वीरान हो रहे जंगल, 5 दशक में 69 प्रतिशत घट गए वन्यजीव

वीरान हो रहे जंगल, 5 दशक में 69 प्रतिशत घट गए वन्यजीव

दिसंबर 2022 में दुनिया भर के प्रतिनिधि माट्रियल में जमा हो रहे हैं, जिससे कि वैश्विक स्तर पर वन्य जीवों और वनस्पतियों की रक्षा के लिए नई रणनीती बनाई जा सके। इसमें एक बड़ी चुनौती होगी वैश्विक संरक्षण के उपायों के लिए धन जुटाना। दुनिया के अमीर देशों से डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने जीवों के संरक्षण के

दिसंबर 2022 में दुनिया भर के प्रतिनिधि माट्रियल में जमा हो रहे हैं, जिससे कि वैश्विक स्तर पर वन्य जीवों और वनस्पतियों की रक्षा के लिए नई रणनीती बनाई जा सके। इसमें एक बड़ी चुनौती होगी वैश्विक संरक्षण के उपायों के लिए धन जुटाना। दुनिया के अमीर देशों से डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने जीवों के संरक्षण के लिए धन मुहैया कराने की मांग की है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि बीते 50 वर्षों में वन्यजीवों की आबादी करीब 69 प्रतिशत तक सिमट गई है। जूलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन, जेडएसएल के निदेशक एंड्रयू टेरी का कहना है कि यह गंभीर परिघटना बताती है, प्रकृति उधड़ रही है और प्राकृतिक दुनिया खाली हो रही है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने 2018 में जेडएसएल के जमा किये आंकड़ों का इस्तेमाल किया है। इन आंकड़ों में 32,000 वन्य जीवों की आबादी के बारे में जानकारी है जिनमें 5,000 से ज्यादा प्रजातियां शामिल हैं। इन आंकड़ों के आधार पर दी गई रिपोर्ट में वन्यजीवों की आबादी दो तिहाई घटने की बात कही गई है। इसके पीछे जंगलों की कटाई, प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर दोहन, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बताया गया है।
लातिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों में वन्यजीवों की आबादी सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। इन देशों में महज पांच दशक में ही वन्यजीवों की आबादी 94 फीसदी घट गई है। अमेजन के ब्राजीलियाई हिस्से में तो गुलाबी डॉल्फिनों की संख्या सिर्फ 1994 से 2016 के बीच ही 65 फीसदी कम हो गई है। इन आंकड़ों से जो जानकारी मिल रही है, वह 2020 में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के पिछले आकलन से मोटे तौर पर एकसमान है। उस आकलन में प्रतिवर्ष वन्यजीवों की आबादी 2.5 फीसदी घटने की बात कही गई थी। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ यूके के विज्ञान निदेशक मार्क राइट का कहना है कि प्रकृति भीषण तंगहाली में थी और यह अब भी वैसी ही है, निश्चित रूप से यह जंग हारी जा चुकी है।
हालांकि तमाम आशंकाओं के बीच यह रिपोर्ट कुछ उम्मीद भी जगाती है। डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो के काहूजी बियेगा नेशनल पार्क में गोरिल्ला की आबादी 1994 से 2019 के बीच 80 फीसदी कम हो गई। इसकी वजह थी मांस के लिए उनका शिकार। हालांकि विरुंगा नेशनल पार्ट में 2010 से 2018 के बीच उनकी आबादी 400 से बढ़ कर 600 हो गई।
हालांकि बड़े पैमाने पर वन्यजीवों की घटती संख्या बता रही है कि उन्हें तत्काल मदद देने की जरूरत है।
दो साल पहले गांधीनगर में संयुक्त राष्ट्र के ‘प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण’ पर हुए 13वें सम्मेलन में संकल्प लिया गया था कि एशियाई हाथी, जैगुआर, व्हाइट टिप शार्क और कई तरह के पक्षियों को लुप्तप्राय प्रवासी प्रजाति को कन्वेंशन ऑन माइग्रेटरी स्पीशीज (सीएमएस) की श्रेणी में शामिल किया जाएगा। लुप्त होने की कगार पर खड़े जीवों की ये प्रवासी प्रजातियां संधि के परिशिष्ट एक में शामिल हैं और इन्हें बचाने के लिए संधि सख्त सुरक्षा प्रदान करता है।
संरक्षणवादियों का कहना है कि सीएमएस की सूची वाले जीवों की घटती आबादी के लिए इंसान के हाथों शिकार या फिर प्राकृतिक आवास को नष्ट किया जाना जिम्मेदार है। यूएन के एक शोध का अनुमान है कि आने वाले दशकों में जानवरों और पौधों की लाखों प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी। एशियाई हाथी अपने दांतों की वजह से शिकारियों के निशाने पर हैं। पशु कल्याण विशेषज्ञ राल्फ सोनटाग का कहना है कि जैगुआर पिछले एक सदी में अपने आवास का 40 फीसदी हिस्सा खो चुके हैं वहीं समुद्री व्हाइट टिप शार्क भी शिकार की वजह से लुप्तप्राय शार्क बन गए हैं। इनके पंख का सूप एशिया में खूब पसंद किया जाता है।

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