गुजरात में मोरबी का मच्छू नदी वाला पुल क्या गिरा, पूरे देश में राज्यों का सरकारी अमला हिल उठा. गौरतलब है कि देश के ज्यादातर राज्यों में ऐसे पुल हैं, जिनके रखरखाव की हालत, कमोबेश मच्छू नदी के पुल जैसी ही बताई जा रही है. गुजरात में मोरबी में हुए झूला पुल हादसे के बाद
गुजरात में मोरबी का मच्छू नदी वाला पुल क्या गिरा, पूरे देश में राज्यों का सरकारी अमला हिल उठा. गौरतलब है कि देश के ज्यादातर राज्यों में ऐसे पुल हैं, जिनके रखरखाव की हालत, कमोबेश मच्छू नदी के पुल जैसी ही बताई जा रही है. गुजरात में मोरबी में हुए झूला पुल हादसे के बाद उत्तराखंड में भी उन पुलों की याद आ गई है, जो कई साल पहले पुराने और असुरक्षित पुलों के रूप में चिन्हित किये गये थे, लेकिन आज भी उन पर आवाजाही बदस्तूर जारी है. पीडब्ल्यूडी ने ऐसे 236 पुलों की पहचान की थी। पिछले कुछ वर्षों में इनकी संख्या में कुछ और इजाफा हो गया होगा.
प्रमुख सचिव आरके सुधांशु का कहना है कि हम समय-समय पर पुलों का सेफ्टी ऑडिट करवाते हैं. सेफ्टी ऑडिट पर ही लक्ष्मण झूला पुल बंद करवाया गया. फिलहाल 436 पुलों की रिपोर्ट है. वित्तीय उपलब्धता और पुलों के महत्व व स्थिति को देखते हुए उन्हें चरणबद्ध तरीके से बदला जाएगा. सिरमौर के उपमंडल पांवटा साहिब की टोंस नदी के ऊपर बने झूला पुल की खस्ता हालत होने की वजह से लोग भय में सफर करने को मजबूर हैं. ऐसे में स्थानीय लोगों ने सरकार से पुल की मरम्मत करवाने की गुहार लगाई है.
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में झूला पुलों की भरमार है. इनमें कुछ पुल मोटर मार्ग के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं तो कुछ केवल पैदल चलने के लिए. सैकड़ों झूला पुलों की इस श्रृंखला की शुरुआत ऋषिकेश के लक्ष्मण झूला पुल से होती है. लक्ष्मण झूला 135 वर्ष पुराना है. बीच के दौर में इसकी मरम्मत भी होती रही थी. इस पुल से पैदल चलने वालों के अलावा दो पहिया वाहनों की भी आवाजाही होती रही है. 2019 में सपोर्टिंग वायर क्षतिग्रस्त हो जाने के बाद से इस पुल पर दो पहिया वाहनों की आवाजाही बंद कर दी गई है.
पहाड़ी नदियों पर झूला पुलों का निर्माण अंग्रेजों के जमाने से ही शुरू हो चुका था. इन नदियों पर झूला पुल बनने से पहले झूला हुआ करते थे. झूला रस्सियों से बनते थे. दो रस्सियां पैर टिकाने के लिए और दोनों तरफ पकडऩे के लिए रस्सियां होती थीं. पैरों का बैलेंस बनाकर और दोनों हाथों से दोनों तरफ की रस्सियां पकड़कर नदी पार करनी होती थी. करीब 80 वर्ष पहले तक पहाड़ों में इन झूलों का इस्तेमाल किया जाता रहा. बात भी जहां-जहां ये झूले लगे थे, वहां झूला पुल बनाये गये. इनमें से ज्यादातर पुल अब भी हैं.
पूर्व में उत्तराखंड में सभी पुराने और जर्जर हो चुके पुलों की पहचान की गई थी. पीडब्ल्यूडी ने यह काम किया था. कुल 436 पुलों की पहचान की गई थी, जिन्हें या तो मरम्मत की जरूरत थी या उनकी जगह नये पुल बनाये जाने थे. इनमें 207 पुल स्टेट हाइवे पर, 65 जिला मार्गों पर, 60 अन्य मार्गों पर और 104 ग्रामीण मार्गों पर हैं. पीडब्ल्यूडी ने इन पुलों की मरम्मत करने या इनकी जगह नये पुल बनाने का प्रस्ताव शासन को भेज दिया था, लेकिन उसके बाद से शासन इस प्रस्ताव पर कुंडली मारे बैठा है.
436 पुलों की मरम्मत या नये पुल बनाने वाले प्रस्ताव में शासन बेशक गुजरात की घटना के बाद भी न जागा हो, लेकिन फिलहाल पुलिस विभाग इस पर सक्रिय हो गया है. डीजीपी अशोक कुमार की ओर से इस बारे में सभी जिलों के पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिये गये हैं. इन निर्देशों में कहा गया है कि पीडब्ल्यूडी की रिपोर्ट और अन्य माध्यमों से सभी जिलों में जर्जर और असुरक्षित हो चुके पुलों पर किसी भी हाल में आवाजाही बंद कर दी जाए.
