पारी : पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया का ज़रूरी आह्वान

पारी : पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया का ज़रूरी आह्वान

पी. साईंनाथ : हम सरकारों की मदद के बिना भी पत्रकारिता कर सकते हैं – और करेंगे. हम आपके बिना यह नहीं कर सकते. अपने देश को कवर करें, जानें कि कैसे. ग्रामीण भारत पर आधारित जानकारी का अनोखा भंडार तैयार करने में मदद के लिए हमसे जुड़ें. आप हमें अपने बारे में कुछ बताकर

पी. साईंनाथ : हम सरकारों की मदद के बिना भी पत्रकारिता कर सकते हैं – और करेंगे. हम आपके बिना यह नहीं कर सकते. अपने देश को कवर करें, जानें कि कैसे. ग्रामीण भारत पर आधारित जानकारी का अनोखा भंडार तैयार करने में मदद के लिए हमसे जुड़ें. आप हमें अपने बारे में कुछ बताकर बातचीत की शुरुआत कर सकते हैं. भारतीय भाषाओं में कॉन्टेंट का अनुवाद करके हमारा सहयोग करें. कृपया इस प्रोफ़ाइल फ़ॉर्म को भरकर, अपने हुनर और दिलचस्पियों को जानने में हमारी मदद करें. क्या आपके पास चेहरों के ज़रिए भारत की विविधता को रिकॉर्ड करने वाले, अकेले और सबसे बड़े डेटाबेस में योगदान के लिए चेहरों की तस्वीरें हैं?
क्या आपका कॉन्टेंट अपलोड के लिए तैयार है? कॉन्टेंट पब्लिश होने की ज़रूरी शर्तें पूरी करता है या नहीं, यह पक्का करने के लिए पारी के कॉन्टेंट से जुड़े दिशा-निर्देश ज़रूर पढ़ें. आप पारी के जारी प्रोजेक्ट की फ़ंडिंग करके मदद कर सकते हैं. या फिर आप ख़ुद अपने गृह राज्य या ज़िले से ग्रामीण भारत के किसी पहलू पर आधारित प्रोजेक्ट का पिच भेज सकते हैं, जो अपेक्षा का शिकार रहा है. ओडिशा के कालाहांडी के तामी के चेहरे से भारतीयता झलकती है. इसी तरह, तमिलनाडु के कांचीपुरम के राजेंद्रन के चेहरे में भी भारतीयता की छाप है. अंडमान के ओहामे और अरुणाचल प्रदेश के मिची येरिंग का चेहरा भी कुछ ऐसा ही है. और इनमें से किसी का भी चेहरा एक-दूसरे से बिल्कुल भी नहीं मिलता.
पारी का लक्ष्य देश के हर एक ब्लॉक और ज़िले से भारतीय चेहरे को रिकॉर्ड करना है. जी हां – हज़ारों-लाखों चेहरे, जिनके ज़रिए भारत की अद्भुत विविधता को कवर किया सकेगा. हमारा लक्ष्य हर एक ज़िले से (और हर ज़िले के हर एक ब्लॉक से) कम से कम एक वयस्क पुरुष, एक वयस्क महिला, और एक बच्चे या किशोर की तस्वीर को जगह देना है. यह एक बहुत बड़ा काम है, जिसे पूरा होने में वर्षों लगेंगे और इसमें बड़े स्तर पर लोगों की भागीदारी की ज़रूरत पड़ेगी. इसमें कोई भी भाग ले सकता है, बशर्ते कि तस्वीर अच्छी हो.
भारत की युवा, मीडिया से घिरी पीढ़ियां अपने देश के बारे में बहुत कम जानती हैं, लेकिन उन्हें कुछ महानगरों और क़स्बों के एलीट वर्ग के बारे में बहुत कुछ पता होता है. अधिनायकवादी स्वामित्व वाले, व्यावसायिक रूप से संचालित मीडिया के लिए, देश को नज़रअंदाज़ करना उनकी मानक संचालन प्रक्रिया का हिस्सा बन गया है. सेंटर फ़ॉर मीडिया स्टडीज़ (सीएमएस, दिल्ली) के आंकड़े हमें बताते हैं कि नई दिल्ली की ख़बरें प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों के पहले पेज पर छापी जाने वाली ख़बरों में 66 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखती हैं. सीएमएस ने यह भी पाया कि साल 2014-15 में पहले पेज की ख़बरों में, ग्रामीण भारत की केवल 0.24 प्रतिशत ख़बरें ही शामिल थीं. टीवी चैनलों का भी यही हाल है. भारतीय पत्रकारिता के इस सबसे महत्वाकांक्षी कदम को आगे बढ़ाने में पारी को आपकी मदद की ज़रूरत है.
पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया का लक्ष्य, देश के 95 इलाक़ों में से हर एक में पारी के एक फ़ेलो को तैनात करना है. इनमें से ज़्यादातर इलाक़े ‘नेशनल’ (कॉर्पोरेट पढ़ें) मीडिया से अछूते हैं. इनमें से कोई भी फ़ेलो बन सकते हैं. और इन क्षेत्रों के निवासी भी. ‘इलाक़े’ से हमारा मतलब प्राकृतिक या ऐतिहासिक रूप से बदलते क्षेत्रों से है. उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में रोहिलखंड, बुंदेलखंड, ब्रज, अवध, सोनभद्र, और भोजपुर (जो बिहार तक फैला हुआ है) इलाक़े हैं. पारी का हर फ़ेलो एक ख़ास इलाक़े में एक साल तक काम करता/करती है, और स्थानीय लोगों और समुदायों के बीच कम से कम तीन महीने तक का पूरा समय बिताते/बिताती हैं.
लगभग 60 महीनों के दौरान, पारी देश के हर एक हिस्से से, आम लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर रिपोर्ट, ऑडियो स्टोरी, वीडियो, डॉक्यूमेंट्री फ़िल्में, तस्वीरें, संगीत, और ‘बोलते एल्बम’ तैयार करना चाहता है. यह डेटाबेस सही मायनों में भारतीयों का प्रतिनिधित्व करेगा, ख़ास तौर पर 83.3 करोड़ ग्रामीण भारतीयों के श्रम, शिल्प, कहानी, गीत, कविता, कला वगैरह के बारे में. हमारे लिए काम करने वाले फ़ेलो का नेटवर्क देश की सामाजिक संरचना को मुताबिक़ होगा. लगभग 100 फ़ेलो में से आधी महिलाएं होंगी. दलित, आदिवासी, और अल्पसंख्यक समुदाय के पत्रकारों का निष्पक्ष प्रतिनिधित्व किया जाएगा. बहुत सारी कहानियां ख़ुद आम लोगों द्वारा कही जाएंगी. अन्य विरासतों के अलावा, यह डेटाबेस हमारे सभी बच्चों-छात्रों की पीढ़ियों के लिए, उनके आसपास की दुनिया के बारे में जीवंत टेक्स्टबुक सरीखा होगा. यह देश को एक ऐसा संग्रह देगा जिसे पहले कभी नहीं देखा गया.
पारी एक बहुभाषी वेबसाइट है. इस वेबसाइट पर आपको ऐसे लेख मिलेंगे, जिनमें सबसे ऊपर ‘भाषा चुनें’ बटन मौजूद है. बहुत से लेख कई भाषाओं में उपलब्ध हैं, बल्कि कुछ तो 10 भाषाओं में भी हैं. हमारी कोशिश है कि हम आर्टिकल की संख्या को बढ़ाने के साथ-साथ, भाषाओं की संख्या भी बढ़ाएं. पारी के ऑडियो प्रोजेक्ट का भी उद्देश्य यही है कि भारत में बोली जाने वाली 780 भाषाओं में से हर एक में बोलने वालों को रिकॉर्ड किया जाए. एक फ़ेलो के प्रायोजक बनें. एक फ़ेलोशिप की लागत 2 लाख रुपए है. इसके अलावा, रिकॉर्डिंग, दस्तावेज़ीकरण, मिलान, एडिटिंग (टेक्स्ट और वीडियो), प्रशिक्षण आदि से जुड़ा ख़र्च शामिल है. पारी फ़ेलोशिप का कुल अनुमानित ख़र्च (हर साल) है 80 लाख रुपए. इन तरीक़ों से कोइ व्यक्ति अपना योगदान दे सकता है.
अगर आप कोई इक्विपमेंट (नया या पुराना) भेजना चाहते हैं, जिसका इस्तेमाल पारी के फ़ेलो और ग्रामीण साथी कर सकें, तो कृपया हमसे संपर्क करें. इनमें, स्टिल और वीडियो कैमरा, ऑडियो डिजिटल रिकॉर्डर, लैपटॉप, हार्ड डिस्क, और दूसरे इक्विपमेंट शामिल हैं. संदेश को अपने नेटवर्क में शेयर करें. अपने दोस्तों को इस अभियान से जुड़ने व योगदान देने के लिए कहें. देश को कवर करने में हमारी मदद करें. ग्रामीण भारत पर आधारित जानकारी का अनोखा भंडार तैयार करने के लिए हमसे जुड़ें. तमाम क़ीमत चुकाने के साथ-साथ, पारी का कोर ग्रुप और वॉलंटियर, व्यक्तिगत रूप से काफ़ी सारे ख़र्चे ख़ुद उठाता है. हम आपसे पत्रकारिता की इस कोशिश को सफल बनाने के लिए, आर्थिक सहयोग की अपील करते हैं. हम मानते हैं कि पत्रकारिता सरकारों और कॉर्पोरेशन के बिना भी हो सकती है; और हम ऐसा करके दिखाएंगे भी. लेकिन, हम आपके बिना यह नहीं कर सकते.

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