इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र दिल्ली द्वारा प्रकाशित कुमाऊं की अनूठी रामलीला पर आधारित पुस्तक ओपेरामा कुमाऊंनी रामलीला का लोकार्पण गत दिवस कला केंद्र के समवेत सभागार में किया गया। इंडियन ओशन बैंड से जुड़े रहे प्रसिद्ध गायक हिमांशु जोशी द्वारा संकलित और लिखित इस पुस्तक का लोकार्पण प्रसिद्ध लेखक और अध्यापक प्रो. पुष्पेश पंत,
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र दिल्ली द्वारा प्रकाशित कुमाऊं की अनूठी रामलीला पर आधारित पुस्तक ओपेरामा कुमाऊंनी रामलीला का लोकार्पण गत दिवस कला केंद्र के समवेत सभागार में किया गया। इंडियन ओशन बैंड से जुड़े रहे प्रसिद्ध गायक हिमांशु जोशी द्वारा संकलित और लिखित इस पुस्तक का लोकार्पण प्रसिद्ध लेखक और अध्यापक प्रो. पुष्पेश पंत, कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय, कला केंद्र के सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, कला केंद्र के आदि दृश्य के विभागाध्यक्ष डॉ. रमाकर पंत ने किया।
उत्तराखंड की अनूठी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाली कुमाऊंनी रामलीला 10 दिनों तक चलती है और यह संसार की सबसे लंबी ओपेरा प्रस्तुतियों में से एक है। इस कार्यक्रम के तहत हिमांशु जोशी ने कुमाऊंनी रामलीला में गाए जाने वाला राम का सेहरा गाया। इसके अलावा राग पीलू, खमाज, झिझोंटी, बिलावल सहित कई रागों में रामलीला में गाए जाने वाले गीतों, पदों की प्रस्तुति दी। यही नहीं राजस्थान में गाया जाने वाला मांड राग पर भी प्रस्तुत दी।
कुमाऊंनी रामलीला और अपनी पुस्तक के बारे में विस्तार से बात रखते हुए हिमांशु जोशी ने कहा कि 1842 में अल्मोड़ा के बद्रीश्वर मोहल्ले में इसका पहला भव्य आयोजन हुआ था। लेकिन मेरा मानना है कि इतनी बड़ी कृति को बनाना आसान नहीं था। इसको संकलित करने में कम से कम 30-40 से 50 साल लगे होंगे। उन्होंने कहा कि इसकी खासियत है कि यह कुमाऊंनी भाषा में नहीं है। इस कृति में मूल रचनाएं गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस से ली गई हैं। लेकिन बहुत से बुद्धिजीवियों, संगीतप्रेमियों ने इसमें समय-समय पर योगदान दिया। इसे लिखा, कम्पोज किया और इस कृति को इतना सुंदर रूप दे दिया कि आजतक ये कृति जीवित है और बहुत खूबसूरत तरीके से इसका प्रदर्शन होता है। इसमें हिन्दी, ब्रज, अवधी और उर्दू भाषा के शब्द भी खूब शामिल हैं। इस रामलीला के अभ्यास को ‘तालीम कहा जाता है। यह सिर्फ अल्मोड़ा में स्थित नहीं है, पिथौरागढ़ का अपना रंग अलग है, नैनीताल का रंग अलग है। ये निकला अल्मोड़ा से है लेकिन पिथौरागढ़ वालों ने इसमें चार चांद लगा दिए हैं। इसमें जो रचनाएं कंपोज की गई हैं, उसमें पहाड़ के राग बहुत कम है। यहां से जो लोग बाहर गए और वहां से जो राग सुनकर आए, उसका प्रयोग इसमें किया। यह उत्तराखंड की अनूठी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है।
पुस्तक का परिचय देते हुए इसके संपादक डॉ. रमाकर पंत ने कहा कि 2007 में इसके अंतर्गत 30 से अधिक जीवंत परम्पराओं को डॉक्यूमेंट किया गया। ओपेरामा कुमाऊंनी रामलीला इस जीवंत श्रृंखला की पहली वृहत परियोजना थी। जिसके प्रकाशन में 14 वर्ष का लंबा समय लग गया। इस रामलीला में संगीत की मधुरता और भारतीय पारसी नाट्यशैलियों का सुंदर चित्रण है। मुख्य वक्ता प्रो. पुष्पेश पंत ने कहा कि कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जो आपके हाड़-मांस में होती हैं। कुमाऊंनी रामलीला वहां के लोगों के लिए ऐसी ही परम्परा है। प्रो. पंत ने पुस्तक के लेखक और गायक हिमांशु जोशी की प्रशंसा करते हुए कहा कि कुमाऊंनी रामलीला पर ऐसी पुस्तक का काम उनके अलावा और कोई नहीं कर सकता था, जिनका कंठ सुरीला है और जिसने अपनी विरासत में बहुत कुछ पाया है और विरासत को संभाल कर रखा है। डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि यह पुस्तक हमारे भावों को स्पंदित कर पाए, इसलिए इसे पोथी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता रामबहादुर राय ने की और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. के. अनिल कुमार ने किया।
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