चेन्नई के तारामणि स्थित एशियन कॉलेज ऑफ जर्नलिज्म (एसीजे) में पिछले दिनो आयोजित एक कार्यक्रम में ‘द हिंदू पब्लिशिंग ग्रुप’ के डायरेक्टर एन. राम ने कहा- ‘देश में कुछ पत्रकारों के खिलाफ उत्पीड़न बढ़ा है और मुस्लिम समुदाय के पत्रकारों या अल्पसंख्यकों का समर्थन करने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। भाषण की अभिव्यक्ति
चेन्नई के तारामणि स्थित एशियन कॉलेज ऑफ जर्नलिज्म (एसीजे) में पिछले दिनो आयोजित एक कार्यक्रम में ‘द हिंदू पब्लिशिंग ग्रुप’ के डायरेक्टर एन. राम ने कहा- ‘देश में कुछ पत्रकारों के खिलाफ उत्पीड़न बढ़ा है और मुस्लिम समुदाय के पत्रकारों या अल्पसंख्यकों का समर्थन करने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। भाषण की अभिव्यक्ति और मीडिया की आजादी को लेकर उच्च न्यायपालिका में भी विरोधाभास रहा है।’
‘भारत में पत्रकारों द्वारा सामना की जाने वाली कानूनी चुनौतियों’ पर एक पैनल चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि पत्रकार, जिन पर पहले दीवानी मानहानि (civil defamation) के आरोप लगाए गए थे, उन पर अब आपराधिक मानहानि (criminal defamation) और फिर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि 1967 का अधिनियम, जो बहुत ही पुराना है, उसे पहले शायद ही कभी इस्तेमाल में लिया गया हो या फिर नहीं, लेकिन आज विभिन्न एजेंसियां, केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों के समर्थन से ‘चाल’ चलती हैं। पत्रकार सिद्दीकी कप्पन के मामले की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत दायर मामले में राहत मिलने के बाद भी पत्रकार को जेल में रहना पड़ता है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु भारत के कई अन्य राज्यों की तुलना में बहुत बेहतर था।
भारत में ‘संस्थानों का पतन’ पर विस्तार से बताते हुए एन. राम ने पुलिस, आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और अन्य एजेंसियों के इस्तेमाल का उल्लेख किया और बताया कि कैसे एक एजेंसी ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापकों में से एक को आरोपित करने की कोशिश कर रही थी। उन्होंने कहा कि एजेंसियां कुछ खास पत्रकारों पर लगातार हमले करती ही जा रही हैं।
उन्होंने कहा कि पत्रकारों पर उत्पीड़न बढ़ गया है और आरोप भी और अधिक गंभीर लगाए जाने लगे हैं। विशेष रूप से उन पत्रकारों पर, जो अक्सर मुस्लिम समुदाय से संबंध रखते हैं या फिर वे जो अल्पसंख्यकों का पुरजोर तरीके से समर्थन करते हैं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि वह तीस्ता सीतलवाड़ को एक पत्रकार और एक कार्यकर्ता के तौर पर देखते हैं। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता को किसी तरह की सक्रियता से अलग करना मुश्किल है।
एन. राम ने कहा कि एक समय था, जब भी प्रेस की स्वतंत्रता की बात आती थी तो भारत विकासशील देशों के बीच एक अहम स्थान रखता था। लेकिन यदि अब दावा किया जाता है, तो उस पर प्रतिष्ठान की ओर से फर्जी खबरों का आरोप लगा दिया जाता है।
Leave a Comment
Your email address will not be published. Required fields are marked with *