धान की फसल तो बारिश में तहस-नहस, कैसे होगी भरपाई

धान की फसल तो बारिश में तहस-नहस, कैसे होगी भरपाई

पहले जो राज्य सरकारें सूखे की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई से बच रही थी, वहीं अब उन पर भारी बारिश से नुकसान के मुआवजे का दबाव बढ़ रहा है। सुखदीप सिंह इस साल 2022 में लगातार खेती में नुकसान का सामना कर रहे हैं। सात जनवरी 2022 को बहुत भारी बारिश हुई।

पहले जो राज्य सरकारें सूखे की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई से बच रही थी, वहीं अब उन पर भारी बारिश से नुकसान के मुआवजे का दबाव बढ़ रहा है। सुखदीप सिंह इस साल 2022 में लगातार खेती में नुकसान का सामना कर रहे हैं। सात जनवरी 2022 को बहुत भारी बारिश हुई। उन्होंने 10 एकड़ में आलू लगाया था। जो पककर लगभग तैयार हो चुका बड़ा आलू था, बारिश के पानी में गल गया। प्रति एकड़ 20 से 25 हजार रुपए का नुकसान हुआ था। इस तरह उनका लगभग 2.5 लाख रुपए का नुकसान हुआ। इसके बाद मार्च-अप्रैल 2022 में इतनी भीषण गर्मी पड़ी कि कनक (गेहूं) का दाना सिकुड़ गया। जहां एक एकड़ से 20 से 22 क्विंटल गेहूं पैदा होता है। इस सीजन में 5 से 6 क्विंटल गेहूं कम पैदा हुआ। उन्होंने 18 एकड़ में गेहूं लगाया था। लेकिन लगभग पौने दो लाख रुपए का गेहूं में नुकसान हुआ। नुकसान की भरपाई के लिए इस बार धान का रकबा बढ़ाने के लिए अतिरिक्त जमीन पर लीज ली।
अमूमन सुखदीप 30 एकड़ में धान लगाते थे, लेकिन इस बार 35 एकड़ में धान लगाया। 17 जून 2022 से धान लगााना शुरू किया। 28 जून 2022 को बारिश हुई तो लगा कि इस बार नुकसान पूरा हो जाएगा। उस समय धान को बारिश की जरूरत थी। फिर 3 जुलाई को बारिश हुई तो 5-6 दिन ट्यूबवेल से पानी लगाने की जरूरत नहीं हुई। इससे लागत कम होने की खुशी हुई। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 25 सितंबर को इतनी बारिश हुई कि लेकिन 25 की रात को इतनी भारी बारिश आई कि तैयार धान पूरी तरह लेट गई। उसका दाना फूल गया है। सुखदीप सिंह ने डाउन टू अर्थ से कहा, “अभी तो खेतों में पानी खड़ा है, एक बार सूखने के बाद पता चलेगा कि कुल कितना नुकसान हुआ है? एक एकड़ में 30 से 32 क्विंटल धान पैदा होती है। अगर 6-7 एकड़ का नुकसान हुआ तो मोटा-मोटा 3 से 4 लाख रुपए का नुकसान हो सकता है।”
पंजाब के लुधियाना जिले के सुखदीप सिंह, हरियाणा के जोगेंद्र सिंह और उत्तर प्रदेश के सुनील कुमार में एक समानता है कि वे तीनों किसान हैं। इन तीनों के बीच की दूरी कई सौ किलोमीटरों मे होगी, लेकिन ये तीनों पिछले एक सप्ताह के दौरान हुई भारी बारिश के कारण अपनी फसलों की दशा देखकर मायूस हैं। जोगेंद्र सिंह हरियाणा के बल्लभगढ़ तहसील में 8 एकड़ में खेती करते हैं। उन्होंने दो एकड़ में धान, दो एकड़ में कपास, दो एकड़ में ज्वार और दो एकड़ में बाजरा लगाया था। कपास तो उनकी पूरी तरह से खराब हो गई। धान भी पूरी तरह से लेट गई है, लेकिन उम्मीद है कि आधी से ज्यादा बच जाएगी। ज्वार और बाजरा भी पूरा खराब हो गया लगता है। वह कहते हैं कि नुकसान लाखों में होगा, लेकिन हमें इस बात की भी चिंता है कि ज्वार खराब होने से हमारे मवेशी क्या खाएंगे?
उत्तर प्रदेश के कासगंज के किसान सुनील कुमार बताते हैं कि उनके संयुक्त परिवार के पास लगभग 20 एकड़ की खेती है। वह खरीफ में धान और गन्ना लगाते हैं। इस ब बार जून-जुलाई में बारिश नहीं हुई तो खेतों में धान नहीं लगा पाए। बाद में लगभग पांच एकड़ में ट्यूबवेल से पानी लेकर धान लगाया और जब धान की फसल तैयार हो रही थी तो भारी बारिश के कारण धान पूरी तरह लेट गई। इसमें से पता नहीं, कितनी बचेगी? ये तीनों राज्य वो हैं, जहां चालू मानूसन सीजन में बहुत कम बारिश हुई, लेकिन सितंबर के आखिरी सप्ताह में इतनी ज्यादा बारिश हुई कि जो किसान किसी तरह अपनी फसल लगा पाए थे, उनकी फसल भी बर्बाद हो गई।
दिलचस्प बात यह है कि एक सप्ताह पहले तक जहां राज्य सरकारों के लिए सूखे की घोषणा करना एक बड़ी चुनौती बन गया था, वहां अब बारिश के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है। पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप सिंह ने पत्रकारों से कहा है कि बारिश से बर्बाद हुई फसलों की गिरदावरी होगी। पूरे पंजाब से लगभग 1.34 लाख हेक्टेयर में धान की फसल पानी में डुबने की बात कही जा रही है। किसानों का कहना है कि कपास की फसल को भारी नुकसान हुआ है। पंजाब में चालू सीजन में 2.48 लाख हेक्टेयर में कपास लगाई गई है, जबकि हरियाणा में 6.50 लाख हेक्टेयर में कपास लगाई गई है।
हरियाणा सरकार ने भी भारी बारिश से हुए नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजे की प्रक्रिया शुरू कर दी है। राज्य सरकार ने एक ई-क्षति नाम से पोर्टल शुरू किया है। जहां किसानों से कहा गया है कि उन्हें जितना नुकसान हुआ है, उसकी सूचना 72 घंटे के भीतर पोर्टल में अपलोड करें। उस सूचना के आधार पर पटवारी मौका मुआयना करेंगे और मुआवजा तय किया जाएगा। बल्लभगढ़ के किसानों का कहना है कि सरकार ने एक अक्टूबर से सरकारी खरीद की घोषणा कर दी है, लेकिन अब उनके पास ऐसी धान ही नहीं बची, जिसे वह मंडी ले जाकर बेच सकें। किसान अगेती धान की बुआई इसलिए शुरू कर देते हैं, ताकि एक अक्टूबर से मंडी ले जाना शुरू कर दें और नवंबर तक खेत खाली होते ही समय पर गेहूं की बुआई कर दें, लेकिन इस बार तो अब केवल पछेती धान की फसल ही बच पाएगी। अगेती तो खराब हो गई है।

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