बिजली खरीदता नहीं, सरकार को बेचता है गुजरात का गांव मोढेरा

बिजली खरीदता नहीं, सरकार को बेचता है गुजरात का गांव मोढेरा

भारत में एक ऐसा गांव है, जो पूरी तरह से अपनी बिजली संबंधी सभी जरूरतों को सौर ऊर्जा से पूरा कर रहा है. नाम है मोढेरा. गुजरात में मौजूद इस गांव को पूरी तरह सौर ऊर्जा पर निर्भर गांव घोषित किया गया है. यहां रहने वाले लोग मुख्य तौर पर मिट्टी के बर्तन बनाने, कपड़े

भारत में एक ऐसा गांव है, जो पूरी तरह से अपनी बिजली संबंधी सभी जरूरतों को सौर ऊर्जा से पूरा कर रहा है. नाम है मोढेरा. गुजरात में मौजूद इस गांव को पूरी तरह सौर ऊर्जा पर निर्भर गांव घोषित किया गया है. यहां रहने वाले लोग मुख्य तौर पर मिट्टी के बर्तन बनाने, कपड़े सिलाई करने, खेती और जूते बनाने के काम से जुडे़ हैं. खास बात ये है कि मोढेरा को अपने प्राचीन सूर्य मंदिर के लिए भी जाना जाता है. ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होना चाहिए कि गांव पर वाकई ‘सूर्य देव’ की कृपा है और पूरा गांव अपनी विभिन्न आवश्यकताओं के लिए एनर्जी सूर्य से ही पा रहा है.
समाचार एजेंसी रायटर्स ने इस गांव को थोड़ा गहराई से जानने की कोशिश की और अपनी एक शानदार रिपोर्ट लिखी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, केसा भाई प्रजापति मिट्टी के बर्तन बनाने वाले पहिये पर जब फूलदान ढालते हैं तो हल्का-सा मुस्कुराते हैं. मोढेरा गांव के 68 वर्षीय प्रजापति ने कुछ महीने पहले की तुलना में अपने द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तनों की मात्रा को दोगुना कर दिया है, क्योंकि अब उन्हें पहिया को मैन्युअली नहीं चलाना पड़ता. बिजली से चलाने पर खर्च काफी ज्यादा (प्रति माह 1,500 रुपये ) आता था, जोकि वह वहन नहीं कर सकते थे. परंतु अब सबकुछ सेटल है. प्रजापति ने कहा, “इस बिजली ने हमें समय की बचत होती है और अधिक उत्पाद बना सकते हैं.
गौरतलब है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जक देश है. भारत का लक्ष्य 2030 तक ऊर्जा के अक्षय स्रोतों, जैसे सौर और पवन से अपनी ऊर्जा की आधी मांग को पूरा करना है. यह लक्ष्य इसके पिछले लक्ष्य 40% से अधिक है. मोढेरा में परियोजना को केंद्र और राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित (लगभग 10 मिलियन डॉलर) किया गया है. इस प्रोजेक्ट में आवासीय और सरकारी भवनों पर 1,300 से अधिक रूफटॉप पैनल स्थापित करना शामिल था, जो एक पावर प्लांट से जुड़े हैं.
सरकार यहां के घरों में पैदा होने वाली उस अतिरिक्त ऊर्जा को खरीदती है, जो वे घरों को उपयोग नहीं करते हैं. चूंकि सरकार बिजली लेने के बदले पैसा देती है तो इस पैसे से 43 वर्षीय दर्जी प्रवीण भाई गैस कनेक्शन और चूल्हा खरीदने की योजना बना रहे हैं, क्योंकि गांव के कई घर लकड़ी के चूल्हे में खाना पकाते हैं, जिससे धुंआ फैलता है. उन्होंने कहा, मुझे अपने बच्चों को स्ट्रीट लाइट में पढ़ाना पड़ता था. अब वे घर के अंदर बेहतर रोशनी में पढ़ सकते हैं. 36 वर्षीय गृहिणी रीना बेन के लिए, जो पार्ट टाइम टेलर के रूप में भी काम करती हैं, सौर ऊर्जा ने उनके काम में बहुत मदद की है. वह कहती हैं, जब हमें सौर ऊर्जा मिली, तो मैंने सिलाई मशीन से जुड़ने के लिए 2,000 रुपये की एक इलेक्ट्रिक मोटर खरीदी. अब मैं रोजाना एक या दो कपड़े सिलने में सक्षम हूं.

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