टिमोथी रुक्स : हमारी दुनिया पूंजीवादी, समाजवादी और साम्यवादी मॉडलों पर चल रही है लेकिन बेल्जियम की एक विद्वान दुनिया के सामने सीमावाद का सिद्धांत लाई हैं. क्या है सीमावाद और वह इसे क्यों जरूरी बता रही हैं? दुनिया में कुछ लोग बहुत ही ज्यादा अमीर हैं. एक तरफ जहां अमीरों की लिस्ट लंबी होती
टिमोथी रुक्स : हमारी दुनिया पूंजीवादी, समाजवादी और साम्यवादी मॉडलों पर चल रही है लेकिन बेल्जियम की एक विद्वान दुनिया के सामने सीमावाद का सिद्धांत लाई हैं. क्या है सीमावाद और वह इसे क्यों जरूरी बता रही हैं? दुनिया में कुछ लोग बहुत ही ज्यादा अमीर हैं. एक तरफ जहां अमीरों की लिस्ट लंबी होती जा रही है, वहीं गरीबों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है. ऐसे कई अर्थशास्त्री, दार्शनिक और नेता हैं जो आय के संतुलित बंटवारे पर जोर देते आए हैं. समानता और साझा करना, यही वो बुनियाद है, जिसके इर्दगिर्द पूरा राजनीतिक सिस्टम खड़ा है.
लिमिटेरियनिज्म को हिंदी में सीमावाद भी कहा जा सकता है. आर्थिक सीमावाद का विचार कहता है कि किसी एक को बहुत ज्यादा अमीर नहीं होना चाहिए. आर्थिक सीमावाद का सिद्धांत, अति रईस लोगों की वजह से होने वाले नुकसान और जोखिम पर फोकस करता है. जब असमानता की बात आती है तो आर्थिक सीमावाद, बढ़ती गरीबी की बात नहीं करता है. बल्कि यह, बहुत ज्यादा संपत्ति वालों की भूमिका पर चर्चा करता है.
एक इंसान अकेले कितनी संपत्ति जमा कर सकता है, इसकी एक सीमा होनी चाहिए, लेकिन इसे किसी सजा की तरह नहीं देखा जाना चाहिए. विचार यह है कि सामाजिक बेहतरी के जरिए आम लोगों तक फायदा पहुंचे और आर्थिक तंत्र में सकारात्मक बदलाव आयें. ऐसे कई उदाहरण हैं जो बताते हैं कि एक बिंदु के बाद बहुत ज्यादा पैसा, जिंदगी को बेहतर बनाने में कोई भूमिका नहीं निभाता है. ज्यादातर मामलों में कुछ लाख डॉलर पर्याप्त हैं. सीमावाद, समाजवाद और साम्यवाद नहीं है. यह संपत्ति जमा करने, निजी संपत्ति बनाने या सामाजिक असमानता को खारिज नहीं करता है. यह सिद्धांत तो आसान शब्दों में यही कहता है कि बहुत ज्यादा होना अकसर एक अति है. फिलहाल यह सिद्धांत इतनी गहराई तक नहीं पहुंचा है कि इसे अंकों या आंकड़ों में तौला जा सके. थ्योरी अभी यह भी नहीं बताती है कि अत्यधिक संपत्ति की सीमा क्या हो, एक करोड़, डेढ़ करोड़ या फिर अरबों डॉलर.
आर्थिक सीमावाद के सिद्धांत के पीछे बेल्जियम की अकादमिक रिसर्चर इनग्रिड रोबेयंस का नाम प्रमुखता से आता है. इनग्रिड रोबेयंस, नीदरलैंड्स की उट्रेष्ट यूनिवर्सिटी के दर्शनशास्त्र विभाग में पढ़ाती और रिसर्च करती हैं. वह मुख्य रूप से राजनीतिक दर्शन, सामाजिक न्याय और आचार पर काम करती हैं. रोबेयंस ने 2012 में एक कॉन्फ्रेंस के दौरान पहली बार सीमावाद का विचार सामने रखा था. कुछ साल बाद इस मुद्दे पर उनका पहला अकादमिक पेपर आया. उसके बाद से ही वह लगातार इस विषय पर काम करती आ रही हैं. उनके इस विचार को लेकर दुनिया भर से अलग अलग किस्म की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. रोबेयंस कहती हैं, मेरे अनुभव से यूरोप में जनता सीमावाद के कई तर्कों को शेयर करती है लेकिन अमेरिका में मुख्य धारा की बहस में यह विचार अभी बहुत दूर की चीज है. अमेरिकन ड्रीम का विचार पारंपरिक अमेरिकी संस्कृति का हिस्सा है-यह विश्वास दिलाता है कि पूरे समर्पण के साथ कोशिश करने पर हर किसी के पास बहुत अमीर बनने का मौका है. सीमावाद की थ्योरी, आय की असमानता से कहीं ज्यादा है. सीमावाद की बुनियाद नैतिकता पर टिकी है. समाज के हित के खातिर मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था पर नैतिकता और मूल्यों के बचाने के लिए कब दखल दिया जाए?
