विवेक कुमार : वैज्ञानिकों का कहना है नाक में उंगली डालना अच्छी बात नहीं है. सिर्फ इसलिए नहीं कि अन्य लोगों को यह अच्छा नहीं लगता, बल्कि इसलिए भी कि इससे डिमेंशिया या अल्जाइमर्स हो सकता है. नाक में उंगली डालना एक ऐसी क्रिया है, जो करने वाले अनायास ही कर बैठते हैं और देखने
विवेक कुमार : वैज्ञानिकों का कहना है नाक में उंगली डालना अच्छी बात नहीं है. सिर्फ इसलिए नहीं कि अन्य लोगों को यह अच्छा नहीं लगता, बल्कि इसलिए भी कि इससे डिमेंशिया या अल्जाइमर्स हो सकता है. नाक में उंगली डालना एक ऐसी क्रिया है, जो करने वाले अनायास ही कर बैठते हैं और देखने वाले घिना जाते हैं. यह तो इस क्रिया का सामाजिक और व्यवहारिक पक्ष है. वैज्ञानिकों ने इसका एक स्वास्थ्यगत पक्ष भी खोजा है, जो डरावना हो सकता है.
एक शोध में पता चला है कि नाक में उंगली डालने की आदत से लोगों को अल्जाइमर्स और डिमेंशियाका भी खतरा हो सकता है. ऑस्ट्रेलिया की ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह रिसर्च की है. शोधकर्ताओं ने चूहों पर की रिसर्च में पाया कि बैक्टीरिया नाक की नली से होता हुआ चूहों के मस्तिष्क में पहुंच गया, जहां उसने ऐसे बदलाव पैदा किए जो अल्जाइमर्स के संकेत थे.
विज्ञान पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में छपा यह अध्ययन कहता है कलामीडिया न्यूमेनिए नाम का एक बैक्टीरिया मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है. यही बैक्टीरिया न्यूमोनिया के लिए जिम्मेदार होता है. हालांकि अधिकतर डिमेंशिया रोगियों के मस्तिष्क में भी यही बैक्टीरिया पाया गया है.
शोधकर्ताओं ने नाक की नली और मस्तिष्क को जोड़ने वाली नस को नर्वस सिस्टम में पहुंचने के रास्ते के तौर पर प्रयोग किया. ऐसा होने पर मस्तिष्क की कोशिकाओं ने एमिलॉएड बीटा प्रोटीन का उत्पादन कर प्रतिक्रिया दी. यही प्रोटीन अल्जाइमर्स के मरीजों के मस्तिष्क में बनता है.
नाक और मस्तिष्क को जोड़ने वाली यह नस हवा के संपर्क में होती है. यानी बाह्य वातावरण से मस्तिष्क के भीतरी हिस्सों की दूरी बहुत कम होती है. वायरस और बैक्टीरिया इस रास्ते से बहुत आराम से मस्तिष्क तक पहुंच सकते हैं.
चूहों पर हुआ यह अध्ययन क्लेम जोंस सेंटर फॉर न्यूरोबायोलॉजी और स्टेम सेल रिसर्च सेंटर में किया गया. सेंटर के प्रमुख प्रोफेसर जेम्स सेंट जॉन ने बताया, “हमने इसे एक मॉडल के तौर पर चूहों में होते देखा और यह मनुष्यों में संभावना का एक डरावना प्रमाण है.”
इस शोध का अगला चरण सिद्धांत का इंसानी मस्तिष्क पर परीक्षण करना है. प्रोफेसर सेंट जॉन कहते हैं, “हमें इसे मनुष्यों पर जांचना होगा और देखना होगा कि वहां भी यह रास्ता ऐसा ही प्रभाव डाल सकता है या नहीं. इस शोध का प्रस्ताव तो बहुत से लोगों ने दिया है लेकिन अभी तक किसी ने इसे पूरा नहीं किया है.”
शोधकर्ता प्रोफेसर जेम्स सेंट जॉन कहते हैं, “नाक में उंगली डालना और नाक के बाल तोड़ना अच्छी आदत नहीं है.” वह कहते हैं कि अगर ऐसा करते हुए कोई अपनी नाक की परत को नुकसान पहुंचा देता है तो बैक्टीरिया के मस्तिष्क में पहुंचने का खतरा बढ़ जाता है.
शोधकर्ताओं ने कहा कि सूंघने की शक्ति खो बैठने को अल्जाइमर्स रोग का शुरुआती संकेत माना जा सकता है. इसलिए वह सुझाव देते हैं कि 60 साल से ऊपर के लोगों का सूंघने की शक्ति का टेस्ट अल्जाइमर्स के शुरुआती संकेत के तौर पर होना चाहिए.
अल्जाइमर्स मस्तिष्क की एक बीमारी है जिसमें याद्दाश्त कमजोर या पूरी तरह नष्ट हो जाती है. इसका असर सोचने-समझने की क्षमता पर भी पड़ता है और एक वक्त ऐसा आता है जब इंसान रोजमर्रा के सामान्य काम करने की क्षमता भी खो बैठता है. अधिकतर लोगों में यह बीमारी उम्र के दूसरे हिस्से में नजर आने लगती है लेकिन 65 वर्ष की आयु के बाद इसका खतरा ज्यादा माना जाता है.
एक अनुमान के मुताबिक भारत में 40 लाख से ज्यादा लोगों को किसी ना किसी तरह का डिमेंशिया है जबकि पूरी दुनिया में साढ़े चार करोड़ लोग इससे पीड़ित हैं. इस बीमारी में मस्तिष्क का सीखने वाला हिस्सा यानी हिपोकैंपस सबसे पहले प्रभावित होता है. इसलिए याद रखना मुश्किल होता जाता है.
विज्ञान के मुताबिक आयु के अलावाकुछ और कारक भी हैं जो अल्जाइमर्स रोग की वजह बन सकते हैं. इनमें अनुवांशिकी सबसे अहम है. यानी, अगर माता-पिता या पूर्वजों में अल्जाइमर्स रोग रहा हो तो व्यक्ति को इसके होने की संभावना हो जाती है. कुछ शोध बताते हैं कि हृदय रोगों से पीड़ित लोग भी डिमेंशिया और अल्जाइमर्स का शिकार होने की ज्यादा संभावना के साथ जीते हैं. मस्तिष्क पर चोट लगने से भी ऐसा हो सकता है.
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