एक बार फिर बाघ दुनिया की सुर्खियों में हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय तस्करी को लेकर. अंतराष्ट्रीय संगठन ट्रैफिक द्वारा जारी एक ताज़ा रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि बाघों के अंगों की तस्करी में भारत पूरी दुनिया में अव्वल है. इस बीच गौरतलब है कि उत्तराखंड में विगत जुलाई माह तक बाघों के हमलों में
एक बार फिर बाघ दुनिया की सुर्खियों में हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय तस्करी को लेकर. अंतराष्ट्रीय संगठन ट्रैफिक द्वारा जारी एक ताज़ा रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि बाघों के अंगों की तस्करी में भारत पूरी दुनिया में अव्वल है. इस बीच गौरतलब है कि उत्तराखंड में विगत जुलाई माह तक बाघों के हमलों में 11 जानें जा चुकी हैं. ये आकड़ा बता रहा है कि पिछले साल 2021 की तुलना में 5 और पांच साल पहले की तुलना में दोगुनी मौतें हो चुकी हैं. इस वक्त पूरी दुनिया में करीब 4,200 बाघ बचे हैं. सिर्फ 13 देश हैं, जहां बाघ पाए जाते हैं. इनमें से भी 70% बाघ भारत में हैं.
‘बाघ जनगणना’ की एक विस्तृत रिपोर्ट बताया जा चुका है कि 1973 में हमारे देश में सिर्फ 9 टाइगर रिजर्व थे. अब इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है. ये सभी टाइगर रिजर्व या तो अच्छे हैं या फिर बेस्ट हैं. बाघों की घटती आबदी पर 2010 में रूस के पीटर्सबर्ग में ग्लोबल टाइगर समिट हुई थी, जिसमें 2022 तक टाइगर पॉपुलेशन को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया था. इस समिट में सभी 13 टाइगर रेंज नेशन ने हिस्सा लिया था. इसमें भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम शामिल थे. 2010 में तय किए लक्ष्य की ओर भारत तेजी से बढ़ रहा है. आठ साल में ही यहां बाघों की आबादी 74% बढ़ी है. जिस तेजी से देश में बाघों की आबादी बढ़ रही है, उससे उम्मीद है कि इस साल 2022 का लक्ष्य भारत हासिल कर लेगा.
2010 से 2018 के बीच भारत में बाघों की आबादी 74% बढ़ी है. 2022 तक बाघों की आबादी को डबल करने के लिए किसी भी देश की टाइगर पॉपुलेशन ग्रोथ हर साल 9% से थोड़ी कम होनी चाहिए. भारत की ये ग्रोथ रेट 9% से ऊपर की है. देश के 20 राज्यों में कुल 2,967 बाघ हैं. इनमें से 1,492 बाघ मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तराखंड में हैं. सिर्फ तीन राज्यों में ही देश में बाघों की कुल आबादी के 50% से ज्यादा बाघ रहते हैं. अगर दुनिया के लिहाज से देखें तो इन तीन राज्यों में बाघों की कुल आबादी का 35% हैं.
उत्तराखंड में इस साल जुलाई, 2022 तक बाघों के हमलों में 11 जानें जा चुकी हैं. वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि बाघ आदतन आदमखोर नहीं होते हैं. ‘बाघ बस्तियों का रुख करें, यह आम बात नहीं है. ऐसा होता तो ये घटनाएं आम होतीं. लेकिन जब लोग जंगलों पर अतिक्रमण करते हैं और वन्यजीवन के साथ छेड़खानी होती है, तब बाघों का बर्ताव भड़कता है.’ उन्होंने यह भी कि राज्य सरकार द्वारा वन्यजीवों के हमलों को प्राकृतिक आपदा श्रेणी में रखने से भी ऐसी घटनाओं को ज़्यादा तवज्जो मिलने लगी है.
इस बीच गौरतलब है कि उत्तराखंड में हल्द्वानी से सटी फतेहपुर रेंज में उत्तराखंड का सबसे बड़ा टाइगर ट्रैंकुलाइज अभियान अब समाप्ति की ओर पहुंच चुका है. मार्च से लेकर अब तक करीब 25 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं. कार्बेट से मंगाए हाथी अब वापस लौटेंगे. वन विभाग का कहना है कि जून के बाद से अब तक हमले का कोई मामला सामने नहीं आया है. अभियान पर लाखों रुपये भी खर्च हो चुके हैं. कई रेंजों के वनकर्मी यहां जुटाने पड़ रहे थे. इसलिए मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को पत्र भेज अभियान खत्म करने की अनुमति मांगी गई है. सुरक्षा की दृष्टि से रेंज टीम अलर्ट मोड पर ही रहेगी. समय अवधि के हिसाब से यह राज्य का सबसे लंबा अभियान पहले ही साबित हो चुका है. इससे पूर्व 2016 में रामनगर में नरभक्षी बाघिन को ढेर करने को 44 दिन तक अभियान चला था.
पिछले साल 29 दिसंबर को दमुवाढूंगा से सटे जंगल में एक युवक की वन्यजीव के हमले में मौत हुई थी. उसके बाद से यह सिलसिला बढ़ता गया. 16 जून तक सात लोगों की जान चली गई. सभी घटनाएं घने जंगल में हुई थी. मवेशियों के लिए चारा और सूखी लकड़ी के चक्कर में लोग जंगल जाते हैं, जिसके बाद अपनी जान गंवा बैठते हैं. गुजरात के जाम नगर का 30 सदस्यीय विशेषज्ञों का दल भी बाघ को ट्रैंकुलाइज करने में नाकाम साबित हुआ था, जिसके बाद 21 जून को विभाग ने हाथी की मदद से एक बाघ को ट्रैंकुलाइज कर जंगल से बाहर कर दिया.