क्या बेहद अमीर लोग समाज को कुछ वापस दे रहे हैं या फिर वे कई कारोबारों या विकास करते पूरे देशों को ही लहूलुहान कर रहे हैं. क्या 10 कारें रखना, दो गाड़ियों के मुकाबले बेहतर है?रोबेयंस कहती हैं, कुछ लोग अब ये नारा इस्तेमाल कर रहे हैं, ‘हर अरबपति एक नीतिगत नाकामी है.’ मुझे लगता है कि यह सही है. रोबेयंस के मुताबिक सीमावाद के दो मुख्य स्तंभ हैं: लोकतंत्र की रक्षा और अनसुनी मांगों या सामूहिक प्रयास मांगने वाली सामाजिक समस्याओं जैसे जलवायु परिवर्तन पर तुरंत ध्यान देना. राजनीतिक असमानता की ओर इशारा करते हुए सीमावाद कहता है कि बढ़ती विषमता लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकती है. अमीर अपने पैसे का इस्तेमाल कर राजनेताओं को प्रभावित कर सकते हैं, वे लॉबी करने वालों के जरिए अपने एजेंडे को कानून का हिस्सा बना सकते हैं. अगर ये काम नहीं आया तो वे मीडिया संस्थाओं को खरीद कर या थिंक टैंक्स को खरीदकर लोगों की सोच को प्रभावित कर सकते हैं.
आर्थिक सीमावाद का मानना है कि संपत्ति का समान वितरण पूरी दुनिया के लोगों का जीवन बेहतर करेगा. उन लोगों की खासी मदद होगी जो भयानक गरीबी से जूझते हैं. रोबेयंस के मुताबिक, अगर आपके पास पहले से ही एक करोड़ डॉलर हैं और उसके बाद आप एक लाख यूरो या डॉलर और कमाएं तो उससे आपकी लाइफस्टाइल में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं होता है. लेकिन अगर आपके पास कोई संपत्ति नहीं है और फिर वह जुड़ती है तो ये अहम बदलाव लाती है. इसका मतलब है खाने के लिए पर्याप्त भोजन, रहने के लिए सुविधाजनक घर और गरीबी झेलने वाले बच्चों की कम संख्या.
बात सिर्फ पैसे की नहीं है. आर्थिक सीमावाद के समर्थक कहते हैं कि अमीर, पर्यावरण के लिए भी खतरनाक हैं क्योंकि वे बहुत ज्यादा सीओटू गैसों का उत्सर्जन करते हैं. रोबेयंस इसे कुछ इस तरह पेश करती हैं कि अति अमीर बहुत ही बड़े अनुपात में जलवायु परिवर्तन को भड़का रहे हैं क्योंकि उनकी जीवनशैली में अत्यधिक भौतिकता भरी है और उनके निवेश भी पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं….कोई यह कह सकता है कि अतिरिक्त पैसे का इस्तेमाल किसी पहाड़ की चोटी पर बंकर या विला बनाने और वहां छिपने के बजाए जलवायु संकट से निपटने में किया जाना चाहिए. रोबेयंस की नजर में जलवायु परिवर्तन सामाजिक उथल पुथल मचा सकता है.
कुछ आलोचकों का कहना है कि आर्थिक सीमावाद काफी नहीं है. कंपनियों के लिए भी सीमावाद से जुड़ी गाइडलाइंस होनी चाहिए. कुछ दार्शनिक और अर्थशास्त्री संपत्ति को सीमा में बांधने के बिलकुल खिलाफ हैं. उनकी नजर में अमीर बनने का मौका ही लोगों को कुछ नया करने, जोखिम लेने या बदलाव लाने के लिए प्रेरित करता है. ऐसे विद्वान तर्क देते हैं कि संपत्ति पर अंकुश लगाकर राजनीतिक विषमता को खत्म नहीं किया जा सकता है. उनकी नजर में संपत्ति या अच्छे जीवन का पैमाना तय करना मुश्किल है, लेकिन ये लोग भी मानते हैं कि विकासवादी टैक्स सिस्टम बढ़ती असमानता के खिलाफ कारगर हो सकता है. इन तर्कों के बावजूद, सच्चाई सामने है, अमीर और ज्यादा अमीर होते जा रहे हैं. 2022 में फोर्ब्स पत्रिका ने अरबपतियों की सूची में 2,668 लोगों को जगह दी. कुल मिलाकर इन लोगों के पास दुनिया की 12700 अरब डॉलर की संपत्ति है. कोविड-19 जैसे वैश्विक महामारी के बावजूद इनमें से 1000 से ज्यादा अरबपतियों की संपत्ति बीते एक साल में काफी ज्यादा बढ़ी है.
अपने आइडिया को लागू करने के लिए रोबेयंस मौजूदा दौर की समस्याओं को देखती हैं. वह स्वीकार करती हैं कि पूरी दुनिया के लिए अति अमीरी का एक मानक नहीं बनाया जा सकता है. दूसरा मसला ये है कि अगर अधिकतम संपत्ति तय कर भी दी जाए तो उसके ऊपर होने वाली आय का क्या किया जाएगा. कुछ लोग कहते हैं कि दार्शनिकों का काम किसी का हीरे का हार या निजी जेट जब्त करना नहीं, बल्कि सवाल पूछना है. रोबेयंस कहती है, विचार इतिहास को बदल सकते हैं. कुछ ऐसा करते हैं और कुछ नहीं. वह मानती हैं कि कुछ लोग भले ही सीमावाद के विचार को पूरी तरह खारिज कर दें, लेकिन इसने लोगों को असमानता के बारे में सोचने और बहस करने का मौका दिया है. एक दार्शनिक और स्कॉलर होने के नाते मेरा काम इन तर्कों को सामने रखना है, अब यह आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक मंच के लोगों और नेताओं पर है कि वे ऐसी दुनिया को साकार करने के लिए क्या कदम उठाते हैं. (डीडब्ल्यू से साभार)
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