मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में शराब बनाने वाली फैक्ट्री में बाल श्रम का मामला सामने आने के बाद सरकार ने कार्रवाई की है. राज्य सरकार का कहना है कि 13 से 17 साल के बच्चों से शराब की बोतलें पैक करवाई जाती थी. मध्य प्रदेश सरकार के मुताबिक सोम ग्रुप डिस्टिलरीज में बच्चों से
मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में शराब बनाने वाली फैक्ट्री में बाल श्रम का मामला सामने आने के बाद सरकार ने कार्रवाई की है. राज्य सरकार का कहना है कि 13 से 17 साल के बच्चों से शराब की बोतलें पैक करवाई जाती थी. मध्य प्रदेश सरकार के मुताबिक सोम ग्रुप डिस्टिलरीज में बच्चों से शराब की पैकिंग करवाई जाती थी और उनसे 11-11 घंटों तक काम करवाया जाता था. हाल ही में राज्य के आबकारी विभाग ने शराब फैक्ट्री की जांच की थी. राज्य की पुलिस अब शराब फैक्ट्री में बाल श्रम के आरोपों की जांच कर रही है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने कहा कि उसने जब जून में फैक्ट्री का निरीक्षण किया तो उसे गैरकानूनी रूप काम करते हुए 58 बच्चे मिले थे.
आयोग ने कुछ बच्चों की तस्वीरें जारी कीं जिनमें उनके हाथों पर रसायन से जलन के निशान थे. आयोग ने बताया कि कुछ बच्चों को फैक्ट्री में काम के लिए स्कूल बसों से पहुंचाया जाता था. 15 जून को बच्चों के मिलने के एक दिन बाद राज्य के औद्योगिक स्वास्थ्य और सुरक्षा विभाग ने 27 श्रमिकों से बातचीत के आधार पर एक निरीक्षण रिपोर्ट तैयार की, जिनमें सबसे कम उम्र का बच्चा 13 साल का था. राज्य सरकार का कहना है कि 21 साल से कम उम्र के लोग शराब फैक्ट्री में काम नहीं कर सकते.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने उस रिपोर्ट को देखा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चे सुबह 8 बजे से 11 घंटे की शिफ्ट में काम कर रहे थे. यह रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है. सोम ग्रुप और मध्य प्रदेश सरकार ने रॉयटर्स द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब नहीं दिए हैं. 18 जून को राज्य सरकार को सौंपे गए जवाब में सोम ग्रुप ने कहा कि कुछ बच्चे अपने माता-पिता को भोजन और दवाइयां देने के लिए कंपनी में आते थे और शराब कंपनी ने यह भी दावा किया है कि कोई भी कर्मचारी 21 साल से कम उम्र का नहीं है. यह जवाब भी रॉयटर्स ने देखा है.
सोम भारत के फलते-फूलते शराब उद्योग में छोटी डिस्टिलरी है, जहां देशी और विदेशी दोनों ही कंपनियां काम करती हैं. इसकी वेबसाइट इसे “अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित ब्रांड” के रूप में बताती है. वेबसाइट के मुताबिक इसके उत्पाद अमेरिका, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन समेत 20 से अधिक विदेशी बाजारों में उपलब्ध हैं. इस घटना ने भारतीय सप्लाई चेन में बाल मजदूरी की ओर ध्यान आकर्षित किया है. 2021 में रॉयटर्स ने झारखंड में कार्ल्सबर्ग के दो गोदामों की ऑडिट की रिपोर्ट की थी, जिसमें कम उम्र के मजदूर पाए गए थे. उस समय कार्ल्सबर्ग ने कहा था कि उसने थर्ड पार्टी सर्विस खत्म कर दी है.
सोम के मामले में निरीक्षण रिपोर्ट में राज्य सरकार ने कहा कि वहां काम करने वाले बच्चों को यह प्रशिक्षण नहीं दिया गया कि वे हानिकारक रसायनों से खुद को कैसे बचा सकते हैं. रिपोर्ट में कहा गया, “चूंकि यह खतरनाक काम है, इसलिए फैक्ट्री में एक स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए था.” मध्य प्रदेश सरकार ने सोम डिस्टिलरी के फैक्ट्री लाइसेंस को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है, लेकिन कंपनी ने इस फैसले को निचली अदालत में चुनौती देते हुए कहा कि इसमें कोई गलत काम करने का सबूत नहीं मिला है.
सोम की चुनौती के बाद निचली अदालत ने राज्य के फैसले पर रोक लगा दी और कहा कि वह इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई महीने के आखिर में करेगी. सोम डिस्टिलरी भारतीय शेयर बाजार में लिस्टेड है और उसने स्टॉक एक्सचेंज को दिए गए बयान में कहा कि मध्य प्रदेश प्लांट को “सहयोगी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी” चलाती है और उसने ठेकेदारों द्वारा सप्लाई किए गए श्रमिकों का इस्तेमाल किया, जिन्होंने उचित आयु जांच नहीं की होगी. फैक्ट्री में बच्चों के पाए जाने के बाद से कंपनी के शेयरों में आठ फीसदी की गिरावट आई है.
भारतीय श्रम कानून के मुताबिक 15 साल से कम उम्र के बच्चों से श्रम कराना गैर कानूनी है. लेकिन स्कूल के बाद वे परिवार के व्यवसाय में हाथ बंटा सकते हैं. इस प्रावधान का नियोक्ता और मानव तस्कर व्यापक रूप से शोषण करते हैं. एक अनुमान के मुताबिक पूरे देश में 5 से 14 साल तक की उम्र वाले कामकाजी बच्चों की संख्या करीब 44 लाख है.
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