शादी का मतलब सबसे पहले शॉपिंग करने का एक्साइटमेंट

शादी का मतलब सबसे पहले शॉपिंग करने का एक्साइटमेंट

मनीषा यादव : कहते हैं, शादी मोतीचूर का लड्डू है – जो खाए, पछताए और जो न खाए, ललचाए. यह बात पुरुषों और महिलाओं पर बराबर-बराबर लागू होती है लेकिन फिर भी यह माना जाता है कि महिलाओं में इस लड्डू को खाने का लालच ज्यादा होता है. हमारे यहां लड़कियों की शादी हर परिवार

मनीषा यादव : कहते हैं, शादी मोतीचूर का लड्डू है – जो खाए, पछताए और जो न खाए, ललचाए. यह बात पुरुषों और महिलाओं पर बराबर-बराबर लागू होती है लेकिन फिर भी यह माना जाता है कि महिलाओं में इस लड्डू को खाने का लालच ज्यादा होता है. हमारे यहां लड़कियों की शादी हर परिवार का लक्ष्य होती है सो जाहिर है लड़कियां भी इसके असर से बच नहीं पाती हैं. ज्यादातर तो शादी के सपने देखते हुए ही बड़ी होती हैं. इसलिए जब यह वक्त करीब आने लगता है तो उनके मन में उथल-पुथल मच जाना स्वाभाविक है. ऐसा न भी हो तो भी शादी की बात शुरू होने से लेकर फेरे लेने तक का समय उनके लिए कई मायनों में जिंदगी का सबसे रोमांचक समय होता है. इस दौरान वे एक साथ खुशी, जोश, उमंग, उत्साह डर और आशंका की स्थिति में होती हैं. यानी इस समय उनके मन का हाल सटीक तरह से बता पाना लगभग नामुमकिन होता है.
शादी हममें से ज्यादातर लड़कियों के लिए वह पहला मौका बनकर आता है जब हम पूरे परिवार के लिए बेहद खास बन जाती हैं. आम दिनों में जो मां-बाप लड़की पर हजार-पांच सौ रूपए खर्च करने से पहले भी सोचते हैं (फिर भले वे उसके दहेज के लिए ही बचत क्यों न कर रहे हों), वे शादी के वक्त बेहिसाब खर्च करने को तैयार रहते हैं. ‘मेरे लिए शादी का मतलब सबसे पहले शॉपिंग करने का एक्साइटमेंट था. मैं यही सोचती थी कि मेरा लहंगा कैसा होगा और उसे पहनकर मैं कैसी दिखूंगी. इस ख़याल की खुमारी मुझे सबसे ज्यादा थी. मेरे लिये शादी का मतलब स्पेशल फील करना, खूब सजना, ब्यूटी ट्रीटमेंट लेना और बस खर्च करते जाना ही था’, हरिद्वार में रहने वाली शालिनी आर्य कहती हैं.
लहंगे की कल्पनाओं में खोई लड़कियां एक तरफ तो शादी के सच होते सपने को जी रही होती हैं, वहीं दूसरी तरफ आने वाले वक्त के लिए फिक्रमंद भी रहती हैं. रेवाड़ी की नेहा यादव जल्दी ही शादी करने जा रहीं हैं और इस बारे में बात करते हुए वे बहुत उत्साह के साथ बताती हैं, ‘मैं कैसी दिखूंगी, ब्राइडल का क्या नया ट्रेंड चल रहा है, आजकल हर वक्त मेरे दिमाग में यही चलता रहता है. लेकिन सेम टाइम पर कुछ डर भी सताते रहते हैं. जैसे सेक्स को लेकर दिमाग में एक तनाव है कि क्या होगा, कैसे होगा, हसबैंड कितना कोऑपरेटिव होगा? इस चीज को लेकर जैसी समझदारी वाली बातें करता है, क्या सच में उतना ही मैच्योर होगा भी या नहीं.’ नेहा की तरह लहंगा और सेक्स शादी से पहले लड़कियों के दिमाग में बने रहने वाले दो सबसे जरूरी मुद्दे हैं, चाहे वे इसे स्वीकार करें या नहीं.
