भारत के कई शहरों में हरी सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं. भीषण गर्मी के कारण फसलों के उत्पादन पर असर पड़ा. टमाटर, आलू और प्याज के बढ़ते दाम से आम लोग परेशान हैं. लेकिन, क्या बढ़ी हुई कीमतों का फायदा किसानों को होता है. नोएडा के रविवार बाजार में जब डॉ. शशि राव
भारत के कई शहरों में हरी सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं. भीषण गर्मी के कारण फसलों के उत्पादन पर असर पड़ा. टमाटर, आलू और प्याज के बढ़ते दाम से आम लोग परेशान हैं. लेकिन, क्या बढ़ी हुई कीमतों का फायदा किसानों को होता है. नोएडा के रविवार बाजार में जब डॉ. शशि राव पूरे हफ्ते के लिए सब्जी खरीदने के लिए गईं तो टमाटर के दाम ने उनको हैरान कर दिया. एक महीने पहले तक जो टमाटर 40 से 50 रुपये प्रति किलो बिक रहा था, वहीं अब उसके दाम 100 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए हैं.
डॉ. राव कहती हैं, “मिडिल क्लास परिवार तो एक किलो टमाटर के लिए 100 रुपये दे सकता है, लेकिन जरा उन लोगों की सोचिए जो गरीब हैं और उनकी आमदनी सीमित है. वे लोग अपना घर कैसे चलाएंगे. हम लोग भी बढ़ती कीमतों से परेशान जरूर होते हैं, क्योंकि हमारा घर चलाने का बजट तो जरूर इससे प्रभावित होता है. सब्जी के दाम के अलावा हाल के दिनों में दूध के दाम भी बढ़ गए.”
टमाटर ही नहीं प्याज और आलू के दाम भी हाल के दिनों में बढ़े हैं और वे खुदरा बाजार में 40 से 50 रुपये प्रति किलो बिक रहे हैं. टमाटर की कीमतें बढ़ने के पीछे भीषण गर्मी और ताप लहर बड़ी वजह है. अप्रैल से लेकर जून के महीने में पड़ी भीषण गर्मी की वजह से टमाटर की फसल प्रभावित हुई. इस कारण मुख्य टमाटर उत्पादक राज्यों से सप्लाई कम हुई. जिसका असर खुदरा बाजार में दिख रहा है.
भारत में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के राज्यों में टमाटर का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है. लेकिन अप्रैल और जून के बीच इन राज्यों में पड़ी भीषण गर्मी के कारण टमाटर की फसल पर असर पड़ा, इसके अलावा हीटवेव के कारण कई राज्यों में टमाटर की खड़ी फसल खराब हो गई.
महाराष्ट्र के बीड जिले के “किसान पुत्र आंदोलन” के नेता अमर हबीब कहते हैं कि टमाटर हो या प्याज उसके दाम बढ़ने से किसानों को फायदा नहीं होता है. उन्होंने कहा, “हमारे देश में किसानों से जुड़े तीन कानून हैं. लोग जो हैं सिर्फ दाम को देखते हैं लेकिन जिस कारण पूरी व्यवस्था खड़ी हुई है उस पर लोग गौर नहीं करते.”
हबीब कहते हैं, “पहला लैंड सीलिंग एक्ट है, उसके कारण जमीनों के बहुत छोट-छोटे टुकड़े हो गए हैं. अब वह आर्थिक रूप से व्यवहार्य भी नहीं रही. सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाले किसानों में से 94 प्रतिशत किसान छोटे जमीन वाले होते हैं. क्योंकि फसल का दाम मिलने के बाद भी किसान अपना परिवार नहीं चला पाते हैं. दूसरे नंबर पर आवश्यक वस्तु कानून, जिससे सरकार को बाजार में दखल देने का अधिकार दिया गया है. इस कानून के तहत सरकार कुछ चीजों के दाम बढ़ाने के लिए दखल देती है और खासकर किसानों की फसलों के दाम गिराने के लिए दखल देती है क्योंकि इसका असर मतदान पर होता है.”
हबीब बताते हैं, “आयात-निर्यात का कानून, मार्केट कमेटी एक्ट जैसे कानून जो आवश्यक वस्तु एक्ट के गर्भ से निकले हैं, जिसमें सरकार को अधिकार मिल गया है कि वह किसी भी वस्तु के भाव को नियंत्रण कर सकती है. इन कानून के कारण किसानों का ही नुकसान होता है उन्हें उचित भाव नहीं मिल पाता है. अगर ये कानून रद्द हो जाएंगे तो किसानों का ही फायदा होगा.”
हबीब का कहना है कि फसलों के दाम से निकलकर इन कानूनों पर चर्चा करने की जरूरत है. उन्होंने कहा, “हमें दाम से निकलकर जिसके कारण पूरी व्यवस्था बनी हुई है उसपर विचार करना होगा. आपके खेत में सोना भी निकल जाएगा तो सरकार उसका दाम गिरा देगी. ये अधिकार सरकार को उन कानूनों के तहत मिला हुआ है.”
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