जर्जर और असुरक्षित पुलों पर यदि पुलिस वास्तव में आवाजाही रोक देती है कि पहाड़ के कई इलाके पूरी तरह अलग-थलग पड़ जाएंगे. दरअसल राज्य में दर्जनों ऐसे मोटर मार्ग हैं, जिन पर बने पुल जर्जर स्थिति में हैं. ऐसे में इन पुलों पर आवाजाही बंद होने का सीधा अर्थ है, ऐसे क्षेत्रों में आवाजाही पूरी तरह से बंद हो जाना. फिलहाल इन पुलों की मरम्मत या इनकी जगह नये पुल बनाने की कोई योजना सरकार के पास नहीं है. इसके लिए बड़ी धनराशि की भी जरूरत होगी.
उत्तराखंड की तरह हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में भी झूला पुल आवागमन के जरूरी माध्यम हैं. विगत अगस्त माह में के कुल्लू जिले के मनाली के सोलंग में दो किशोरों के ब्यास नदी में बहने के बाद मौके का जायजा लेने पहुंचे लोक निर्माण विभाग के दो अफसरों को ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ा. ये दोनों इतना डर गए कि खुद ही झूला पुल का रस्सा काट दिया और तीन घंटे तक नदी के ऊपर बने झूला पुल के बीचोंबीच लटके रहे. घटना का पता चलते ही एसडीएम मनाली मौके पर पहुंचे. उन्होंने ग्रामीणों को शांत करने का प्रयास किया, लेकिन वे लोक निर्माण विभाग के बड़े अधिकारी के मौके पर आने की मांग पर अड़े रहे.
तीन घंटे के बाद कुल्लू से अधीक्षण अभियंता केके शर्मा मौके पर पहुंचे. उन्होंने ग्रामीणों को लिखित आश्वासन दिया कि तीन महीने में निर्माणाधीन पुल का काम पूरा कर लिया जाएगा. इसके बाद ग्रामीण शांत हुए. नदी के उस पार ग्रामीण युवाओं ने रस्सी फेंकी और फिर काटे गए रस्से को जोड़कर दोनों अधिकारियों को गांव की तरफ ले जाया गया.
चार साल पहले सराज घाटी की नलबागी पंचायत को जोड़ने वाला झूला टूट जाने से क्षेत्र के सैंकड़ों लोगों को पैदल रास्ते से होकर अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए 3 घंटे के बजाय वाया हनोणी होकर 5 घंटे का पैदल सफर करना पड़ा था. तहसील बालीचौकी के अंतर्गत पडऩे वाली नलबागी पंचायत के गांव कुण, धरल, करेरी, पारली करेरी, सलोट, नलबागी, करथाच व शिल्लीबागी के लोगों को यहां से गांव नजदीक पड़ता है. गांव के लोगों को हणोगी से होकर अपने घरों तक पैदल चलने पर मजबूर होना पड़ा. इसी तरह कुछ साल पहले पालमपुर में सौरभ वन विहार का झूला पुल टूट गया था.
गौरतलब है कि हिमाचल में कालका-शिमला नेशनल हाई-वे पर एनएचएआई ने विश्व रिकार्ड बनाने की तैयारी की है. हाई-वे के आखिरी छोर में कैंथलीघाट और शिमला के बीच विश्व का सबसे ऊंचा पुल बनने जा रहा है. यह जापान में बने 275 मीटर पुल से भी ऊंचा होगा. इस पुल की ऊंचाई तीन कुतुबमीनार से ज्यादा होगी. पुल निर्माण के लिए करीब 280 मीटर ऊंचाई वाली ड्राइंग तैयार की गई है. इस एक्स्ट्रा डोज पुल का निर्माण शकराल में होगा. इस पुल को खाई की तरफ से तीन पिल्लरों पर बनाया जा रहा है. इनमें से एक पिल्लर की ऊंचाई 620 फुट होगी, जबकि खाई से पिल्लर के टॉप की ऊंचाई 826 फुट तक होगी. यह पुल स्टेट ऑफ आर्ट तकनीक से बनाया जा रहा है, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगा. इस पुल के निर्माण का जिम्मा एनएचएआई ने गावर इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी को सौंपा है. एक्स्ट्रा डोज पुल की कुल लागत 600 करोड़ रुपए आंकी गई है और तीन साल में इस पुल का निर्माण कार्य पूरा होगा. फिलहाल, कैंथलीघाट से शिमला तक के पूरे मार्ग की बात करें तो इसकी कुल लंबाई 28.46 किलोमीटर है. इसके निर्माण की कुल लागत 3915 करोड़ रुपए आएगी.
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