उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी का वन भूमि कब्जियाने का धंधा !

उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी का वन भूमि कब्जियाने का धंधा !

नौकरी हो या रोजगार, अतिरिक्त कमाई की अंधी दौड़ में अपने पेशे और उत्तरदायित्व से मुकरते हुए किसी भी तरह से कुछ भी पचा लेने की बेचैनी बड़े-बड़े ओहदेदारों में सबसे ज्यादा है. उत्तराखंड के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) बी एस सिद्धू के खिलाफ आरक्षित वन भूमि के फर्जी दस्तावेज तैयार कर उस पर कब्जा

नौकरी हो या रोजगार, अतिरिक्त कमाई की अंधी दौड़ में अपने पेशे और उत्तरदायित्व से मुकरते हुए किसी भी तरह से कुछ भी पचा लेने की बेचैनी बड़े-बड़े ओहदेदारों में सबसे ज्यादा है. उत्तराखंड के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) बी एस सिद्धू के खिलाफ आरक्षित वन भूमि के फर्जी दस्तावेज तैयार कर उस पर कब्जा करने और अपने सरकारी पद का दुरुपयोग कर अनुचित लाभ लेने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया है. पूर्व डीजीपी सिद्धू समेत 8 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है.
प्रथम सूचना रिपोर्ट में कहा गया है कि सिद्धू ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए जुलाई 2013 में वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों पर दवाब बनाने के लिए उनके खिलाफ झूठा मुकदमा भी दर्ज कराया था, जिसकी पुष्टि 2014 में एनजीटी को भेजे अपने शपथ पत्र में तत्कालीन मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने भी की है. सिद्धू सितंबर 2013 से अप्रैल 2016 तक प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहे हैं. इसका जिक्र करते हुए प्रथम सूचना रिपोर्ट में कहा गया है कि एक तरह से सिद्धू ने खुद अपना अपराध स्वीकार कर लिया है. यह मामला राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण भी पहुंचा था जिस पर आदेश देते हुए प्राधिकरण ने 27 अगस्त, 2018 को सिद्धू पर 46,14,960 रूपए का अर्थदंड भी लगाया था.
पुलिस ने यहां बताया कि उत्तराखंड सरकार से अनुमति मिलने के बाद मसूरी के प्रभागीय वन अधिकारी आशुतोष सिंह द्वारा सिद्धू और सात अन्य के खिलाफ राजपुर पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया है. राजपुर के पुलिस थानाध्यक्ष ने बताया कि सिद्धू और उनके साथ अपराध में सहभागियों के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 166,167,419,420, 467, 468, 471, 120 बी तथा सात, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है.
उन्होंने बताया कि आरोपियों में देहरादून के तत्कालीन अपर तहसीलदार शुजाउद्दीन का नाम भी शामिल है जिन पर सिद्धू के दवाब और लालच के कारण वन भूमि को सिद्धू के पक्ष में नियम के विरूद्ध दाखिल-खारिज करने का आरोप है.उन्होंने बताया कि मामले में पांच आरोपी उत्तर प्रदेश के मेरठ और गाजियाबाद के रहने वाले हैं.
मामले की विवेचना पुलिस क्षेत्राधिकारी, डालनवाला, जूही मनराल को सौंप दी गयी है, जिनकी रिपोर्ट के आधार पर आगे की ​कार्रवाई की जाएगी. पुलिस में दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट में कहा गया है कि सिद्धू ने वर्ष 2012 में अपर पुलिस महानिदेशक (रूल्स एवं मैनुअल तथा सीबी—सीआइडी) पद पर रहते हुए मसूरी वन प्रभाग में पुरानी मसूरी रोड स्थित वीरगिरवाली गांव में 0.7450 हेक्टेअर आरक्षित वन भूमि कथित रूप से फर्जीवाडा कर खरीदी.
फर्जी दस्तावेजों में जिस व्यक्ति को जमीन का मालिक दिखाया गया, उसकी मृत्यु 1983 में हो चुकी थी.मेरठ के रहने वाले अधिवक्ता दीपक शर्मा और स्मिता दीक्षित ने इस कार्य में सिद्धू को सहयोग दिया जिनको मामले में आरोपी बनाया गया है. इस बीच, उस जमीन पर लगे साल के 25 वृक्षों को भी अवैध तरीके से काट दिया गया. हांलांकि, जांच के बाद सिद्धू के नाम जमीन की रजिस्ट्री रद्द करते हुए उसे वन विभाग के नाम दर्ज कर दिया गया.
सिद्धू ने मार्च 2013 में प्रदेश के तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक आरबीएस रावत को पत्र लिखकर वन भूमि खरीदने और पेड़ काटने के खुद पर लगे आरोपों को निराधार बताया था, जबकि देहरादून के जिलाधिकारी को लिखे एक अन्य पत्र में उन्होंने वन भूमि को त्रुटिवश खरीदे जाने के कारण उसकी रजिस्ट्री के रद्द होने के बाद उसपर खर्च स्टांप शुल्क को वापस कराने का अनुरोध किया था.

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