें लक्ष्मण रेखा पता है। सुप्रीम कोर्ट की ड्यूटी है कि जो सवाल उन्हें रेफर किए गए हैं, उसका वह जवाब दे। सुप्रीम कोर्ट इस फैसले का परीक्षण करेगा ताकि पता चले कि यह केवल एकेडमिक बहस तो नहीं थी? मामले की अगली सुनवाई 9 नवंबर को होगी। नोटबंदी के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और आरबीआई से हलफनामा के जरिए जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील पी. चिदंबरम ने दलील दी कि केंद्र का आरबीआई को इस बारे में लिखे लेटर, आरबीआई की सिफारिश आदि से संबंधित दस्तावेज मांगा जाए। आरबीआई एक्ट के तहत केंद्र सरकार को पूरे करेंसी नोट रद्द करने का अधिकार नहीं है। इस दलील के मद्देनजर हलफनामा पेश करने को कहा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह हलफनामा दायर कर जरूरी दस्तावेज के बारे में भी जानकारी मुहैया कराए। कोर्ट ने कहा कि वह आरबीआई के बोर्ड मीटिंग के दस्तावेज देखना चाहेगी जो नोटबंदी से पहले हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह अपनी लक्ष्मण रेखा जानते हैं। सरकार के नीतिगत फैसले के मामले में ज्यूडिशियल रिव्यू का दायरा क्या है यानी उनकी लक्ष्मण रेखा क्या है उससे वह अवगत हैं।
जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय पीठ ने कहा कि जब कोई मामला संविधान पीठ के समक्ष लाया जाता है, तो उसका जवाब देना पीठ का दायित्व बन जाता है। संविधान पीठ में जस्टिस बी. आर. गवई, जस्टिस ए. एस. बोपन्ना, जस्टिस वी. रमासुब्रमण्यम और जस्टिस बी. वी. नागरत्ना भी शामिल थे।
नोटबंदी के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि नोटबंदी के खिलाफ दाखिल याचिका सिर्फ एकेडमिक (बैद्धिक बहस) बहस के लिए नहीं रह गया है कि बल्कि मेरिट पर बहस जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हो सकता है कि यह मामला सिर्फ एकेडमिक न हो। सुप्रीम कोर्ट की ड्यूटी है कि जो सवाल उन्हें रेफर किए गए हैं उसका वह जवाब दे। सुप्रीम कोर्ट इस फैसले का परीक्षण करेगा ताकि पता चले कि यह केवल एकेडमिक बहस तो नही था?
मामले की सुनवाई के दौरान याची के वकील पी. चिदंबरम ने कहा कि नोटबंदी के कारण लोगों का जीवनयापन का जरिया जाता रहा। लोगों की नौकरी चली गई और लोग बेरोजगार हो गए। अगर नोटबंदी करना था तो बैकअप में कैश होना चाहिए था। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों को भारी कठिनाई हुई है और यह हम देख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट को चिदंबरम ने कहा कि क्या इस फैसले के लिए विवेक का इस्तेमाल किया गया? क्या यह अपनी मर्जी का फैसला नहीं था? दस्तावेज का अवलोकन होना चाहिए। सरकार ने जो आरबीआई को एडवाइस किया उससे संबंधित दस्तावेज देखे जाएं। केंद्र सरकार का आरबीआई को लिखा लेटर, आरबीआई की सिफारिश आदि से संबधित दस्तावेज देखा जाए। आरबीआई एक्ट की धारा 26 (2) के तहत केंद्र नोट की कुछ सीरीज को रद्द कर सकती है पूरे करेंसी को नहीं। आरबीआई के बोर्ड की बैठक के दस्तावेज भी मांगे जाए। संसद में भी यह दस्तावेज नहीं दिखाए गए। सुप्रीम कोर्ट शीर्ष अदालत है यहां देखा जाए।
