सन् 62 के भारत-चीन युद्ध के बाद पहली बार गुलज़ार होगी माणा-नीती घाटी

सन् 62 के भारत-चीन युद्ध के बाद पहली बार गुलज़ार होगी माणा-नीती घाटी

चमोली (उत्तराखंड) की माणा और नीती घाटी में 1962 के युद्ध के बाद पहली बार ग्रामीणों और चरवाहों के अलावा आम लोगों की आवाजाही शुरू हो गई है. इसके साथ ही क्षेत्र के लोगों में वर्षों पुरानी सीमा दर्शन यात्रा शुरू होने की उम्मीद परवान चढ़ने जारही है. इस वर्ष पहली बार प्रशासन की ओर

चमोली (उत्तराखंड) की माणा और नीती घाटी में 1962 के युद्ध के बाद पहली बार ग्रामीणों और चरवाहों के अलावा आम लोगों की आवाजाही शुरू हो गई है. इसके साथ ही क्षेत्र के लोगों में वर्षों पुरानी सीमा दर्शन यात्रा शुरू होने की उम्मीद परवान चढ़ने जारही है. इस वर्ष पहली बार प्रशासन की ओर से सीमा दर्शन के लिये 500 से अधिक लोगों का अनुमति प्रदान की गई है. नंदा देवी अभ्यारण्य को संरक्षित क्षेत्र में सम्मिलित करने के बाद नीती घाटी में पर्यटन और पर्यटन से होने वाले आय पर आश्रित स्थानीय लोग पूरी तरह तबाह हो गए. बताया जाता है कि नीती घाटी के पतन की नींव तो 1930 के दशक में ही रखी जा चुकी थी.
समुद्र सतह से क्रमश: 3600 तथा 3134 मीटर की ऊँचाई पर सरस्वती नदी के समीप स्थित नीती और माणा उत्तराखंड के सीमान्त गांव हैं। ये दोनों गांव चमोली के उत्तरी क्षेत्र में स्थित हैं। भारत के अन्तिम गॉंव तथा देवभूमि की रमणीक हिमालयी प्राकृतिक विरासत के लिये प्रसिद्ध हैं. नीती व माणा भारत के अन्तिम और प्राचीन गॉंव होने के कारण इन दोनों गॉंवों का इतिहास भी प्राचीनतम है. यह दोनों गॉंव तिब्बत (चीन) के मुख्य दर्रे पर हैं. नीती माणा क्षेत्र प्राचीन भारत की आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, व्यापारिक व रक्षा-सुरक्षा समेत कई अन्य गूढ़ रहस्यों से समाविष्ट है। यह दोनों गॉंव तिब्बत (चीन) के प्राचीन मुख्य दर्रे होने के कारण महत्वपूर्ण व्यापारिक क्षेत्र रहा है, जिनकी ऐतिहासिक पृष्टभूमि विस्तृत है. यहॉं के निवासियों को भारत, तिब्बत तथा मंगोलिया से आये मिश्रित लोगों का वंशज माना जाता है. दोनों गॉंवों में माणा तिब्बत (चीन) के मुख्य दर्रे तथा राजमार्ग बन जाने के कारण बहुपरिचित है, जबकि नीती मुख्य दर्रे से दूर तथा अधिक संवेदनशील व प्रकृति के ओत-प्रोत है.
सुरक्षा मामलों से संवेदनशील क्षेत्र, अत्यन्त दुर्गम तथा शीत जलवायु होने के कारण नीती माणा गॉंवों की निर्धारित सीमा रेखा तक ही आम नागरिकों का भ्रमण अनुमतित है अर्थात किसी भी प्रकार के अनुमति पत्र की आवश्यकता नहीं होती. इन दोनों गॉंवों का भ्रमण वर्जित नहीं है, परन्तु सुरक्षा कारणों से दो ढाई किलोमीटर पूर्व आई.टी.बी.पी. के जवानों द्वारा सुरक्षा जॉच अनिवार्य है. निर्धारित सीमा रेखा से आगे जाने के लिए एस.डी.एम.कार्यालय,जोशीमठ से अनुमति प्राप्त करने के पश्चात भारत तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों की निगरानी में विशिष्ट सीमा तक ही भ्रमण आदेशित होता है. उत्तराखंड के माणा समेत अन्य घाटियों की तुलना में नीती घाटी में हिंदुस्तान की सर्वाधिक ऊँचा पर्वत शिखर नंदा देवी समेत अन्य पर्वत शिखर अधिक ऊँचे और वनस्पति व वन्य विविधता के नज़रिय से अधिक महत्वपूर्ण और सुंदर रही है. यही कारण है कि पर्वतीय खोज और अन्वेषण में रुचि रखने वाले पश्चमी पर्वतारोहियों के लिए नीती घाटी पहली पसंद रही है.
