शिमला में कविकुंभ-शब्दोत्सव एवं स्वयंसिद्धा सम्मान समारोह

शिमला में कविकुंभ-शब्दोत्सव एवं स्वयंसिद्धा सम्मान समारोह

शिमला (हिमाचल प्रदेश) में ‘कविकुंभ’-शब्दोत्सव एवं ‘बीइंग वुमन’ का स्वयं सिद्धा सम्मान समारोह विभिन्न सत्रों के साथ गेटी थियेटर के गौथिक हॉल में संपन्न हो गया। इस भव्य आयोजन में देश के विभिन्न राज्यों से शीर्ष कवि-साहित्यकारों के साथ ही, बड़ी संख्या में ऐसी स्वयं सिद्धा महिलाएं भी समादृत हुईं, जिन्होंने जीवन के विभिन्न कार्यक्षेत्र

शिमला (हिमाचल प्रदेश) में ‘कविकुंभ’-शब्दोत्सव एवं ‘बीइंग वुमन’ का स्वयं सिद्धा सम्मान समारोह विभिन्न सत्रों के साथ गेटी थियेटर के गौथिक हॉल में संपन्न हो गया। इस भव्य आयोजन में देश के विभिन्न राज्यों से शीर्ष कवि-साहित्यकारों के साथ ही, बड़ी संख्या में ऐसी स्वयं सिद्धा महिलाएं भी समादृत हुईं, जिन्होंने जीवन के विभिन्न कार्यक्षेत्र में अपनी प्रतिभा एवं कुशल श्रम से समाज में विशिष्ट पहचान बनाई है। हिमाचल के भाषा व संस्कृति विभाग के निदेशक पंकज ललित मुख्य अतिथि ने उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि ऐसे आयोजन साहित्य और समाज दोनो को ही दिशा देते हैं। मार्च माह से इसी गेयटी थियेटर में किताबघर बनाया गया है, जिसमें हिमाचल के लेखकों की अब तक तीन चार लाख रुपये की किताबें पाठकों ने हाथों हाथ खरीदी हैं। कौन कहता है कि पाठक नहीं हैं? यहां नि:शुल्क गोष्ठियों का भी अवसर प्रदान किया जा रहा है। यहीं पर थियेटर फेस्टिवल भी आयोजित किया जायेगा।
शब्दोत्सव-संयोजक, मासिक साहित्यिकी ‘कविकुंभ’ की संपादक एवं ‘बीइंग वुमन’ की राष्ट्रीय अध्यक्ष रंजीता सिंह बताया कि समारोह में 25 महिलाओं को स्वयंसिद्धा सम्मान से सम्मानित किया गया, जिन्होंने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। सम्मान सत्र के मुख्य अतिथि बॉलीवुड अभिनेता यशपाल शर्मा ने कहा कि उन्हें यहां आकर बहुत अच्छा लगा है। लोगों को साहित्य की ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। इन दिनों उनकी कॉलेज कांड की वेब सीरीज की शूटिंग चल रही है। शिमला आकर अच्छा लगता है लेकिन पार्किंग में काफी दिक्कत हुई है। इसके अलावा लिफ्ट में एक घंटा लग गया। वह प्रोडक्शन पर ज्यादा काम करेंगे।
यशपाल शर्मा ने समारोह में पच्चीस प्रतिभाशाली महिलाओं को स्वयंसिद्धा सम्मान से समादृत किया। कार्यक्रम और संस्था के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए कहा कि वे विशेष रूप से लद्दाख से शूटिंग के बीच में से पहुंचे और सुश्री सुमन मुम्बई से। समादृतों में यशपाल शर्मा की निदेशक-अभिनेत्री-रंगकर्मी धर्मपत्नी प्रतिभा सुमन शिखर सम्मान से (फिल्म और रंगमंच), पाखी पत्रिका की डिजीटल संपादिका दिल्ली की शोभा अक्षर एवं हिमाचल की देवकन्या ठाकुर नव-सृजन सम्मान से, नेशनल चैंपियन मधूलिका धर्मेंद्र, राजस्थान की रूबी पारिक (कृषि-स्वरोजगार), सोनिया आनंद रावत (संगीत), जयंती रंगनाथन (पत्रकारिता), गीता खुश्बू अख्तर (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इंटरप्रेन्योरशिप), सृजन सम्मान से मीरा आर्या (उत्तराखंड), पापोरी गोस्वामी (आसाम), अंजुला मुर्मू (झारखंड), गायत्री कौशल (हरियाणा), विमल ठाकुर (हिमाचल), वंदना भागड़ा (हिमाचल), साधना अग्रवाल (उत्तराखंड) आदि रहीं।
