वैसे तो भारत कपास उत्पादन के क्षेत्र में नंबर एक पर है लेकिन यहां महाराष्ट्र से हरियाणा तक कपास उत्पादक किसानों की दीन दशा से पूरी दुनिया परिचित है, जबकि यहां न सिर्फ कपास की खेती, उसके उत्पादन, बल्कि इससे जुड़े उद्योगों से भी लाखों लोगों की आजीविका जुड़ी है. आंकड़ों की मानें तो भारत
वैसे तो भारत कपास उत्पादन के क्षेत्र में नंबर एक पर है लेकिन यहां महाराष्ट्र से हरियाणा तक कपास उत्पादक किसानों की दीन दशा से पूरी दुनिया परिचित है, जबकि यहां न सिर्फ कपास की खेती, उसके उत्पादन, बल्कि इससे जुड़े उद्योगों से भी लाखों लोगों की आजीविका जुड़ी है. आंकड़ों की मानें तो भारत में हर साल करीब 62 लाख टन कपास पैदा होती है, जो पूरी दुनिया के कपास उत्पादन का कुल 38 प्रतिशत है. वहीं कपास के उत्पादन में चीन दूसरे नंबर पर है. हरियाणा में कपास की खेती करने में किसान रुचि नहीं दिखा रहे हैं। मार्केट में अच्छा भाव मिलने के बावजूद भी किसानों का कपास से मोह भंग हो चुका है। मार्केट में नरमा कपास इस समय 10 से 12 हजार रुपये क्विंटल बिक रही है। इसके बावजूद किसान कपास की फसल की बिजाई करने में ज्यादा रुचि नहीं ले रहे। जिसके कारण पिछले साल से 40 से 50 प्रतिशत तक कपास का रकबा घट सकता है। पंजाब में कपास की फसल लगातार दूसरे साल भीषण कीट के प्रकोप का सामना कर रही है। राज्य में लगभग आधी फसल सफेद मक्खी के हमले की चपेट में रही, जबकि पिंक बॉलवर्म (गुलाबी कीट) ने अन्य जगहों पर कपास को प्रभावित किया है।
मध्य प्रदेश में पिछले कुछ वर्षो में कपास के भाव में उछाल देखने को मिला था, जिसके कारण इस वर्ष क्षेत्र में कपास का रकबा बढ़ा है. शुरुआती दौर में कपास की उपज बेहतर स्थिति में थी लेकिन लगातार बारिश ने किसानों को और परेशानी में डाल दिया। फसल खराब हो गई। मजदूर न मिलने के कारण समय पर कपास की चुनाई भी नहीं हो पाई। लगातार पर्व-त्योहार के चलते मंडियां भी बंद रहीं। किसान अपनी उपज नहीं ला पाए। कई किसानों के कपास में नमी आ गई तो भाव कम मिलने का अंदेशा सताने लगा। व्यापारियों की हड़ताल के कारण मंडी में कपास का बिक्री ठप रही। अब दीपावली का त्योहार सामने है और कपास की उपज घरों में पड़ी है। किसानों को दोहरी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। किसानों के सामने अगली फसल गेहूं, चने को बोनी की भी चुनौती है। अब मध्य प्रदेश का कपास बड़े पैमाने पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र व गुजरात में बिकने के लिए जा रहा है। क्योंकि महाराष्ट्र व गुजरात में मंडी टैक्स 0.25 से 0.50 प्रतिशत है। इस कारण मप्र को राजस्व की भी हानि हो रही है। महाराष्ट्र के धुले जिले में बारिश के कारण कपास की फसलों का बढ़े पैमाने पर नुकसान हुआ हैं. जिले में 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्र बारिश से प्रभावित हुई है. साथ ही फसलों पर बढ़ते कवक रोग से किसान चिंतित हैं.
पड़ोसी देश पाकिस्तान के कपास उत्पादक किसानों की बात करें तो वे महंगे बीज, खाद और कीटनाशक इस्तमाल किए थे, लेकिन बाढ़ ने सब लील लिया. वे अपने छोटे छोटे खेतों पर औंधी पड़ी कपास की फसल दिखाते हुए रुआंसे हो जाते हैं.
जलवायु परिवर्तन के कारण ज्यादा विनाशकारी हुई बाढ़ ने जुलाई और अगस्त में पाकिस्तान के एक बहुत बड़े हिस्से को पानी में डुबो दिया. करीब एक तिहाई कपास की फसल बर्बाद हो गई. दसियों लाख किसानों, मजदूरों और दूसरे लोगों का रोजगार छिन गया. यहां पैदा होने वाला कपास कपड़ा उद्योग को जाता है. पाकिस्तान को निर्यात से होने वाली कमाई में 60 फीसदी हिस्सेदारी कपड़ा उद्योग की है. कपास की सप्लाई में कमी आने से कई मिलें बंद हो गई हैं और लाखों लोगों के नौकरी जाने का खतरा पैदा हो गया है.
ऑल पाकिस्तान टेक्सटाइल मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के वरिष्ठ अधिकारी कामान अरशद का कहना है कि बहुत सारी मिलें आंशिक क्षमता के साथ चल रही हैं या फिर बंद हो रही हैं क्योंकि अच्छी क्वॉलिटी का कच्चा माल नहीं मिल रहा है. आर्थिक हालात बुरे हो गए हैं. मुझे डर है कि सरकार की तरफ से कोई सामाजिक सुरक्षा या सहायता नहीं मिलने के कारण 20-25 फीसदी कामगारों की नौकरी जाएगी. मुल्तान के टेक्सटाइल हब में संघ के प्रतिनिधी मुसव्विर हुसैन कुरेशी बताते हैं कि करीब 200 मिलें बंद हो गई हैं. अरशद के मुताबिक इतनी ही संख्या में मिलें आंशिक रूप से चल रही हैं या फिर बंद हो गई हैं. पाकिस्तान के कपास उगाने वाले इलाकों में किसान पहले ही अपने नुकसान का हिसाब लगा रहे हैं. इसकी वजह से कई तरह के कामगारों पर असर हो रहा है. ट्रक ड्राइवरों के पास बहुत से इलाकों में कुछ ढुलाई करने को नहीं है और कपास छीलने, बीज निकालने और रुई से गंदगी साफ करने में रोजगार पाने वाले लोग भी खाली बैठे हैं.
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