बहुत सी लड़कियों के लिए शादी एक अलादीन के चिराग की तरह होती है. इससे पहले तक मां-बाप इसी चिराग के सहारे उन्हें उनके सारे अरमान पूरे होने का भरोसा दिलाते रहते हैं – शादी के वक्त खरीद लेना, शादी के बाद घूम लेना, ससुराल में जाकर कर लेना, अपने पति से करवा लेना या पति कर देगा. बस तब तक उन्हें इंतजार करना है. कई बार तो लड़कियों को फिल्म देखने, घर के बाहर खुलकर जाने जैसी छोटी-छोटी आजादी भी सिर्फ शादी के बाद ही मिल पाती है. इन लड़कियों के लिए शादी आजादी की सांस लेने के मौके की तरह भी आती है.
गोरखपुर की किट्टू पाठक इस बात का उदाहरण हैं. ‘मेरे लिए शादी अपने घर की जेल से मुक्ति का मौका था. अपनी शादी के समय मैं सिर्फ यही सोचती थी कि काश मेरा पति मुझे मेरी तरह जीने, खाने, पहनने, पढ़ने, दोस्तों से मिलने दे. मनचाहे रूटीन को जी सकूं, ज्यादा सो सकूं, ज्यादा फिल्में देख सकूं…और ये भी मेरे दिमाग में हमेशा रहा कि मेरा पति मुझे इंपोर्टेंस दे. मायके में हमेशा में एक गैरजरूरी इंसान की तरह ही जी. मेरे ऊपर हर चीज की पाबंदी थी. सो शादी मेरे लिए एक बहुत बड़ा मौका था इन सबसे निकलने का’ अपनी शादी से पहले की मनोस्थिति के बारे में किट्टू बताती हैं. किट्टू की बातों से लगता है कि शादी हिंदुस्तानी समाज में कुछ लड़कियों की आजादी छीनती है तो कुछ को दे भी सकती है. या फिर यह भी कह सकते हैं कि यह एक तरह की आजादी छीनती है तो दूसरी तरह से उन्हें कई मामलों में अपनी मर्जी के काम करने के मौके भी दे देती है. लेकिन लड़कियां यह भी जानती हैं कि ये मौके काफी हद तक उनके पति की समझ और इच्छा पर निर्भर करते हैं.
मशहूर लेखक सलमान रश्दी ने चार शादियां की थीं. साल 2008 में एल मैगज़ीन को दिए एक साक्षात्कार में उनका कहना था, ‘ज़्यादातर लड़कियों को शादी करना अच्छा लगता है, खासकर तब, जब उन्होंने पहले कभी शादी नहीं की हो, लेकिन उन्हें बस वैडिंग ड्रेस का शौक होता है. दरअसल, उन्हें वैडिंग चाहिए होती है, मैरिज नहीं. काश ऐसा हो पाता कि आप वैडिंग तो कर पाते मगर उसके बाद मैरिज ज़रूरी नहीं होती.’ रश्दी की बात पर न भी जाएं और अपने आस-पास की लड़कियों पर गौर करें तो हम पाएंगे कि ज्यादातर लड़कियां शादी के लिए सिर्फ सज-धजकर तैयार हो पाती हैं, मानसिक स्तर पर नहीं!
बाज़ार और हमारे समाज के पुरुषसत्तात्मक ढांचे को पोसने वाली परंपराओं ने लड़कियों को लहंगे और गहनों के सपने देखना तो सिखा दिया, लेकिन उन्हें शादी के बाद उनकी ज़िंदगी में आने वाले बदलावों के लिए तैयार करने का जिम्मा किसी ने नहीं उठाया. इसके उलट लड़कियों को तो यह बताया जाता है कि अब उसकी सारी जिम्मेदारी पति पर है. हालांकि बदलते वक्त में, जब लड़कियां अपनी प्राथमिकताएं खुद तय करने लगी हैं, तब हममें से कई इस मायने में भी बदलने लगी हैं.