इससे पूर्व शब्दोत्सव के उद्घाटन सत्र में कविकुंभ अंक-विशेष के लोकार्पण के बाद परिचर्चा-सत्र में ‘साहित्यकारिता एवं पत्रकारिता के अंतरसम्बंध’ विषय पर बीज-वक्तव्य में हिमाचल के डॉ हेमराज कौशिक ने साहित्यिक पत्रकारिता की शुरुआत और अब तक अनेक पड़ावों पर सविस्तार प्रकाश डाला। प्रतिष्ठित कवि लीलाधर जगूड़ी, सुदर्शन वशिष्ठ, राजेंद्र राजन, मोहम्मद इरफान, हेमराज कौशिक, आदि की विचारोत्तेजक सहभागिता रही। कवि लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि जो लेखक अस्वीकृति का दंश नहीं झेलते, वे कभी सफल लेखक नहीं बन पाते। उनका संकेत सोशल मीडिया के लेखकों की ओर था क्योंकि सोशल मीडिया पर कोई संपादक या प्रूफ रीडर तक नहीं होता और कुछेक तारीफों के नोटीफिकेशन से वे अपने आपको महान कवि समझने की भूल कर बैठते हैं। आलोचना शब्द संस्कृत में नहीं है। आलोचना शब्द कबीर के निंदक नियरे से आया है और जहां निंदा करनी होती है, वहां आलोचना शब्द का प्रचलन हो गया है। विचार और लोचन का साथ जरूर है क्योंकि खुली आखों ही साहित्य को देखना चाहिए। चाहे कविता हो, शायरी हो या कहानी, सबके आधार में जीवन की ही कहानी छिपी है। साहित्यकारिता और पत्रकारिता के अंतरसंबंध पर जगूड़ी ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता अलग अलग हैं। इन्हें एक मानने की भूल न करें। वैसे सभी विधाओं का आपस में संबंध है। उन्होंने कविता और कवि की बड़ी रोचक व्याख्या करते हुए कहा कि कला का कथन होती है कविता। कविता में कवि की तार्किकता भी होती है। कविता में प्रकृति का रंग होता है और पहले जैसे बारिश की एक दो बूंदें आती हैं, फिर पूरी तरह भिगो देती हैं पाठक को।
गुफ्तगू के लोकप्रिय चेहरे सैयद मोहम्मद इरफान ने कहा कि यह विषय- ‘साहित्यकारिता एवं पत्रकारिता के अंतरसम्बंध’, काफी रोचक भी है और विचारोत्तेजक भी। ये दोनों चीज़ें अलग हैं और इन्हें एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करना गलत है। पत्रों के साहित्यिक परिशिष्ट बंद हो रहे हैं। बाजार और पूंजीवाद ने इस पर बहुत असर डाला। ख्यात लेखक-पत्रकार सुदर्शन वाशिष्ठ ने कहा कि अब साधन व संसाधन घट रहे हैं और साहित्यिक पृष्ठ सिमटते जा रहे हैं। पाठक भी कह हुए हैं। लघुपत्रिकाओं का प्रचार प्रसार बहुत कम है। सोशल मीडिया से रचनाएं ली जा रही हैं।
वरिष्ठ कवि-पत्रकार राजेंद्र राजन ने अखबार, रेडियो, दूरदर्शन आदि माध्यमों में सामान्य के गायब होने जाने पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने सामाजिक और साहित्यिक पत्रकारिता का स्पेस लगातार कम होते जाने पर चिंता जताई। हिसार से आये हरियाणा ग्रंथ अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष कमलेश भारतीय ने साहित्यिक पत्रकारिता-कल, आज और कल पर बात कहते हुए निर्मल वर्मा, अज्ञेय, मोहन राकेश, मणि मधुकर, कुबेर दत्त आदि के साहित्यिक पत्रकारिता में योगदान का सविस्तार उल्लेख किया। हिमाचल के चर्चित कवि आत्मा रंजन ने परिचर्चा सत्र का सफलता पूर्वक संचालन किया।
कविता पाठ सत्र में कवि आत्मा रंजन, कवि यतीश कुमार, कुलराजीव पंत, वीरू सोनकर, द्वारिका प्रसाद उनियाल, पूनम अरोड़ा, सुशीला पुरी, रंजीता सिंह फ़लक, उषा राय, अलका अनुपम, राजेश अरोड़ा, सीताराम शर्मा, राजीव कुमार, एस आर हरनोट, सुरजीत जज, सुरजीत सिरसा, डॉ अंजुला मुर्मू, दीप्ति सारस्वत, गुप्तेश्वर नाथ उपाध्याय, नरेश दयोग, विमल ठाकुर, अजय विचलित आदि ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। संचालन दीप्ति सारस्वत और जगदीश बाली ने किया। मुशायरा-सत्र रंग-ए-फ़लक में अफ़जल मंगलौरी, जयप्रकाश त्रिपाठी, असलम जावेद, रमेश ढडवाल, आसिफ सैफी, परवेज गाजी, कुलदीप गर्ग तरुण आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।

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