ललित मौर्या : बचपन में पढ़ा था कि एक स्वस्थ शरीर और मन के लिए शारीरिक गतिविधियां बहुत जरूरी होती हैं। देखा जाए तो हर दिन नियमित व्यायाम न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है लेकिन जिस तरह से दुनिया में आलस बढ़ रहा है और हम अपने सोफों पर बैठने
ललित मौर्या : बचपन में पढ़ा था कि एक स्वस्थ शरीर और मन के लिए शारीरिक गतिविधियां बहुत जरूरी होती हैं। देखा जाए तो हर दिन नियमित व्यायाम न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है लेकिन जिस तरह से दुनिया में आलस बढ़ रहा है और हम अपने सोफों पर बैठने के हद से ज्यादा आदी बनते जा रहे हैं, वो न केवल लोगों के स्वास्थ्य बल्कि देश को भी खोखला कर रहा है। इस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा जारी नई रिपोर्ट ‘ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट ऑन फिजिकल एक्टिविटी 2022’ से पता चला है कि जिस तरह से लोग शारीरिक रूप से शिथिल होते जा रहे हैं उसके चलते आने वाले 10 वर्षों में 50 करोड़ से ज्यादा लोग मोटापे, मधुमेह, हृदय रोग जैसी अनगिनत गैर-संचारी बीमारियों का शिकार बन जाएंगे।
रिपोर्ट के मुताबिक आज 80 फीसदी से ज्यादा किशोर और 27.5 फीसद वयस्क जरुरत के मुताबिक शारीरिक गतिविधियां नहीं करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा किया का एक नया अध्ययन दर्शाता है कि 11 से 17 वर्ष के 80 फीसदी से ज्यादा किशोर दिन में 60 मिनट भी शारीरिक गतिविधियां के लिए नहीं देते हैं। इसका खामियाजा स्वास्थ्य के रुप में चुकाना पड़ रहा है। अनुमान है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो शारीरिक शिथिलता के कारण पनपी इन बीमारियों के इलाज पर हर साल 2.23 लाख करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च करने होंगें। डब्लूएचओ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार गैर-संक्रामक बीमारियां हर साल 4.1 करोड़ लोगों की जान ले रही हैं। जो वैश्विक स्तर पर होने वाली कुल मौतों का करीब 74 फीसदी हिस्सा है। वहीं इनमें से 77 फीसदी मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में दर्ज की जाती हैं।
पता चला है कि गैर संक्रामक बीमारियों के करीब आधे यानी 47 फीसदी मामले उच्च रक्तचाप की देन हैं, जबकि 43 फीसदी के लिए बढ़ता अवसाद जिम्मेवार है। चिंता का विषय तो यह है कि इनमें से करीब तीन-चौथाई मामले निम्न और उच्च-मध्यम आय वाले देशों में सामने आएंगें। इनमें से कई देश ऐसे हैं जिनके पास इनसे बचने के लिए न तो पर्याप्त सुविधाएं है और न ही पर्याप्त नीतियां। वहीं इसका सबसे ज्यादा आर्थिक नुक्सान उच्च आय वाले देशों पर पड़ेगा, जो अपने स्वास्थ्य खर्च का करीब 70 फीसदी हिस्सा उन बीमारियों पर खर्च करेंगें, जिन्हें शारीरिक मेहनत और व्यायाम की मदद से दूर किया जा सकता है। 194 देशों से प्राप्त आंकडों पर आधारित इस रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र में प्रगति की रफ्तार धीमी रही है। देखा जाए तो ऐसा नहीं है कि दिन में कड़ा व्यायाम करना है जरुरी है। रिसर्च से पता चला है कि हल्का व्यायाम, साइकिल चलाना और यहां तक कि पैदल चलना भी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। महामारी के दौर में भी लोगों ने नियमित शारीरिक गतिविधियों के महत्व को पहचाना था। हालांकि उस समय भी लोगों के बीच इससे जुड़ी सुविधाओं तक पहुंच में व्याप्त असमानताओं को देखा गया था।
यह सही है कि जब तक लोगों में खुद से बदलाव की इच्छा नहीं जागेगी, तब तक स्थिति नहीं बदलेगी। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इसके लिए सरकार और उसकी नीतियों भी बहुत मायने रखती हैं। इसके बावजूद 40 फीसदी से भी कम देशों ने प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में शारीरिक गतिविधियों के प्रबंधंन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रोटोकॉल होने की बात स्वीकारी है। देखा जाए तो लोग तब तक स्वस्थ जीवनशैली को नहीं अपनाएंगें,जब तक सरकार बुनियादी ढांचे में उसके लिए प्रावधान नहीं करेंगी। उदाहरण के लिए यदि पार्क ही नहीं हैं तो क्या लोग सड़कों पर वाहनों के बीच व्यायाम करेंगें। इसी तरह सुरक्षित पैदल चलने और साइकिल लेन की व्यवस्था की जिम्मेवारी सरकारों की है। रिपोर्ट की मानें तो 50 फीसदी से भी कम देशों में राष्ट्रीय स्तर पर शारीरिक सक्रियता को लेकर नीति है, वहीं हैरानी की बात है कि इनमें से 40 फीसदी से भी कम देशों में यह लागू की गई है। वहीं दुनिया के केवल 30 फीसदी देशों में सभी आयु वर्गों के लिए राष्ट्रीय शारीरिक सक्रियता गाइडलाइन उपलब्ध है।
आंकड़ों के अनुसार लगभग सभी देशों ने वयस्कों द्वारा की जा रही कसरत की निगरानी संबंधी प्रणाली होने की बात कही है, लेकिन केवल 75 फीसदी ने किशोरों की सक्रियता पर नजर रखने की बात स्वीकारी है। वहीं पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों के सम्बन्ध में यह आंकड़ा 30 फीसदी से भी कम है। वहीं यदि परिवहन संबंधी नीतियों को देखें तो दुनिया में केवल 40 फीसदी देशों ने सड़क निर्माण के समय चलने-फिरने और साइकिल संबंधी जरूरी मानकों को ध्यान में रखा है। ऐसे में डब्लूएचओ ने व्यायाम से प्राप्त होने वाले लाभों को बढ़ावा देने के लिए सरकारों से तत्काल कार्रवाई की बात कही है। रिपोर्ट का कहना है कि देशों को उन नीतियों को विकसित व लागू करने में तेजी लाने की जरूरत है जिनसे हृदय गति बढ़ने और रोगों की रोकथाम में मदद मिल सके। इससे पहले से ही आर्थिक बोझ में दबी सरकारों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ते भार कम करने में मदद मिलेगी।
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