कभी बारिश, तो कभी सूखे की मार झेल रहे यूपी के किसानों के लिए प्रतापगढ़ के ये खेतिहर अच्छी प्रेरणा हो सकते हैं। जिले के लालगंज के सारीपुर गांव के रहने वाले अभिषेक पटेल, बभनपुर के धीरेंद्र जैसे यहां कई किसान ऐसे हैं, जिन्होंने परंपरागत खेती छोड़कर सब्जियां उगाना शुरू किया। इसका फायदा भी उन्हें
कभी बारिश, तो कभी सूखे की मार झेल रहे यूपी के किसानों के लिए प्रतापगढ़ के ये खेतिहर अच्छी प्रेरणा हो सकते हैं। जिले के लालगंज के सारीपुर गांव के रहने वाले अभिषेक पटेल, बभनपुर के धीरेंद्र जैसे यहां कई किसान ऐसे हैं, जिन्होंने परंपरागत खेती छोड़कर सब्जियां उगाना शुरू किया। इसका फायदा भी उन्हें मिला है और उनकी आर्थिक उन्नति हो रही है। ऐसे ही महाराजगंज के बिरैचा गांव के पूर्व प्रधान ने भी सब्जी की खेती से न सिर्फ अपनी विपन्नता दूर की बल्कि इलाके के किसानों के लिए ऐसी प्रेरणा बन कि उनका भी जीवन बदल दिया।
दरअसल, मौसम चक्र में बदलाव से आजकल किसानों को अपनी फसलों का नुकसान झेलना पड़ता है। बढ़ते कर्ज और आर्थिक संकट से लोगों का खेती से मोहभंग होने लगा है। हालांकि, नौकरियों का टोटा होने और कोरोना काल के बाद घर लौटे तमाम मजदूरों ने खेती की दुनिया में जो रास्ता निकाला है, उससे उत्तर प्रदेश के खेतिहर लोगों में आर्थिक आत्मनिर्भरता की बड़ी उम्मीद जगी है। इन किसानों ने रबी, खरीफ और जायद की परंपरागत खेती छोड़कर सब्जियों की खेती की नई लीक गढ़नी शुरू की है। इससे उन्हें बढ़िया मुनाफा तो होता ही है, साथ ही उन्हें मजदूरी या नौकरी करने के लिए अपना घर छोड़कर बाहर नहीं जाना पड़ता।
प्रतापगढ़ के रहने वाले धीरेंद्र, रिंकू और अभिषेक ऐसे ही किसान हैं। उन्होंने अपने खेतों में लौकी और गोभी की पैदावार शुरू की है। पिछली ठंडियों में भी उन्होंने अपने खेतों में सब्जियां उगाई थीं, जिसका उन्हें काफी फायदा मिला था। अच्छे मुनाफे से उनकी हिम्मत बढ़ी है और इस बार भी उन्होंने अपने खेतों में सब्जियों की फसल लगाई है। इन्हें गांव में अब लौकी वाले भइया के नाम से भी जाना जाने लगा है।
यूपी के ही महाराजगंज के बिरैचा गांव के रहने वाले सेठई पूर्व प्रधान हैं। उन्होंने खेती के कारोबार में ऐसी राह दिखाई है कि पूरा गांव खुशहाल हो गया है। सेठई 40 साल पहले अपने जवानी के दिनों में बाहर कमाने के लिए गए थे। जीतोड़ मेहनत के बाद भी उन्हें इतने पैसे नहीं मिलते थे कि उनका घर ठीक से चल सके। इसके कुछ ही महीनों बाद वह वापस घर लौट आए और फैसला कर लिया कि मजदूरी करने अब वह बाहर नहीं जाएंगे।
गांव में अपनी जमीन में उन्होंने परंपरागत खेती का काम कम करना शुरू कर दिया और ज्यादातर जमीन पर सब्जी उगाना शुरू कर दिया। इससे उन्हें जबर्दस्त आमदनी होने लगी। फिर क्या था? उनकी देखादेखी गांव के और किसानों ने भी अपने खेतों में सब्जियां उगाना शुरू कर दिया। अब हालत ये है कि गांव के 60 फीसदी किसान अपने खेत में सब्जियां बोते हैं। सेठई की इस एक पहल ने गांव के लोगों की किस्मत बदल दी। सालों से सब्जियों की खेती से उन्होंने न सिर्फ अपने आपको आर्थिक रूप से सशक्त किया है बल्कि किसानों के सर बदकिस्मती का दाग छुड़ाने की दिशा में बेहद प्रभावी प्रेरणा जगाई है।
Leave a Comment
Your email address will not be published. Required fields are marked with *