वैसे तो हिंदी साहित्य जगत के सूर्य कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला लिख गए कि “दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूं आज जो नहीं कही“, लेकिन सूर्य नारायण के शब्दों में, “यह तस्वीर इलाहाबाद में, कटरा चौराहे पर स्थित लक्ष्मी टॉकीज़ (अभी बंद है) की है. महाकवि निराला, पृथ्वीराज कपूर का नाटक देखने के
वैसे तो हिंदी साहित्य जगत के सूर्य कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला लिख गए कि “दुख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूं आज जो नहीं कही“, लेकिन सूर्य नारायण के शब्दों में, “यह तस्वीर इलाहाबाद में, कटरा चौराहे पर स्थित लक्ष्मी टॉकीज़ (अभी बंद है) की है. महाकवि निराला, पृथ्वीराज कपूर का नाटक देखने के लिए आमंत्रित किए गए। उनको बुलाने पृथ्वीराज कपूर स्वयं दारागंज गए थे। निराला ने सुतली से पृथ्वीराज कपूर की छाती नापी. छाती चौड़ी थी. निराला जी ख़ुश हो गए। बोले : ‘ज़रूर आऊँगा.’ उनको लेने बग्घी गई थी. उनके आने तक नाटक शुरू नहीं हुआ.”
श्याम बिहारी श्यामल के शब्दों में, “आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने अपनी पुस्तक ‘नाट्य सम्राट’ में एक विशिष्ट चित्र दिया है. इसमें महाकवि निराला और पृथ्वीराज एक साथ खड़े दिख रहे हैं. लगभग हमक़द। चित्र-परिचय में महाकवि को ‘साहित्य सम्राट’ और पृथ्वीराज को ‘नाट्य सम्राट’ से अभिहित किया गया है.”
वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ शुक्ल लिखते हैं, “मैंने एक संस्मरण ‘नवनीत’ में पढ़ा था कि इस नाटक के बाद निराला जी मंच पर आए और पृथ्वीराज कपूर का हाथ पकड़कर बोले : ‘इलाहाबाद में तीन नदियों का संगम है : गंगा, यमुना और सरस्वती, लेकिन सरस्वती विलुप्त है. ये पृथ्वीराज ही सरस्वती हैं.”
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