विधानसा चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड की राह पर गुजरात

विधानसा चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड की राह पर गुजरात

देश के आजाद होने पर पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने समान नागरिक संहिता का समर्थन किया था लेकिन बहुसंस्कृति वाले देश के मद्देनजर तत्कालीन प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने उसका विरोध किया। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से पहले यूसीसी लागू करने की घोषणा की गई

देश के आजाद होने पर पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने समान नागरिक संहिता का समर्थन किया था लेकिन बहुसंस्कृति वाले देश के मद्देनजर तत्कालीन प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने उसका विरोध किया। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से पहले यूसीसी लागू करने की घोषणा की गई थी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक समिति बनाई और इससे छह महीने के भीतर रिपोर्ट मांगी। इस समिति ने 8 सितंबर को एक वेबसाइट लॉन्च कर जनता से इस पर सुझाव मांगे। समिति को अभी तक करीब साढ़े तीन लाख से ज्यादा सुझाव मिल चुके हैं। ईमेल से उसे 22 हजार सुझाव मिले हैं। समिति ने कई धार्मिक संगठनों से संपर्क साधा है। उत्तराखंड की कमेटी के पास अभी चार महीने और हैं। समझा जाता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इस बारे में ठोस तस्वीर आ सकेगी।
यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का इस संबंध में अप्रैल में बयान आया था कि राज्य सरकार समान नागरिक संहिता लाने पर विचार कर रही है। लेकिन अभी तक इस संबंध में कोई ठोस पहले सरकार की ओर से नहीं हुई है। समझा जाता है कि यूपी को उत्तराखंड वाली कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार है। उसी रिपोर्ट के आधार पर यूपी भी अपना फैसला होगा।
इसी तरह बीजेपी शासित हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश ने भी समान नागरिक संहिता लागू करने पर अपना रुख पहले ही स्पष्ट कर दिया है। हिमाचल प्रदेश के सीएम ने उत्तराखंड में घोषणा होने पर इसका स्वागत करते हुए कहा था कि हम भी अपने यहां लागू करेंगे। इसी तरह की कवायद मध्य प्रदेश में भी चल रही है। यूपी सहित इन राज्यों को भी उत्तराखंड की समिति की रिपोर्ट का इंतजार है। दरअसल, उत्तराखंड में बनी समिति का चेयरमैन जिन्हें बनाया गया है वो गुजरात हाईकोर्ट में जज रह चुकी हैं। इसलिए इस समिति को अन्य बीजेपी शासित राज्य भी महत्व दे रहे हैं।
अब गुजरात सरकार ने उत्तराखंड की तर्ज पर गुजरात में समान आचार संहिता (कॉमन सिविल कोड या यूसीसी) लागू करने के लिए एक समिति बनाने की घोषणा कर दी। इस संबंध में कैबिनेट मीटिंग में गुजरात सरकार ने प्रस्ताव पारित कर दिया है। गुजरात के गृह मंत्री हर्ष संघवी ने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में सीएम भूपेंद्र पटेल ने आज शनिवार को कैबिनेट बैठक में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है – राज्य में समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए एक समिति बनाने का। यह समिति उत्तराखंड की तर्ज पर बनाई गई है।
गुजरात में जल्द ही राज्य विधानसभा चुनाव होने हैं। इसकी घोषणा एक दो दिन बाद हो सकती है। उससे पहले राज्य सरकार ने इस तरह का रणनीतिक ऐलान किया है। गुजरात में यूसीसी के लिए बनने वाली समिति का प्रमुख कौन होगा। अभी सरकार ने इसका ऐलान नहीं किया है। मुख्यमंत्री को कैबिनेट ने यह अधिकार दिया है कि वे किसी रिटायर्ड जज को इसकी कमान सौंपें। मुख्यमंत्री जैसे ही कुछ ऐलान करेंगे तो इस खबर को फिर से अपडेट किया जाएगा।
बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव 2019 के घोषणा पत्र में कॉमन सिविल कोड लाने का वादा किया था। राम मंदिर, कश्मीर से धारा 370 का खात्मा और तीन तलाक जैसे मुद्दे भी उसके चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा रहे हैं। इसमें से तीन मुद्दों पर उसने पहले ही काफी कुछ कर दिया है। कॉमन सिविल कोड के मुद्दे को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया जा रहा है। बीजेपी शासित राज्यों में इसकी घोषणाएं चुनाव के आसपास कराई जा रही हैं। उत्तराखंड के बाद अब गुजरात ने पहल की है। बाकी बीजेपी शासित राज्य भी इच्छा जता चुके हैं।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुसलमानों से कहा है कि वे समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) मुद्दे को तूल न दें। इस पर किसी तरह के प्रदर्शन वगैरह की जरूरत नहीं है। बोर्ड की मार्च 2022 में लखनऊ में बैठक के बाद यह सलाह जारी की गई थी। बोर्ड का कहना है कि इस प्रस्तावित कानून से सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि हिन्दुओं के तमाम समुदाय भी प्रभावित होंगे। हिन्दुओं के तमाम समुदाय खुद इस प्रस्तावित कानून के खिलाफ हैं। बोर्ड की इस बैठक की अध्यक्षता मौलाना राबे हसन नदवी ने की थी। इस बैठक में बोर्ड के अधिकतर सदस्यों का कहना था कि इस मुद्दे पर उन हिन्दू समुदायों की प्रतिक्रिया को देखना चाहिए कि आखिर वे इस मुद्दे पर क्या करते हैं। सदस्य इस बात पर एकमत थे कि इस पर शाहीनबाग जैसा आंदोलन खड़ा करने की हिमाकत न की जाए।
केंद्र सरकार ने बहुत पहले सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर देश में एक समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग करते हुए कहा था कि विभिन्न धर्म अलग-अलग नियमों का पालन नहीं कर सकते हैं। कानून बनाने की शक्ति विधायिका के पास है। केंद्र के अनुसार, धर्मनिरपेक्ष कानून सभी धर्मों पर लागू होना चाहिए और यह सभी धर्मों में विरासत, विवाह और तलाक कानूनों पर लागू होगा।
बीजेपी के घोषणापत्र के अलावा 2019 से यह मुद्दा तब गरमाया, जब सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस दीपक गुप्ता ने गोवा के एक परिवार की संपत्ति के बँटवारे पर सितंबर, 2019 में अपने फ़ैसले में गोवा के समान नागरिक संहिता की तारीफ़ की। उन्होंने यह भी कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 44 की अपेक्षाओं के मुताबिक़ सरकार ने समान नागरिक संहिता बनाने की कोई ठोस कोशिश नहीं की। गोवा जब पुर्तगाल का उपनिवेश था तभी समान नागरिक संहिता लागू हो गयी। 1961 में गोवा के भारत में विलय के बाद भी वहाँ यह क़ानून लागू है। इसी तरह पुडुचेरी में भी समान नागरिक संहिता लागू है जो कभी फ़्रांस का उपनिवेश था।

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