भूकंप ने ही बदल दिया था गंगा नदी का रास्ता

भूकंप ने ही बदल दिया था गंगा नदी का रास्ता

करीब 2,500 साल पहले एक भूकंप ने पृथ्वी की सबसे बड़ी नदियों में से एक गंगा का रास्ता बदल दिया था. इससे आसपास का पूरा भूगोल ही बदल गया। क्या ऐसा दोबारा हो सकता है? जानकारों के मुताबिक, ऐसा फिर हो सकता है। एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि 2,500 साल पहले आए

करीब 2,500 साल पहले एक भूकंप ने पृथ्वी की सबसे बड़ी नदियों में से एक गंगा का रास्ता बदल दिया था. इससे आसपास का पूरा भूगोल ही बदल गया। क्या ऐसा दोबारा हो सकता है? जानकारों के मुताबिक, ऐसा फिर हो सकता है। एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि 2,500 साल पहले आए एक बड़े भूकंप के कारण गंगा नदी का रास्ता अचानक बदल गया था। उच्च तीव्रता वाले भूकंप ने बांग्लादेश में गंगा नदी की मुख्य धारा को पूरी तरह बदल डाला था। इससे आसपास के पूरे इलाके का स्वरूप एवं प्रकृति और पर्यावरणका ढांचा ही बदल गया।
नीदरलैंड्स के वाखेनिगन यूनिवर्सिटी की एलिजाबेथ चेंबरलेन इस अध्ययन की मुख्य लेखिका हैं। उन्होंने बताया कि वैसे तो समय के साथ नदियों की धारा बदलना आम बात है, लेकिन यह घटना काफी असाधारण थी। इस भूकंप की वजह से समूची नदी का ही रास्ता बदल गया था। नदी पूरी तरह से नए इलाके में बहने लगी। नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित यह अध्ययन भूकंप के कारण एक बड़ी नदी के डेल्टा के पूरी तरह से बदलने का पहला सबूत है। अध्ययन के लेखकों ने चेतावनी दी है कि बांग्लादेश बड़े भूकंपों के प्रति संवेदनशील है। अगर इस क्षेत्र में एक और उच्च तीव्रता वाला भूकंप आता है, तो गंगा नदी का रास्ता फिर से बदल सकता है। चेंबरलेन कहती हैं, “भले ही ऐसा बहुत कम होता है, लेकिन इस तरह की घटना से बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है। खासकर इसलिए कि बांग्लादेश दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले इलाकों में से एक है।”