हाथरस की विनीता शर्मा, सीनियर इंजीनियर की पोस्ट पर काम करती हैं और उम्र में 33 का आंकड़ा पार कर चुकी हैं. विनीता को लगता है कि अब वे शादी के लिए तैयार हैं. वे बताती हैं कि ‘मैं तीन बहनों में सबसे बड़ी हूं और मेरी दोनों छोटी बहनों की शादी हो चुकी है. मैंने उन्हें शादी की शॉपिंग के लिए खुश होते हुए देखा. फिर उन्हें डरते हुए भी देखा कि नए परिवार में जाने के बाद उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल जाएगी. लेकिन इस तरह के डर सजने-संवरने और शॉपिंग के सपनों के नीचे दब कर रह जाते हैं.’ खुद के बारे में विनीता कहती हैं, ‘मैं जब शादी के बारे में सोचती हूं तो बस यही सोचती हूं कि जिसके साथ शादी हो उसके साथ ठीक-ठाक कंपैटिबिलिटी हो. शादी से पहले हम एक दूसरे के साथ कम से कम इतनी बातचीत कर लें कि एक-दूसरे के बारे में थोड़ी समझ में बन सके.’ विनीता मानती हैं कि लड़कियों को शादी से पहले खुद को अपनी नई ज़िंदगी के लिए तैयार करने के बारे में सोचना शुरू कर देना चाहिए.
विनीता का कहना सही है कि जिंदगी बांटने की इस तैयारी के लिए आपसी समझ बनना जरूरी है. मगर कई बार यह बातचीत ही कुछ नए डर पैदा होने की वजह बन जाती है. कासगंज की रीना गुप्ता की शादी तय हुए तीन महीने बीत चुके हैं और उनकी अक्सर अपने मंगेतर से बात होती है. बहुत कुरेदने पर रीना बताती हैं कि उन्हें लगता है कि उनके होने वाले पति थोड़े कंज़र्वेटिव सोच के हैं और अक्सर यह जानने की कोशिश में लगे रहते हैं कि शादी से पहले उनकी किसी लड़के से ज़्यादा दोस्ती तो नहीं रही. ऐसे में रीना असहज हो जाती हैं. वे कहती हैं, ‘वर्जिनिटी हमारी सोसाइटी का बहुत बड़ा सवाल है. ज़्यादातर लड़कों को ऐसी लड़की चाहिए जिसने उनसे पहले किसी लड़के को नज़र उठाकर भी न देखा हो. कुछ लोग तो आपको समझने की कोशिश करते हैं मगर कुछ लोग अपनी सोच से आगे नहीं बढ़ पाते. अगर सामने वाले को आप पर शक है तो आप कैसे उसे यकीन दिलाओगे?’
रीना की स्थिति में लड़कियों के मन का चैन और गायब हो जाता है. ऐसे में वे शादी को एंजॉय करने के बजाय इसी सोच में पड़ी रह जाती हैं कि किस तरह से पति के सामने अपनी सही तस्वीर रख पाएंगी. इसकी वजह यह भी है कि शादी से पीछे हटने का विकल्प ज्यादातर लड़कियों के पास नहीं होता है. शादी (अरेंज मैरिज) तय होने के बाद उसमें लव की गुंजाइश तलाशने वाली लड़कियां अक्सर रीना की तरह अपने मंगेतर को हुई गलतफहमियों या उसके पूर्वाग्रहों की शिकार हो जाती हैं. उनके लिए यह स्थिति कई बार बेहद अपमानजनक और त्रासद हो जाती है. इस दौरान हममें से ज्यादातर कुछ न कर पाने की मजबूरी से भर जाती हैं. हालांकि इसका उल्टा होने पर भी ऐसा नहीं है कि हमारे सारे डर दूर ही रहें. अपने लव को अरेंज मैरिज में बदलने जा रही स्वाति श्रीवास्तव कहती हैं, ‘मैं आजकल सोचती हूं कि मेरी आगे की लाइफ कैसी होगी. जितनी आज है उतनी आजादी मिलेगी या नहीं. नया परिवार मुझे आसानी से अपना लेगा या मशक्कत करनी पड़ेगी.’ स्वाति को लगता है कि लव मैरिज के कारण रिश्तेदारों का रवैया उनके प्रति ज्यादा आलोचनात्मक हो सकता है इसलिए वे इन दिनों मानसिक रूप से अपने आपको भाभी-चाची-बहू कहलवाने की तैयारी भी कर रही हैं और इन संबोधनों के साथ आने वाली जिम्मेदारियों की भी.