पिछली सुनवाई के दौरान संवैधानिक बेंच ने कहा था कि वह मामले की सुनवाई के दौरान पहले यह देखेगा कि यह मामला क्या अब सिर्फ एकेडमिक बहस के लिए रह गया है? याची ने लगातार दलील दी कि यह मामला सिर्फ एकेडमिक नहीं है। लेकिन अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने केंद्र सरकार की ओर से कहा कि यह मामला सिर्फ एकेडमिक है। लेकिन याची ने कहा कि केंद्र सरकार का फैसला अभी भी चुनौती के लिए ओपन है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसए नजीर की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच के सामने नोटबंदी को चुनौती देते हुए 58 अर्जी दाखिल की गई है जिस पर सुनवाई शुरू हुई। केंद्र सरकार के 500 और 1000 के नोट बंद किए जाने के फैसले को चुनौती दी गई है। मामले को सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया था।
पिछली सुनवाई के दौरान 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह पहले यह देखेगा कि मामला क्या अब एकेडमिक रह गया है। अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मामला सिर्फ एकेडमिक है। छह साल पहले का फैसला है और इसमें कुछ नहीं बचा। वहीं याची के वकील पी. चिदंबरम और श्याम दीवान ने कहा कि केंद्र सरकार के फैसले की वैधता अभी भी ओपन है और कहा कि केंद्र सरकार को एग्जिक्यूटिव फैसले के जरिये करेंसी नोट रद्द करने का अधिकार नहीं है। साथ ही इस मुद्दे को भविष्य के लिए भी तय किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने याची की दलील को ध्यान में रखते हुए कहा कि मुद्दा एकेडमिक नहीं भी हो सकता है। बेंच ने कहा कि उनकी ड्यूटी है कि जो सवाल उन्हें भेजे गए हैं उनका वह जवाब दें।
जैसे ही मामले की सुनवाई बुधवार को शुरू हुई केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मामला एकेडमिक रह गया है और जो भी व्यक्तिगत लोगों का केस है उसे अलग से सुना जाना चाहिए साथ ही कहा कि इस तरह से सुना जाना तो संवैधानिक बेंच के समय की बर्बादी है। इसपर याची के वकील श्याम दीवान ने दलील दी कि जब मामला संवैधानिक महत्व का है तभी उसे संवैधानिक बेंच रेफर किया गया है। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब मामला संवैधानिक महत्ता का है तो उसे रेफर किया गया है और यह कोर्ट की ड्यूटी है कि वह उसका जवाब दे। लेकिन जब कोर्ट ने याचिका के बारे में सवाल किया तो पी. चिदंबरम ने कहा कि यह मामला अभी भी ओपन है। लेकिन अटॉर्नी जनरल ने फिर कहा कि मामला अब सिर्फ एकेडमिक है। तब कोर्ट ने कहा कि अगर मामला एकेडमिक होगा तो कोर्ट का वक्त जाया नहीं किया जाएगा और केस को अलग देखा जाएगा। जब चिदंबरम ने दलील पेश की तो अटॉर्नी जनरल ने कहा कि आखिर दलील क्या है। तब जस्टिस बोपन्ना ने कहा कि अब तो जो हो चुका है वह वापस नहीं हो सकता है लेकिन भविष्य के लिए क्या ऐसा हो सकता है शायद यह देखना है। तब अटॉर्नी जनरल ने कहा कि क्या हम सुझाव के स्टेज पर हैं? जस्टिस गवई ने तब कहा कि हम एडवाइजरी अधिकार क्षेत्र में बात नहीं कर रहे हैं कि भविष्य में ऐसा हो सकता है या नहीं। जस्टिस नजीर ने कहा कि कई जजमेंट हैं जिसमें एडवाइजरी जारी हुआ है इसके लिए एसआर बोमई जजमेंट सामने है। इस दौरान पी. चिदंबरम ने याची की ओर से कहा कि यह मामला एडवाइजरी के लिए नहीं है बल्कि कानून के लिए है। सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल कर कानून के बारे में बता सकती है कि कानून में क्या सही है।
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