भूकंप ने कैसे बदला गंगा नदी का रास्ता

गंगा नदी हिमालय से निकलती है और करीब 2,500 किलोमीटर तक बहती है। यह ब्रह्मपुत्र और मेघना सहित अन्य प्रमुख नदियों के साथ मिल जाती है। गंगा भारत और बांग्लादेश होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिलती है। बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले वह एक बड़े डेल्टा का निर्माण करती है। अन्य नदियों की तरह गंगा भी अपने तटों के प्राकृतिक कटाव के कारण समय-समय पर अपना रास्ता बदलती रहती है। अध्ययन में शामिल ऑस्ट्रिया की साल्त्सबुर्ग यूनिवर्सिटी के क्रिस्टोफ फॉन हेगके कहते हैं कि इस प्रक्रिया में दशकों लगते हैं, लेकिन गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी पिछले 6,000 वर्षों में कई बार रास्ता बदल चुकी है। शोधकर्ताओं ने बांग्लादेश की राजधानी ढाका से करीब 100 किलोमीटर दक्षिण में नदी की पुरानी मुख्य धारा को खोजने के लिए सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल किया। इस टीम को उस इलाके में खोज के दौरान ऐतिहासिक भूकंपों के संकेत मिले। जैसे कि गहरे रंग की मिट्टी की क्षैतिज परतों को काटते हुए हल्के रंग की रेत की खड़ी दीवारें। रेत और मिट्टी के रासायनिक विश्लेषण से पता चला कि लगभग 2,500 साल पहले एक ही समय में कई विस्फोट हुए थे। विस्फोट की तीव्रता रिक्टर स्केल पर सात से आठ होने का अनुमान लगाया गया, जो कि 2023 में तुर्की और सीरिया में आए भूकंप के बराबर है।
गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी एक सक्रिय प्लेट की सीमा के आसपास बहती हैं और यह इलाका भूकंप के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र है। अमेरिका की कोस्टल कैरोलिना यूनिवर्सिटी में भू-विज्ञान के विशेषज्ञ टिल हैनबुथ ने कहा, “इस क्षेत्र में प्लेटों के इतने करीब होने की वजह से यहां अक्सर तेज भूकंप आते हैं।” हालांकि, हैनबुथ इस अध्ययन में शामिल नहीं थे। बांग्लादेश भूकंप के लिहाज से बहुत संवेदनशील इलाका है क्योंकि यह भूकंप वाले क्षेत्रों के बहुत करीब है। फिलहाल ऐसा नहीं माना जा रहा है कि इस इलाके में भूकंप का कोई खतरा है, लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि अगले कुछ 100 से 1,000 सालों में इतना तेज भूकंप आने की संभावना है, जो गंगा नदी का रास्ता फिर से बदल सकता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, उनके अध्ययन से पता चलता है कि अगर डेल्टा वाली किसी नदी के क्षेत्र में उच्च तीव्रता वाला भूकंप आता है, तो उसका रास्ता पूरी तरह से बदल सकता है। फॉन हेगके ने कहा, “वह वाकई बहुत ही असाधारण घटना थी। दरअसल, दो असाधारण घटनाएं एक साथ घटीं। सात से आठ की तीव्रता वाला भूकंप काफी तेज होता है और इस भूकंप ने गंगा की मुख्य धारा को पूरी तरह से मोड़कर दूसरी दिशा में कर दिया।” फॉन हेगके का मानना है कि अगर फिर से उसी तरह की घटना होती है, तो वह इस क्षेत्र के लिए विनाशकारी साबित होगी। अब यह पूरी तरह एक घनी आबादी वाला इलाका बन चुका है और लाखों लोग इससे प्रभावित होंगे। वहीं, हैनबुथ का कहना है कि नदी का टूटना और उसका रास्ता बदलना सिर्फ भूकंप पर निर्भर नहीं करता, बल्कि चरम मौसम की वजह से भी ऐसा हो सकता है। वह कहते हैं, “अचानक भीषण बाढ़ आने, भयंकर चक्रवात आने या नदी पर बने किसी बड़े बांध के टूटने की वजह से भी नदी का रास्ता बदल सकता है। हालांकि, प्राकृतिक घटनाओं की वजह से भी ऐसा हो सकता है, लेकिन ऐसी ज्यादातर घटनाओं के लिए मानव-निर्मित कारण जिम्मेदार होते हैं।”
फॉन हेगके ने कहा कि शोधकर्ताओं को भविष्य में बड़े पैमाने पर नदी के कटाव की घटनाओं की संभावना के बारे में और अधिक जानने की आवश्यकता है, विशेष रूप से भूकंप से होने वाली घटनाओं के बारे में। सबसे मुश्किल बात यह है कि वैज्ञानिक यह अनुमान नहीं लगा सकते कि भूकंप की प्राकृतिक आपदा कब आएगी या जब आएगी, तो उसकी तीव्रता कितनी ज्यादा होगी। उन्होंने बताया, “भूकंप की अलग-अलग स्थितियों के हिसाब से, भूगर्भ विज्ञानी धरातल पर होने वाले बदलावों का अनुमान लगा सकते हैं। फिर नदियों और जल निकायों पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों का अध्ययन कर सकते हैं। हालांकि, हम ऐसी घटनाओं के सही समय का पता नहीं लगा सकते जो कुछ सौ से लेकर कुछ हजार सालों में घटित होती हैं।”
चेंबरलेन का कहना है कि यह जानना अहम है कि भूकंप नदियों का रास्ता पूरी तरह से बदल सकते हैं, खासकर बांग्लादेश में गंगा नदी का। इससे शोधकर्ताओं को अब यह समझने और अनुमान लगाने में मदद मिलेगी कि भूकंप कैसे और किस तरह आते हैं। उन्होंने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि यह जानकारी भविष्य में आने वाली किसी भी भयानक घटना से बचने के लिए और कम-से-कम नुकसान पहुंचने की योजना बनाने में मददगार साबित होगी।”
सिर्फ गंगा ही एकमात्र ऐसी नदी नहीं है, जो भूकंप से जुड़े खतरों का सामना कर रही हो। चीन की येलो नदी, म्यांमार की इरावदी, अमेरिका के पश्चिमी तट पर बहने वाली क्लैमथ, सैन जोकिन और सांता क्लारा के साथ-साथ जॉर्डन नदी को भी भूकंप का खतरा है। जॉर्डन नदी सीरिया, जॉर्डन, फलस्तीन के वेस्ट बैंक और इजराइल की सीमाओं से होकर बहती है।

 

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