स्वाति की इन बातों को मन का वहम कहकर टाला जा सकता है लेकिन लव मैरिज करने वाली दुल्हनों को होने वाली कई चिंताएं बाकियों से कहीं अलग, ज्यादा वास्तविक भी हैं और जरूरी हो सकती हैं. जैसे-जैसे लड़कियां अपने फैसले खुद ले रही हैं उनकी समस्यायों का स्वरूप भी बदलने लगा है. दिल्ली में रह रही मीडिया प्रोफेशनल मौलश्री कुलकर्णी की शादी को थोड़ा ही वक्त बीता है. वे बताती हैं कि उनकी शादी लव मैरिज थी. उन दिनों इस बात की खुशी सबसे ज्यादा थी कि शादी के बाद दोनों साथ रह सकते हैं मगर उनकी चिंताएं आम लड़कियों से अलग थीं.
मौलश्री कहती हैं, ‘हम शादी से पहले लंबे समय तक दोस्त और फिर प्रेमी थे, इसलिए अनजाने का कोई डर रहा हो ऐसा नहीं था. लेकिन हमारी गृहस्थी की शुरूआत हमें खुद करनी थी. भारी-भरकम दहेज या महंगे गिफ्ट्स का कोई सीन ही नहीं था. उन दिनों फाइनेंस को लेकर थोड़ी इनस्टैबिलिटी थी. इसलिए मैं शादी के पहले इन्हीं चिंताओं में रहती थी कि कैसे होगा, क्या लोन लेना पड़ेगा या कुछ और करना पड़ेगा.’ शादी के पहले की चिंताओं में इन बातों का शामिल होना एक सकारात्मक बदलाव कहा जा सकता है. आजादी का सवाल भी मौलश्री के सामने एक नए तरीके से आता है, जवाब में वे एक मिनट सोचती हैं और कहती हैं, ‘वैसे तो मुझे पता था कि सब ठीक होगा पर फिर भी मुझे लगता था कि फ्रेंड्स के साथ टाइम बिताने के लिए मिलेगा या नहीं.’
मौलश्री की ही तरह मध्य प्रदेश के बेहद छोटे से कस्बे मऊगंज से आने वाली आरती सोनी की बातें भी एकदम अलग हैं. लंबे समय से परिवार की जिम्मेदारियां उठा रहीं आरती को शादी तय होने के बाद से इस बात की चिंता ज्यादा है कि उनके जाने के बाद उनका परिवार बिना किसी दिक्कत सबकुछ कैसे मैनेज कर पाएगा. इस चिंता के बावजूद वे शादी को, खुद की जिंदगी दोबारा शुरू करने के लिए आए एक मौके की तरह देखती हैं. वे कहती हैं, ‘परिवार की जिम्मेदारियां उठाते हुए मैंने सबका ख्याल रखा, सिवाय अपने. शादी तय होते ही सब मेरा ख्याल रखने लगे तो मुझे भी अपना होश आया. मुझे लगता है कि मुझे अपने नए परिवार से बस एक इसी चीज की उम्मीद रहेगी.’ यहां पर आरती इस बात को स्वीकार करती हैं कि उनकी जिंदगी में रोमांस आ जाने से ही उन्हें बहुत सारी नई चीजों को देखने-महसूस करने की इच्छा होने लगी है. इसलिए वे तमाम चिंताओं के बावजूद आजकल ज्यादा खुश महसूस करती हैं.
कुल मिलाकर शादी के पहले हर लड़की अपने कपड़ों और लुक्स के बारे में सबसे पहले और सबसे ज्यादा सोचती है. इसके बाद बारी आती है रोमांस, साथ, हनीमून और सेक्स की. इनके बारे में सोचना ही उन्हें अलग सी झुरझुरी महसूस करवाता है और इसके सहारे ही वे आने वाले रोमांचक और खूबसूरत जीवन के सपने बुनती हैं. तीसरे नंबर पर डर की बारी आती है जब वे आजादी छिन जाने से डरती हैं, सास और बाकी लोगों के साथ पटरी बैठाने की मशक्कतों के बारे में सोचती हैं, साथ ही नई जगह पर जॉब के विकल्प और मां-बाप की चिंता भी करती जाती हैं. इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि इन सब तनावों और डरों के साथ, वे कुछ दिनों के लिए घर में सबसे ज्यादा खास हो जाने का सुख चुपचाप लूटती हैं. हालांकि इस वक्त भी वे हमेशा की तरह अपने अपनों के बारे में सोचना नहीं छोड़ती हैं.

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