सेहत से खेलन के लिए आ रही दिवाली, प्रदूषण से एक वर्ष में हुई थीं 16.7 लाख मौतें

सेहत से खेलन के लिए आ रही दिवाली, प्रदूषण से एक वर्ष में हुई थीं 16.7 लाख मौतें

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 15 अक्टूबर 2022 को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 169 शहरों में से 29 में हवा ‘बेहतर’ रही, जबकि 58 शहरों की श्रेणी ‘संतोषजनक’, 71 में ‘मध्यम’ रही। वहीं 11 शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर खराब दर्ज किया गया. दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता ‘मध्यम’ श्रेणी

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 15 अक्टूबर 2022 को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 169 शहरों में से 29 में हवा ‘बेहतर’ रही, जबकि 58 शहरों की श्रेणी ‘संतोषजनक’, 71 में ‘मध्यम’ रही। वहीं 11 शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर खराब दर्ज किया गया. दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता ‘मध्यम’ श्रेणी में है. दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 186 दर्ज किया गया है. दिल्ली के अलावा फरीदाबाद में एयर क्वालिटी इंडेक्स 199, गाजियाबाद में 194, गुरुग्राम में 213, नोएडा में 188 पर पहुंच गया है. देश के अन्य प्रमुख शहरों में से मुंबई में वायु गुणवत्ता सूचकांक 78 दर्ज किया गया, जो प्रदूषण के ‘संतोषजनक’ स्तर को दर्शाता है, जबकि कोलकाता में यह इंडेक्स 76, चेन्नई में 63, बैंगलोर में 54, हैदराबाद में 54, जयपुर में 134 और पटना में 124 दर्ज किया गया. प्रदूषण और स्वास्थ्य पर लैंसेट आयोग का कहना है कि ग्लोबल हेल्थ पर प्रदूषण का प्रभाव युद्ध, आतंकवाद, मलेरिया, एचआईवी, ट्यूबरक्लोसिस, ड्रग्स और शराब की तुलना में बहुत अधिक है. सामान्य तौर पर, समीक्षा में पाया गया है कि वायु प्रदूषण के चलते एक वर्ष में ही 6.7 मिलियन लोगों की मौत हो गई.
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दिवाली के बाद आसमान में धुंध की चादर नजर आती है. कहा जाता है कि आतिशबाजी की वजह से दिल्ली प्रदूषण की चादर में ढक गई है. लेकिन आईआईटी दिल्ली ने अपनी एक स्टडी में चौंकाने वाला दावा किया है. दरअसल IIT दिल्ली का कहना है कि राजधानी में दिवाली के बाद आतिशबाजी से नहीं बल्कि बायोमास बर्निंग से प्रदूषण बढ़ता है. स्टडी की मानें तो दिल्ली में आतिशबाजी के कारण फैले पॉल्यूशन का असर सिर्फ 12 घंटे तक ही रहता है.
आईआईटी की एक टीम ने इस संबंध में रिसर्च की. इस दौरान दिवाली से पहले और दिवाली के दौरान और बाद में प्रूदषण फैलने के सोर्स का पता लगाने के लिए एक स्टडी की गई थी. ये स्टडी एटमॉस्फेरिक पॉल्यूशन रिसर्च जनरल में पब्लिश हुई है. स्टडी का साफ कहना है कि दिल्ली में दिवाली के बाद बायोमास जलने से हवा प्रदूषित होती है. आतिशबाजी इसकी वजह नहीं है. संस्था का ये भी कहना है कि दिल्ली में दिवाली के बाद एक्यूआई खतरनाक श्रेणी में पहुंचना अब आम बात हो गई है. इसके अलावा दिवाली के बाद ही फसल कटाई भी शुरू हो जाती है इस दौरान पराली जलाई जाती है. ये दोनों साथ-साथ ही होते हैं इसलिए ये पता लगाना काफी मुश्किल होता है कि दिल्ली में प्रदूषण किस वजह से ज्यादा फैला है.
शोधकर्ताओं ने स्टडी के दौरान पाया कि दिवाली के दौरान दिल्ली में पीएम 2.5 लेवल में मेटल कंटेंट 11 सौ फीसदी बढ़ गया और इसमें 95 प्रतिशत मेटल आतिशबाजी की वजह से हुआ था. वहीं स्टडी के प्रमुख राइटर चिराग मनचंदा के मुताबिक हालांकि स्टडी में ये देखा गया कि दिवाली पर की गई आतिशबाजी का प्रभाव 12 घंटे तक ही रहता है. वहीं शोधकर्ताओं ने ये पाया कि दिवाली के बाद जो पराली जलाई जाती है वो हवा को सबसे ज्यादा प्रदूषित करती है. वहीं इस स्टडी में शामिल आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर के मुताबिक पराली जलाने व सर्दियों में इलाके की हीटिंग की सभी जरूरतों के चलते बायोमास बर्निंग बढ़ जाती है. बता दें कि ये स्टडी आईआईटी दिल्ली, कानपुर और पीआरएल अहमदाबाद ने संयुक्त रूप से की है.
इस बार दिवाली से पहले, देश के जिन 29 शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 50 या उससे नीचे यानी ‘बेहतर’ रहा, उनमें आइजोल 25, अमरावती 26, बेलगाम 48, चामराजनगर 37, चिकबलपुर 34, चिक्कामगलुरु 45, कोयंबटूर 47, दावनगेरे 25, गडग 33, गंगटोक 23, हसन 25, हावेरी 40, कलबुर्गिक 36, मदिकेरी 22, मैहर 21, ऊटी 49, पंचकुला 34, पुदुचेरी 43, राजमहेंद्रवरम 34, रामनगर 38, रामनाथपुरम 18, सतना 44, शिलांग 40, शिवसागर 16, तिरुवनंतपुरम 38, थूथुकुडी 34, तिरुपति 47, विजयपुरा 39 और यादगिर 31 शामिल रहे।
