उत्तराखंड में अब कुमाऊंनी बोली में बालगीत गाते बच्चे इंटरनेट की दुनिया में दाखिल हो चुके हैं. उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है. वीडियो पिथौरागढ़ जिले के एक निजी स्कूल न्यू बियर शिबा स्कूल का है. वीडियो में स्कूल की अध्यापिका दीपा वल्दिया के साथ बच्चे गा रहे हैं- धनपुतली धान
उत्तराखंड में अब कुमाऊंनी बोली में बालगीत गाते बच्चे इंटरनेट की दुनिया में दाखिल हो चुके हैं. उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है. वीडियो पिथौरागढ़ जिले के एक निजी स्कूल न्यू बियर शिबा स्कूल का है. वीडियो में स्कूल की अध्यापिका दीपा वल्दिया के साथ बच्चे गा रहे हैं-
धनपुतली धान दे, कौव्वा खा छी कान दे
धनपुतली दान दे सुप्पा भरी धान दे…
नर्सरी के बच्चों द्वारा गाया जा रहा यह गीत लोगों द्वारा खूब सराहा जा रहा है. एक लम्बे समय से बच्चों के जीवन में प्रारंभिक शिक्षा की नींव रखने वाली अध्यापिका दीपा वल्दिया का कहना है कि बच्चे अंग्रेजी और हिन्दी तो स्कूल आकर कैसे भी सीख ही लेंगे लेकिन हमारी कोशिश है कि बच्चे अपनी बोली के प्रति भी जुड़ाव महसूस करें.
अध्यापिका दीपा वल्दिया द्वारा जिस किताब से बच्चों के साथ बालगीत गाये जा रहे हैं, उस किताब का नाम है – घुघूति बासूति. इस किताब में उत्तराखंड के ढेरों पारम्परिक बालगीत संकलित हैं. समय साक्ष्य प्रकाशन द्वारा छापी गयी ‘घुघूति बासूति’ किताब में बालगीतों का संकलन हेम पन्त द्वारा किया गया है. किताब पर्वतीय गांवों में बच्चों को सुनाए जाने वाले गीतों का संग्रह है. संग्रह में लोरी, पर्वगीत, क्रीड़ागीत, शिक्षा संबंधी बाल गीत व पहेलियों को शामिल किया गया है. किताब में गढ़वाली, कुमाउंनी व अन्य लोकभाषाओं के बाल गीत शामिल हैं.
रुद्रपुर में रहने वाले हेम पंत सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़े हुए हैं. हेम द्वारा संकलित बालगीतों की किताब ‘घुघूति बासूति’ के अब तक दो संस्करण आ चुके हैं. किताब का तीसरा संस्करण भी बाज़ार में उपलब्ध है. किताब के पहले दो संस्करण को लोगों द्वारा खूब सराहा गया है.
इस किताब में ऐसे बालगीतों का संकलन है जिसे पहाड़ में एक समय खूब गाया जाता था. जिन्दगी की दौड़ में सारे गीत भुला दिये गये फिर भाषा का एक ऐसा दौर आया जब कुमाऊनी-गढ़वाली जैसी बोलियाँ गंवारों की बोली कहलाई जाने लगी सो इन बोलियों में कहे जाने वाले गीत-कहानी सब भुला दिये गये. वर्तमान में लोग एकबार फिर रुककर पीछे देखने की कोशिश कर रहे हैं जहां सहेजने को इतना कुछ छुटा हुआ है. ‘घुघूति बासूति’ में संकलित पुराने बालगीत हेम पन्त द्वारा सहेजा हुआ हमारा बीता हुआ कल है जिसे अगली पीढ़ी तक जरुर जाना चाहिये.
घुघूति बासूति किताब को अब पहाड़ में स्थित कई सारे निजी स्कूल भी अपने विद्यालयों में बच्चों को उपलब्ध करा रहे हैं. कई सारे विद्यालय इस क्रम में कोशिश कर रहे हैं कि घुघूति बासूति किताब को अपने बच्चों के पाठ्यक्रम के शामिल किया जाये. ‘घुघूति बासूति’ किताब ऑनलाइन भी उपलब्ध है. इसे अमेजन में यहां से खरीदा जा सकता है-
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