उत्तराखंड राज्य के स्थापना दिवस से दो दिन पहले आगामी सात नवंबर को प्रदेश भर में विभिन्न नागरिक संगठन एवं जन संगठन, विपक्षी दल धरना- प्रदर्शन करेंगे. रैलियां निकाली जाएंगी. इसे ‘लोकतंत्र बचाओ-उत्तराखंड बचाओ आंदोलन’ नाम दिया गया है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेशनल कौंसिल मेंबर समर भंडारी, चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, बार कौंसिल
उत्तराखंड राज्य के स्थापना दिवस से दो दिन पहले आगामी सात नवंबर को प्रदेश भर में विभिन्न नागरिक संगठन एवं जन संगठन, विपक्षी दल धरना- प्रदर्शन करेंगे. रैलियां निकाली जाएंगी. इसे ‘लोकतंत्र बचाओ-उत्तराखंड बचाओ आंदोलन’ नाम दिया गया है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेशनल कौंसिल मेंबर समर भंडारी, चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, बार कौंसिल के पूर्व राज्य अध्यक्ष रजिया बैग, आल इंडिया किसान सभा के राज्य अध्यक्ष एसएस सजवाण, आल इंडिया किसान सभा के राज्य सचिव के गंगाधर नौटियाल, पीपल्स साइंस मूवमेंट के कमलेश खंतवाल ने राज्य की जनता से आंदोलन का हिस्सा बनने का आह्वान किया है.
उत्तरांचल प्रेस क्लब देहरादून में गत दिवस वक्ताओं ने कहा कि कार्यक्रम देहरादून, उत्तरकाशी, नैनीताल, रामनगर, बागेश्वर, श्रीनगर, चमियाला, पिथौरागढ़, पौड़ी, टिहरी, हरिद्वार, चमोली, और राज्य के अन्य जगहों में आयोजित होंगे. आंदोलनकारी राज्य की जनता के साथ सवाल उठाएंगे कि लोकतंत्र को कमज़ोर कर, जल जंगल जमीन पर लोगों के हकों को क्यों खत्म किया जा रहा है. बड़ी कंपनियों, भ्रष्ट अधिकारी और माफियों के हित में नीतियां बनाई जा रही हैं. इससे असली विकास, स्थायी रोज़गार और असली लोकतंत्र कहीं स्थापित नहीं हो सकता है. इन मुद्दों को लेकर देहरादून में सात नवंबर को सचिवालय कूच भी होगा. अन्य क्षेत्रों में अलग-अलग कार्यक्रम किए जाएंगे.
आंदोलन के प्रवक्ताओं ने कहा कि लोगों को बेघर करना; राशन से तमाम परिवारों को वंचित रखना; गरीबों, मज़दूरों, युवाओं के लिए बनी योजनाओं में भ्रष्टाचार और अंतहीन विलंबों को अंजाम देना; और साथ साथ में परियोजनाओं के बहाने बड़ी कम्पनयों को 37 प्रकार के अलग छूट और सब्सिडी देना, बड़े बिल्डरों और कम्पनयों के अतिक्रमण और संसाधन की लूट को नज़रअंदाज़ करना जनता को अब और सहनीय नहीं है. उन्होंने कहा कि अंकिता भंडारी और जगदीश चंद की बर्बर हत्याओं से पूरे राज्य में जनाक्रोश पैदा हुआ, लेकिन यह सिर्फ कुछ घटनाओं की बात नहीं है – कुछ सालों से राज्य में कानून के राज कमज़ोर हो रहा है. भीड़ की हिंसा और नफरत की राजनीती को अंजाम दिया गया है. UKSSSC घोटाला से ले कर हेलंग के महिलाओं पर हुए हमलों तक, हर क्षेत्र में लोगों के क़ानूनी और संवैधानिक हक़ों पर हनन हो रहा है.
वक्ताओं ने कहा कि आंदोलन द्वारा जनता कुछ मांगें उठाएंगी. जल जंगल ज़मीन पर लोगों के हक़ हकूकों को स्थापित करने के लिए तुरंत कानून बनाया जाए कि किसी को बेघर नहीं किया जाएगा; 2018 के भू कानून संशोधन विधेयक को रद्द किया जाये; वन अधिकार कानून के तहत हर गांव को अधिकार पत्र दिया जाये; भू सुधार को पूरा किया जाये और ज़मीन पर महिलाओं, ग्राम सभा भूमि पर बसे छोटे किसानों और दलितों का मालिकाना हक़ को सुनिश्चित किया जाये; जंगली जानवरों के हमलों को ले कर योजना बनाइ जाये. राज्य में लोकतंत्र को मज़बूत किया जाये, और इसके लिए पुलिस प्रशासन का दुरूपयोग पर रोक लगाने के लिए उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार स्वतंत्र पुलिस शिकायत आयोग बनाया जाये; लोकायुक्त को सक्रिय किया जाये; 2018 का उच्चतम न्यायलय के फैसले के अनुसार भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए व्यवस्था बनाया जाये.
मांग है कि राज्य में अर्थव्यवस्था के लिए जनहित नीतियों को बनायी जायें – कल्याणकारी योजनाओं में विलम्ब पर सख्त कार्रवाई की जाए; राशन सबको मिले और बुनियादी वस्तुओं सबको उपलब्ध कराया जाए, जैसे केरल में किया जाता है; कॉर्पोरेट को दी जा रही छूट और सब्सिडी को खत्तम कर मनरेगा के अंतर्गत 200 दिन का काम 600 रुपये के रेट पर दिया जाये और शहरों में भी रोज़गार गारंटी को शुरू किया जाये; महिला मज़दूरों और किसानों के लिए सहायता का योजना बनाया जाये; अग्निपथ योजना को रद्द किया जाये; किसानों के फसलों के लिए एमएसपी सुनिश्चित किया जाये; स्वास्थ और शिक्षा को मज़बूत किया जाए. इन मुद्दों को ले कर देहरादून में 7 नवंबर को लोग सचिवालय कूच करेंगे. अन्य क्षेत्रों में अलग अलग कार्यक्रम किये जायेंगे.
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