दरअसल, नीती और माणा घाटी के ग्रामीणों की ओर से लंबे समय भारत-तिब्बत सीमा क्षेत्र में सीमा दर्शन यात्रा शुरु करने की मांग कर रहे हैं. कई बार भोटिया जनजाति के जन प्रतिनिधियों और ग्रामीणों की ओर से नीति घाटी से कैलाश मानसरोव यात्रा शुरु करने की भी मांग की गई है, लेकिन संवेदनशील सीमा क्षेत्र होने के चलते यहां सीमा दर्शन यात्रा शुरु नहीं हो सकी है.
ऐसे में प्रशासन की अनुमति के बाद इस वर्ष गढवाल सांसद तीरथ सिंह रावत और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के साथ ही घाटी के बाहरी क्षेत्र के लोग बड़ी संख्या में सीमा क्षेत्र में पहुंचे हैं. वहीं सीमा क्षेत्र में तैनात सेना की ओर से घाटी के ग्रामीणों को देवताल और पार्वती कुंड में ले जाया गया है.
जोशीमठ के उप-जिलाधिकारी कुमकुम जोशी ने बताया कि इस वर्ष वीआईपी सहित करीब 500 लोगों को सीमा क्षेत्र में स्थित देवताल और पार्वती कुंड तक जाने के लिये पास दिए गए हैं. वर्तमान तक चमोली की अंतर्राष्ट्रीय सीमा में पहुंचने वालों की सबसे अधिक संख्या है, जिसके बाद इस वर्ष घाटी में रौनक भी रही. चमोली जिले से लगा चीन सीमा क्षेत्र बर्फ से ढका हुआ है. नीती और माणा घाटी में चारों ओर बर्फ की चादर बिछी हुई है. नीती घाटी में मलारी से आगे गांव तक सड़क मार्ग है. चीन सीमा क्षेत्र होने के कारण नीती घाटी में मलारी से आगे सेना और आईटीबीपी तैनात रहती है.
वर्ष 1939 में कुमाऊँ, गढ़वाल होते हुए तिब्बत की यात्रा पर निकले यूरोपीय यात्री कैप्टन राबर्ट हामोंड लिखते हैं- ग्राम प्रधान भूपन सिंह को हमने दिल्ली से निकलने से दो दिन पहले ही हमारे आने की सूचना भेज दिया था ताकी वो हमारे लिए यातायात के साधन और भारवाहकों का इंतज़ाम पहले ही कर लें लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया था. नीती पहुँचकर हमें इंतज़ाम करने में दो दिन का समय बर्बाद करना पड़ा। नीती घाटी में यातायात के साधन और भारवाहक बहुत महँगे हैं। यहाँ दस जानवर का किराया दो रुपया और पाँच जानवर (भारवाहक) को सम्भालने के लिए एक व्यक्ति की मज़दूरी डेढ़ रुपया था। यानी की दस भारवाहक जानवर रखने के लिए आप को प्रतिदिन पाँच रुपया खर्च करना पड़ेगा जबकि तिब्बत में इसके आधे से भी कम दाम में इतने ही भारवाहक मिल जाते थे।
नीती के इन भारवाहकों के नख़रे से वे इतने परेशान हो गए कि तिब्बत के डाबा-चु घाटी पहुँचते ही उन्होंने स्थानीय भरवाहकों का इंतज़ाम करके नीती के भरवाहकों को हमेशा के लिए वापस भेज दिया। एकमात्र स्थानीय गढ़वाली भरवाहक/गाइड जो उनके साथ रहा, वो था कलैन सिंह जो माणा घाटी का था. उस दौर में नीती घाती में सर्वाधिक पर्यटक आते थे.

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