जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने जलवायु परिवर्तन के कारण नुकसान झेल रहे गरीब देशों की मदद के लिए चीन से और धन देने की मांग की है. बेयरबॉक ने माना है कि हाल के वर्षों में और इस समय जो नुकसान हो रहे हैं, उसकी जिम्मेदारी औद्योगिक देशों पर लेकिन भविष्य के लिए भी
जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने जलवायु परिवर्तन के कारण नुकसान झेल रहे गरीब देशों की मदद के लिए चीन से और धन देने की मांग की है. बेयरबॉक ने माना है कि हाल के वर्षों में और इस समय जो नुकसान हो रहे हैं, उसकी जिम्मेदारी औद्योगिक देशों पर लेकिन भविष्य के लिए भी तो कोई जिम्मेदारी बनती है. यह सच है कि हम यूरोप में और उत्तरी अमेरिका जीवाश्म ईंधन से आई समृद्धि के साथ औद्योगिक देश के रूप में बीते सालों और फिलहाल जो कुछ जलवायु को नुकसान हो रहा है उसके लिए जिम्मेदार हैं. आज उत्सर्जन करने वाले सभी देश भविष्य में होने वाले जलवायु के नुकसान के लिए जिम्मेदार हैं, सभी देश अब दिखा सकते हैं कि वो बड़े लक्ष्यों और ज्यादा भाईचारा के लिए तैयार हैं. अगर वो अपने उत्सर्जन में भारी कटौती के लिए तैयार नहीं होते तो, चीन को फिर भविष्य में होने वाले नुकसान का मुआवजा देना होगा.
मात्रा के हिसाब से चीन फिलहाल दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का सबसे ज्यादा उत्सर्जन करता है. 130 से ज्यादा विकासशील देशों का संगठन जी77 चीन के साथ मिल कर औद्योगिक देशों से एक कोष बनाने की मांग कर रहा है जो सूखा, बाढ़ या आंधी जैसी आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए होगा. ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसी आपदाएं बार बार आ रही हैं. इस मुद्दे पर चीन के रुख की आलोचना होती है क्योंकि चीन बड़ी आर्थिक ताकत और ग्रीनहाउस गैसों का प्रमुख उत्सर्जक होने के बाद भी इस मामले में जिम्मेदारी के साथ दानदाता के रूप में खुद को नहीं देखता. इस बीच जर्मनी ने तथाकथित ग्लोबल एडेप्शन फंड के लिए 6 करोड़ डॉलर का दान देने की घोषणा की है. जर्मन पर्यावरण मंत्री स्टेफी लेम्के और विदेश मंत्री बेयरबॉक ने मिस्र के शर्म अल शेख में इसकी घोषणा की. एडेप्टेशन फंड विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते समुद्री जलस्तर या भूमि क्षरण जैसी मुसीबतों का सामना करने के लिए धन मुहैया कराता है. पिछले साल जर्मनी ने इसके लिए 5 करोड़ डॉलर की रकम दी थी जो पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक अब तक का सबसे बड़ा दान है.
जर्मन विदेश मंत्री का कहना है कि जब जलवायु परिवर्तन से लड़ने की बात हो तो देशों यूरोपीय संघ के पीछे नहीं छिप सकते. जलवायु सम्मेलन में आखिरी समझौते के लिए बातचीत अब समय सीमा को पार कर अतिरिक्त समय में चली गई है लेकिन सभी देश किसी एक बिंदु पर सहमत नहीं हो सके हैं. इस साल का जलवायु सम्मेलन में मुख्य रूप से “हानि और नुकसान” का मुद्दा ही छाया रहा है. विकसित और विकासशील देशों के बीच यह मुद्दा लंबे समय से एक बड़े मतभेद का कारण रहा है. यूरोपीय संघ ने जलवायु परिवर्तन के कारण आपदाओं का सामना कर रहे गरीब और कमजोर देशों के लिए एक विशेष फंड की घोषणा की है. इसके बारे में अनालेना बेयरबॉक का कहना है कि सिर्फ उन्हीं देशों को इसका फायदा मिलना चाहिए, जिन्हें इसकी जरूरत है, न कि उन्हें, जो सिर्फ कागजों पर विकासशील देश हैं.
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