एक तरफ देश में जहां बाघों को बचाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं वहीं साथ ही भारत में इनका अवैध व्यापार भी फल-फूल रहा है. पिछले 23 वर्षों में इनकी अवैध तस्करी की दुनिया भर में कुल 2,205 घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें से 34 फीसदी यानी 759 घटनाएं अकेले भारत में दर्ज की गई हैं. जो 893 यानी जब्त किए गए 26 फीसदी बाघों के बराबर है. इसके बाद 212 घटनाएं चीन में जबकि 207 मतलब 9 फीसदी इंडोनेशिया में दर्ज की गई हैं. अंतराष्ट्रीय संगठन ट्रैफिक द्वारा जारी नई रिपोर्ट “स्किन एंड बोन्स” के अनुसार संरक्षण के प्रयासों को कमजोर करते हुए, शिकारी बाघों को उनकी त्वचा, हड्डियों और शरीर के अन्य अंगों के लिए निशाना बना रहे हैं. हर साल करीब 150 बाघों और उनके अंगों को अवैध तस्करी के दौरान जब्त किया गया है.
रिपोर्ट के अनुसार पिछले 23 वर्षों में जनवरी 2000 से जून 2022 के बीच 50 देशों और क्षेत्रों में बाघों और उनके अंगों की तस्करी की यह जो घटनाएं सामने आई हैं उनमें कुल 3,377 बाघों के बराबर अंगों की तस्करी की गई है. दुनिया में अब केवल 4,500 बाघ ही बचे हैं, जिनमें से 2,967 भारत में हैं. 20वीं सदी के आरम्भ में इनकी संख्या एक लाख से ज्यादा थी. यदि इसी तरह उनका शिकार और तस्करी होती रही तो वह दिन दूर नहीं होगा, जब दुनिया में यह विशाल बिल्ली प्रजाति जल्द ही विलुप्त हो जाएगी. गौरतलब है कि इनकी बरामदगी 50 देशों और क्षेत्रों से हुई है, लेकिन इसमें एक बड़ी हिस्सेदारी उन 13 देशों की थी जहां अभी भी बाघ जंगलों में देखे जा सकते हैं. पिछले सालों में तस्करी की जितनी घटनाएं सामने आई हैं, उनमें से 902 घटनाओं में बाघ की खाल बरामद की गई थी. इसके बाद 608 घटनाओं में पूरे बाघ और 411 घटनाओं में उनकी हड्डियां बरामद की गई थीं. ट्रैफिक ने आगाह किया कि है कि बरामदी की यह घटनाएं बड़े पैमाने पर होते इनके अवैध व्यापार को दर्शाती हैं लेकिन यह इनके अवैध व्यापार की पूरी तस्वीर नहीं हैं क्योंकि बहुत से मामलों में यह घटनाएं सामने ही नहीं आती हैं.
रिपोर्ट बताती है कि 2018 के बाद से बाघों और उनके अंगों की बरामदी की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन इसके बावजूद भारत और वियतनाम में इस तरह की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है. पता चला है कि पिछले चार वर्षों में वियतनाम में बरामदी की इन घटनाओं में 185 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. थाईलैंड और वियतनाम में जब्त किए गए अधिकांश बाघों को संरक्षण के लिए रखी गई सुविधाओं से प्राप्त होने का संदेह है, जो दर्शाता है कि बाघों और उनके अंगों के अवैध व्यापार को बढ़ावा देने में इन बंदी सुविधाओं की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता. पता चला है कि थाईलैंड में जितने बरामदी हुई हैं उनमें से 81 फीसदी बाघ बंदी सुविधाओं जैसे चिड़ियाघर, प्रजनन फार्म आदि से जुड़े थे जबकि वियतनाम में यह आंकड़ा 67 फीसदी था.
इस समय 2022 की पहली छमाही में भी स्थिति गंभीर बनी हुई है. इस दौरान इंडोनेशिया, थाईलैंड और रूस ने पिछले दो दशकों में जनवरी से जून की तुलना में बरामदी की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है. अकेले इंडोनेशिया में 2022 के पहले छह महीनों में करीब 18 बाघों के बराबर अवैध तस्करी की घटनाएं सामने आई है जो 2021 में सामने आई तस्करी किए बाघों की कुल संख्या से भी ज्यादा हैं. इतना ही नहीं ट्रैफिक ने दक्षिण पूर्व एशिया में बाघों और उनके अंगों की तस्करी में शामिल 675 सोशल मीडिया खातों की भी पहचान की है जो दर्शाता है कि संकट ग्रस्त प्रजाति का अवैध व्यापार अब ऑनलाइन भी तेजी से फैल रहा है.
आंकड़ों से सामने आया है कि इनमें से लगभग 75 फीसदी खाते वियतनाम में आधारित थे. ऐसे में इनके संरक्षण को लेकर दुनियाभर में जो प्रयास किए जा रहे हैं वो कैसे सफल होंगे, यह एक बड़ा सवाल है. इस बारे में रिपोर्ट की सह-लेखक और दक्षिण पूर्व एशिया में ट्रैफिक की निदेशक कनिथा कृष्णासामी का कहना है कि यदि हम अपने जीवनकाल में जंगली बाघों को खत्म होते नहीं देखना चाहते, तो इस बारे में तत्काल और समयबद्ध कार्रवाई को प्राथमिकता देनी होगी।
Leave a Comment
Your email address will not be published. Required fields are marked with *