अफ्रीका के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी दवा पर परीक्षण किया है, जिसकी एक खुराक छह महीने तक मलेरिया नहीं होने देती. वैसे तो मलेरिया के खिलाफ वैक्सीन तैयार करने की दिशा में भी काम काफी आगे बढ़ चुका है लेकिन इस घातक बीमारी से निपटने के लिए यह नया तरीका है, जिसमें लोगों को कम
अफ्रीका के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी दवा पर परीक्षण किया है, जिसकी एक खुराक छह महीने तक मलेरिया नहीं होने देती. वैसे तो मलेरिया के खिलाफ वैक्सीन तैयार करने की दिशा में भी काम काफी आगे बढ़ चुका है लेकिन इस घातक बीमारी से निपटने के लिए यह नया तरीका है, जिसमें लोगों को कम अवधि के लिए मलेरिया से सुरक्षित बनाने पर काम किया जा रहा है. 2020 में मलेरिया से दुनिया में 6,20,000 लोगों की मौत हुई जबकि 24.1 करोड़ लोग बीमार हुए. इनमें से ज्यादातर अफ्रीका में रहने वाले 5 साल से कम उम्र के बच्चे थे. विश्व स्वास्थ्य संगठन जल्दी ही बच्चों के लिए मलेरिया की वैक्सीन को पेश करने वाला है. हालांकि यह वैक्सीन सिर्फ 30 फीसदी कामयाब है और इसकी चार खुराक लेनी होती हैं.
वैक्सीन का मकसद मनुष्य की प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाना होता है, ताकि मलेरिया न हो. नया अध्ययन एक नए रास्ते पर चल रहा है. इसमें लोगों को मलेरिया से लड़ने वाले एंटीबॉडी दिए जाते हैं. प्रयोगशाला में तैयार किए गए गए ये एंटीबॉडी शरीर द्वारा अपने आप एंटीबॉडी तैयार करने का इंतजार नहीं करते और कृत्रिम रूप से शरीर में डाले जाते हैं. माली के बामको की यूनिवर्सिटी ऑफ साइंसेज, टेक्नीक्स एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले डॉ. कसूम कायेंताओ इस शोध का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने कालिफाबोगू और टोरोडो गांवों में परीक्षण किए. वह कहते हैं कि जो वैक्सीन उपलब्ध है, वह समुचित संख्या में लोगों की सुरक्षा नहीं करती. डॉ. कायेंताओ बताते हैं, हमारा शोध दिखाता है कि मलेरिया के मौसम में इन गांवों में लोगों को औसतन दिन में दो बार संक्रामक मच्छर काटता है.
कायेंताओ बताते हैं कि परीक्षण में लोगों को एंटीबॉडीज की वह खुराक दी गई, जिसे अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ में तैयार किया गया है. इसे ड्रिप के जरिए लोगों के शरीर में पहुंचाया गया. हालांकि यह तरीका मुश्किल है क्योंकि इस तरीके से बड़ी आबादी को दवा नहीं दी जा सकती लेकिन इससे मिले उत्साहजनक नतीजे टीके के विकास का रास्ता खोल सकते हैं. इसलिए शोधकर्ता इसे वयस्कों के अलावा बच्चों पर भी टेस्ट कर रहे हैं.
अमेरिका में सरकार द्वारा प्रायोजित अध्ययन के नतीजे बीते सप्ताह प्रकाशित हुए हैं. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसन में छपा यह शोध सिएटल में एक चिकित्सीय सम्मेलन में भी पेश किया गया. शोध कहता है कि एंटीबॉडी अलग तरीके से काम करते हैं. वे मलेरिया फैलाने वाले मच्छर से मनुष्य के शरीर में पहुंचने वाली परजीवियों के जीवन चक्र को बाधित करते हैं. ये एंटीबॉडी अविकसित परजीवियों को लीवर में पहुंचने से पहले निशाना बनाते हैं, ताकि वे लीवर तक पहुंच ही ना पाएं क्योंकि वहीं जाकर ये परजीवी विकसित होते हैं और कई गुणा बढ़ जाते हैं.
एंटीबॉडीज की यह खुराक वैज्ञानिकों ने एक स्वयंसेवी से ली थी, जिसने मलेरिया की वैक्सीन लगवाई थी. रिसर्च में शामिल माली के 330 वयस्कों में से कुछ को एंटीबॉडीज की खुराक अलग-अलग मात्रा में दी गई और कुछ को दिखावटी दवा दी गई. 24 हफ्तों तक हर दो हफ्ते में इन लोगों की मलेरिया के लिए जांच हुई. जो बीमार हुआ, उसका इलाज किया गया.
खून की जांच करने पर 20 ऐसे लोगों में संक्रमण पाया गया, जिन्हें ज्यादा खुराक दी गई थी. कम खुराक वाले 39 लोगों में संक्रमण हुआ जबकि दिखावटी दवा पाने वाले 86 लोगों को मलेरिया हो गया. शोधकर्ता कहते हैं कि दिखावटी दवा की तुलना में अधिक खुराक 88 फीसदी प्रभावशाली रही. कम खुराक 75 प्रतिशत प्रभावशाली रही.
इस शोध के नतीजे में कहा गया है कि मलेरिया से सुरक्षा कई महीने तक बनी रह सकती है. रिपोर्ट कहती है कि इस दवा को उसी तरह इस्तेमाल करने का विचार है, जैसे मलेरिया से बचने के लिए अन्य उपाय प्रयोग किए जाते हैं, जैसे कि मलेरिया की गोली, मच्छरदानी या वैक्सीन. प्रयोगशाला में तैयार ये एंटीबॉडी एक मौसम में एक बच्चे को सिर्फ 5 डॉलर (करीब 400 रुपये) की कीमत पर दिए जा सकते हैं.
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