चार दशक से चौड़ीदार वृक्ष रोप रहे बागेश्वर के किशन मलड़ा

चार दशक से चौड़ीदार वृक्ष रोप रहे बागेश्वर के किशन मलड़ा

केशव भट्ट : बूढ़े हो चुके अपने जिंदा शरीर के लगभग साठेक किलो वजन को साथ लिए वो हर पल कहीं न कहीं धरती के सीने में चारेक दशक से चौड़ीदार वृक्षों को रोपने में लगे रहते हैं. इसके साथ ही सूख रहे नौलों, धारों को पुनर्जीवत करने के बाद हर कोई उनकी मेहनत को

केशव भट्ट : बूढ़े हो चुके अपने जिंदा शरीर के लगभग साठेक किलो वजन को साथ लिए वो हर पल कहीं न कहीं धरती के सीने में चारेक दशक से चौड़ीदार वृक्षों को रोपने में लगे रहते हैं. इसके साथ ही सूख रहे नौलों, धारों को पुनर्जीवत करने के बाद हर कोई उनकी मेहनत को सलाम करता है. शुरुआत में घर-परिवार के साथ ही बच्चों ने भी उन्हें खूब उलाहना दी लेकिन उन बातों को दरकिनार कर वो अपने मिशन पर जुटे रहे और आज अब उनका परिवार भी उनकी सोच को देख उनके साथ धरती को हरा-भरा रखने में उनके साथ खड़ा हो गया है.
ये शख्स हैं बागेश्वर जिले के वृक्षप्रेमी किशन मलड़ा. अस्सी के दशक से इन्होंने अपना जीवन प्रकृति को ही समर्पित कर दिया. उनका कहना है कि वनों के कटान, सिकुड़ती कृषि भूमि और तेजी से बढ़ते कंक्रीट के जंगल के कारण बरसाती पानी का संग्रहण घटता जा रहा है. इससे हर वर्ष न केवल नदियों का जलस्तर कम हो रहा है बल्कि नौले-धारे भी सूखते चले जा रहे हैं. रोजमर्रा की आपाधापी में आमजन को इससे कोई मतलब नहीं रहता है. नगर हो या गांव वृक्षप्रेमी किशन मलड़ा ने कई सूखते पानी के धारों में पानी बढ़ाने के लिए उसके आसपास चौड़ी पत्ती की प्रजाति के सैकड़ों पौंधे लगाने शुरू किए. पौंधे बड़े हुए तो इसका असर दिखने लगा और सूख चुके पानी के धारों से पानी झरने लगा.
वर्ष 2006-07 की बात है जब घनश्याम जोशी अमर उजाला में पत्रकार थे तो उनकी मुलाकात मलड़ाजी से हो गई. बातचीत के बाद घनश्यामजी ने मलड़ाजी की प्रकृति के प्रति प्रेम को समझा और उनके समर्पण के बारे में एक लेख लिखा कि, उन्होंने अपने प्रयासों से अपनी जमीन में ही देवकी वाटिका और शहीद शांति वन स्थापित किया है. धीरे-धीरे समाज में मलड़ाजी की चेतना रंग लाने लगी.
लोगों को वह संदेश देते रहे कि नदी, नालों और जल स्रोतों से पानी की कमी की मुख्य वजह पेड़, पौंधों की कमी है. चौड़ी पत्ती वाले वनों के सिमटने से ही जल संकट पैदा हो रहा है. इसके लिए चौड़ी पत्ती वाले पौंधे उतीस, बांज, तिमिल, खरसूं, रिंगाल के वन विकसित करने से जल संकट की समस्या से काफी हद तक निदान मिल सकता है. उनके काम और बातें जब बाहर गई तो उनके पास जापान, रूस, डेनमार्क से शोधार्थी आए और धरती को बचाने के गुर सीख ले गए. उत्तराखंड के सभी जिलों में वह पौधरोपण कर प्रकृति को बचाने का संदेश देते आ रहे हैं. इस क्रम में उन्होंने हरिद्वार में मूंगा रेशम के 25 पौधे लगाए तथा देहरादून के तपोवन में बांज, फल्यांट, मूंगा रेशम, चंदन, पारिजात के पौधे लगाए.
किशन मलड़ा की लगन को देख तत्कालीन राज्यपाल बेबी रानी मौर्या भी उन्हें वर्ष 2018 में वृक्ष पुरूष नाम से भी नवाज चुकी हैं. वहीं प्रकृति के प्रति उनके अगाध प्रेम के चलते उन्हें उत्तराखंड राज्य विज्ञान एंव प्रौद्यौगिकी परिषद, स्पर्श गंगा बोर्ड समेत दर्जनों पुरूष्कारों से भी नवाजा गया है. अभी हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी उन्हें प्रकृति सम्मान से नवाज चुके हैं. छह लाख से ज्यादा पौंधे लगा-बांट चुके किशन मलड़ा धरती को हरा-भरा रखने की मुहिम पाले हैं. उम्र के इस पढ़ाव में भी उनका जज्बा देखने लायक है. उनके जज्बे को सलाम.

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