अगरतला, आगरा, अलवर, अनंतपुर, बेंगलुरु, भागलपुर, बिहारशरीफ, बिलासपुर, चंद्रपुर, चेन्नई, दमोह, दुर्गापुर, एलूर, एर्नाकुलम, गांधीनगर, गोरखपुर, गुवाहाटी, होसुर, हावड़ा, हुबली, हैदराबाद, जबलपुर, कल्याण, कन्नूर, कानपुर, किशनगंज, कोच्चि, कोलकाता, कोल्लम, कोझिकोड, मैंगलोर, मुरादाबाद, मोतिहारी, मुंबई, मुंगेर, मैसूर, नागपुर, नासिक, नवी मुंबई, पाली, प्रयागराज, पूर्णिया, रायचुर, राजगीर, सागर, समस्तीपुर, सासाराम, शिवमोगा, सिलीगुड़ी, सिवान, सोलापुर, तालचेर, त्रिशूर, तिरुपूर, उडुपी, वाराणसी, विशाखापत्तनम और वृंदावन आदि 58 शहरों में हवा की गुणवत्ता संतोषजनक रही, जहां सूचकांक 51 से 100 के बीच दर्ज किया गया.
देश में वायु प्रदूषण के स्तर और वायु गुणवत्ता की स्थिति को आप इस सूचकांक से समझ सकते हैं जिसके अनुसार यदि हवा साफ है तो उसे इंडेक्स में 0 से 50 के बीच दर्शाया जाता है. इसके बाद वायु गुणवत्ता के संतोषजनक होने की स्थिति तब होती है जब सूचकांक 51 से 100 के बीच होती है. इसी तरह 101-200 का मतलब है कि वायु प्रदूषण का स्तर माध्यम श्रेणी का है, जबकि 201 से 300 की बीच की स्थिति वायु गुणवत्ता की खराब स्थिति को दर्शाती है. यदि सूचकांक 301 से 400 के बीच दर्ज किया जाता है जैसा दिल्ली में अक्सर होता है तो वायु गुणवत्ता को बेहद खराब की श्रेणी में रखा जाता है. यह वो स्थिति है जब वायु प्रदूषण का यह स्तर स्वास्थ्य को गंभीर और लम्बे समय के लिए नुकसान पहुंचा सकता है. इसके बाद 401 से 500 की केटेगरी आती है जिसमें वायु गुणवत्ता की स्थिति गंभीर बन जाती है. ऐसी स्थिति होने पर वायु गुणवत्ता इतनी खराब हो जाती है कि वो स्वस्थ इंसान को भी नुकसान पहुंचा सकती है, जबकि पहले से ही बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए तो यह जानलेवा हो सकती है.
गौरतलब है कि दुनिया भर में प्रदूषण को लेकर हैरान कर देने वाले आंकड़े सामने आ चुके हैं. सालाना दुनिया में अलग-अलग प्रदूषण से औसतन एक करोड़ लोगों की मौत हो रही है. साल 2000 के बाद से अब तक इन आंकड़ों में 55 फीसदी का इज़ाफा हुआ है. सबसे ज्यादा 24 लाख मौतें चीन में हुई हैं. दूसरे नंबर पर भारत है, यहां 22 लाख लोगों की जान गई. जबकि इस लिस्ट में अमेरिका सातवें नंबर पर है. प्रदूषण और स्वास्थ्य को लेकर ये आंकड़े द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ के हैं. प्रदूषण और स्वास्थ्य पर लैंसेट आयोग का कहना है कि ग्लोबल हेल्थ पर प्रदूषण का प्रभाव युद्ध, आतंकवाद, मलेरिया, एचआईवी, ट्यूबरक्लोसिस, ड्रग्स और शराब की तुलना में बहुत अधिक है. सामान्य तौर पर, समीक्षा में पाया गया कि वायु प्रदूषण के चलते 6.7 मिलियन लोगों की मौत हुई. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसके लिए जलवायु परिवर्तन ज़िम्मेदार है.
रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर अकेले वायु प्रदूषण से 66.7 लाख लोगों की मौत हुई. 17 लाख लोगों की जान खतरनाक केमिकल के इस्तेमाल से गई. साल 2019 में भारत में 16.7 लाख लोगों की मौत केवल वायु प्रदूषण से हुई. यानी हिसाब लगाया जाय तो उस साल देश में सभी मौतों का ये 17.8% हिस्सा है. भारत में वायु प्रदूषण से संबंधित 16.7 लाख मौतों में से अधिकांश- 9.8 लाख – PM2.5 प्रदूषण के कारण हुईं. अन्य 6.1 लाख घरेलू वायु प्रदूषण के कारण हुईं. हालांकि अत्यधिक गरीबी (जैसे इनडोर वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण) से जुड़े प्रदूषण स्रोतों से होने वाली मौतों की संख्या में कमी आई है, लेकिन इन कटौती की भरपाई औद्योगिक प्रदूषण (जैसे परिवेशी वायु प्रदूषण और रासायनिक प्रदूषण) के कारण हुई मौतों में हुई है. द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल के मुताबिक संयुक्त राज्य अमेरिका में कुल प्रदूषण से होने वाली मौतों के लिए टॉप 10 देशों में एकमात्र पूरी तरह से औद्योगिक देश है. यहां साल 2019 में प्रदूषण से 1,42,883 लोगों की मौत हुई. अमेरिका 7वें स्थान पर है. रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण से होने वाली 90% से अधिक मौतें निम्न-आय और मध्यम-आय वाले देशों में होती हैं.

Posts Carousel

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

Latest Posts

Follow Us